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________________ वक्कसुद्धि ( वाक्यशुद्धि ) ३५३ श्लोक १६ : २०. श्लोक १६: अगस्त्य चूर्णि के अनुसार 'हले' और 'अन्ने' तरुणी स्त्री के लिए सम्बोधन शब्द हैं । इनका प्रयोग महाराष्ट्र में होता था । लाट (मध्य और दक्षिणी गुजरात ) देश में उसके लिए 'हला' शब्द का प्रयोग हुआ करता था । 'भट्टे' पुत्र रहित स्त्री के लिए प्रयुक्त होता था । 'सामिणी' यह लाट देश में प्रयुक्त होने वाला सम्मान सूचक सम्बोधन शब्द है और 'गोमिणी' प्रायः सब देशों में प्रयुक्त होता था । होले गोले और वसुले ये तीनों प्रिय वचन वाले आमंत्रण हैं, जो कि गोल देश में प्रयुक्त होते थे' 1 जिनदास के अनुसार 'हले' आमंत्रण का प्रयोग वरदा-तट में होता था, और 'हुला' का प्रयोग लाट देश में । 'अन्ने' का प्रयोग महाराष्ट्र में वेश्याओं के लिए होता था । 'भट्ट' का प्रयोग लाट देश में ननद के लिए होता था । 'सामिणी' और 'गोमिणी' ये के चाटुता आमन्त्रण हैं । होले गोले और वसुले -- ये तीनों मधुर आमंत्रण हैं ।" श्लोक १७ : अध्ययन ७ : श्लोक १६-१७ टि० २०-२१ २१. नाम... ---गोत्तेण ख ) : प्राचीन काल में व्यक्ति के दो नाम होते थे गोत्र नाम और व्यक्तिगत नाम । व्यक्ति को इन दोनों नामों से सम्बोधित किया जाता था। जैसे - भगवान् महावीर के ज्येष्ठ शिष्य का नाम इन्द्रभूति था और वे आगमों में गौतम - इस गोत्रज नाम से प्रसिद्ध हैं । पाणिनी ने गोत्र का अर्थ - पौत्र आदि अपत्य किया है । यशस्वी और प्रसिद्ध पुरुष के परंपर-वंशज गोत्र कहलाते थे । स्थानाङ्ग में काश्यप गोतम, वत्स, कुत्स, कौशिक, मण्डव, वाशिष्ट-- ये सात गोत्र बतलाये हैं । वैदिक साहित्य में गोत्र शब्द व्यक्ति विशेष या रक्त सम्बन्ध से संबद्ध जन-समूह के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है" । बौधायन श्रौतसूत्र के अनुसार विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ और कश्यप- ये सात गोत्र-कर्त्ता ऋषि हैं तथा आठवाँ गोत्र-कर्त्ता ऋषि अगस्त्य हैं। इनकी संतति या वंश-परम्परा को गोत्र कहा जाता है । इस श्लोक में बताया गया है कि नाम याद हो तो नाम लेकर सम्बोधित करें, नाम याद न हो तो गोत्र से सम्बोधित करे अथवा नाम या गोत्र दोनों में से जो अधिक उचित हो उससे सम्बोधित करे । अवस्था आदि की दृष्टि से जिस व्यक्ति के लिए जो उचित हो उसी शब्द से उसको सम्बोधित करे। मध्य प्रदेश में वयोवृद्धा स्त्री को 'ईश्वरा' कहा जाता है, कहीं उसे 'धर्म-प्रिया' और कहीं 'धर्मशीला' । इस प्रकार जहाँ जो शब्द उचित हो, उसी से सम्बोधित करे । " Jain Education International अन्वेति मरहट्ठे तरी 1 १००० १६० जति सवदे गोमणी गोविए होले गोले बने २- जि० ० ० २५०ति आनंत लाविस समागमणं वा आमंत जहां हलिति मरहट्ठविस आमंत, दोमूलखराचायणं अति भट्टति लाडा पतिभविनोद हामी गोमणिओ चाटुए वयणं, होलेति आमंतणं, जहा- 'होलवणिओ ते पुच्छइ सयक्कऊ परमेसाणो इंदो । अण्णंपि किर वारसा इदमहसतं समतिरेकं । एवं गोलवसुगावि महरं सप्पिवासं आमंतणं । 1 । तिला भट्ट ति अन्य-रहित पायोला सामिदेसीए लगत्याणपाणि प्रिया ३ पा० व्या० ४. १. १६२ : अपत्यं पौत्रप्रभृति गोत्रम् । ४-ठा० ७.३० : सत्त मूलगोत्ता प० तं० कासवा गोतमा बच्छा कोच्छा कोसिता मंडवा वासिट्ठा । ५- अ० वे० ५. २१.३ । ६- प्रवराध्याय ५४ । लज्जा ७- जि० ० १० २५१ जं तीए नाम तेण नामविश्वेण सा इत्वी आतविव्या, जाहे नाम न सरेना ताहे गोले जहा कासवगोते ! एवमादि, 'जहारिहं' नाम जा वुड्डा सा अहोत्ति वा तुज्झेति वा भाणियव्वा, जा समावणया सा तुमंति वा वत्तच्या, वच्छं पुणो पप्प ईसरीति वा, समाणवया ऊणा वा तहावि तुम्भेति भाषियव्वा, जेणप्पगारेण लोगो आभासइ जहा भट्टा गोमिणित्ति वा एवमादि । महा० टी० प० २१६ : तत्र वयोवृद्धा मध्यदेशे ईश्वरा धर्मप्रियाऽन्यत्रोच्यते धर्मशीले इत्यादिना, अन्यथा च यथा न लोकोपघातः । , For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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