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अध्ययन ७:श्लोक २४-२५ टि. ३१-३८
दसवेआलियं (दशवैकालिक) ३१. संजात ( युवा ) ( संजाए ग ) :
___ संजात का अर्थ युवा है। ३२. प्रीणित ( पीणिए ग ) :
प्रीणित का अर्थ है-आहार आदि से तृप्त' ।
श्लोक २४ : ३३, दुहने योग्य हैं ( दुज्झाओ क ):
दोह्य का अर्थ है ---दुहने योग्य अथवा दोहन-काल, जैसे--अभी इन गायों के दुहने का समय है । ३४. बैल ( गोरहग ख ) :
गोरहग-तीन वर्ष का बछड़ा। रथ की भाँति दौड़ने वाला बैल, जो रथ में जुत गया वह बैल, पाण्डु-मथुरा आदि में होने वाला बछड़ा। कहीं-कहीं रथ में जुतने योग्य तरुण बैल को तथा अमदप्राप्त छोटे बैल को भी गोरहग कहा जाता है । टीका में 'गोरहग' का अर्थ कल्होड किया है । कल्होड देशी शब्द है। इसका अर्थ है-वत्सतर-बछड़े से आगे की और संभोग में प्रवत्त होने के पहले की अवस्था । ३५. दमन करने योग्य है ( दम्मा ख ):
दम्य अर्थात् दमन करने योग्यः । बधिया करने योग्य ---कृत्रिम नपुंसक करने योग्य भी दम्य का अर्थ है । ३६. वहन करने योग्य है ( वाहिमा ग ) :
वाह्य-गाड़ी का भार ढोने में समर्थ । ३७. रथ-योग्य है ( रहजोग ग ) :
अभिनव युवा होने के कारण यह बैल अल्प-काय है, बहुत भार ढोने में समर्थ नहीं है, इसलिए यह रथ-योग्य है।
श्लोक २५
३८. श्लोक २५:
इस तथा पूर्ववर्ती श्लोक के अनुसार
१-अ० चू० पृ० १७० : संजातो समत्तजोव्वणो। २--अ० चू० पृ० १७० : पीणितो आहारातितित्तो। ३-हा० टी० ५० २१७ : तथैव गावो 'दोह्या' दोहार्हाः । ४....(क) आ० ० ४।२७०० : दोहनयोग्या एता गावो दोहनकालो वा वर्तते ।
(ख) जि० चू० पृ० २५३ : दोहणिज्जा बुज्झा, जहा गावीणं दोहणवेला बट्टइ। ५-सूत्र० १.४. २. १३ वृ० : 'गोरहगति त्रिहायणं बलीवर्दम् । ६-अ०० पृ० १७०: गोजोग्गा रहा गोरहजोग्यत्तणेण गच्छंति गोरहगा पण्डु-मधुरादीसु किसोर-सरिसा गोपोतलगा अण्णत्थ
वा तरुणतरुणारोहा जे रहम्मि वाहिज्जति, अमदप्पत्ता खुल्लगवसभा वा ते वि । ७-हा० टी०प० २१७ : गोरथकाः कल्होडाः ।। ८- दे० ना० २.६. पृ० ५६ : कल्होडो वच्छयरे...... कल्होडो वत्सतरः । ...-(क) अ० चू०पृ० १७०: दम्मा दमणपत्तकाला।
(ख) जि० चू०प०२५३ : दमणीया दम्मा, दमणपयोग्गत्ति वुत्त' भवइ । १० जि० चू० पृ० २५३ : वाहिमा नाम जे सगडादीभरसमत्था ।
जि. चू०प०:२५३ : रथजोग्गा णाम अहिणवजोव्वणतणण अप्पकाया, ण ताव बहुभारस्स समत्था, किन्तु संपयं रहजोग्गा एतेत्ति।
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