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________________ दसवेआलियं (दशवकालिक) ३५० अध्ययन ७ : श्लोक ७-६ टि० ११-१३ ११. हम जायेंगे ( गच्छामो क ) : यहाँ 'वर्तमान सामीप्ये वर्तमानवद्वा' इस सूत्र के अनुसार निकट भविष्य के अर्थ में वर्तमान विभक्ति है। श्लोक ७: १२. वर्तमान और अतीत काल-संबन्धी अर्थ के बारे में शंकित ( संपयाईयमढेंग ) : काल की दृष्टि से शकित भाषा के तीन प्रकार होते हैं : (१) भविष्यकालीन (२) वर्तमानकालीन और (३) अतीतकालीन । भविष्यकालीन शंकित भाषा के उदाहरण छठे श्लोक में आ चुके हैं । निश्चित जानकारी के अभाव में –अमुक वस्तु अमुक की हैं - इस प्रकार कहना वर्तमानकालीन शंकित भाषा है । टीककार के अनुसार स्त्री या पुरुष है -ऐसा निश्चय न होने पर किसी को स्त्री या पुरुष कहना वर्तमान शंकित भाषा है। बैल देखा या गाय, इसकी ठीक स्मृति न होते हुए भी ऐसा कहे कि मैंने गाय देखी थी.... यह अतीतकालीन शंकित भाषा है । श्लोक ८-६: १३. श्लोक ८-१० : दोनों चणियों में आठवें, नवें और दसवें श्लोक के स्थान पर दो ही श्लोक हैं और रचना-दृष्टि से वे इनसे भिन्न हैं। विषय-वर्णन की दृष्टि से कोई अन्तर नहीं जान पड़ता किन्तु शब्द-संकलन की दृष्टि से चूणि में व्याख्यात श्लोक गम्भीर हैं। टीकाकार ने चूणि से भिन्न परम्परा के आदर्शों का अनुसरण किया है। अगस्त्य चूणिगत श्लोक और उसकी व्याख्या इस प्रकार है: तहेवाणागतं अट्ठ जं वऽण्णऽणुवधारितं । संकितं पडुपण्णं वा एवमेयं ति णो वदे ॥८॥ तेहवाणागतं अटुं जं होति उवधारितं । नीसंकितं पडुप्पण्णं थावथावाए णिद्दिसे ॥६॥ अनुवाद इसी प्रकार सुदुर भविष्य और अतीत के अज्ञात तथा वर्तमान के संदिग्ध अर्थ के बारे में यह इस प्रकार ही है- ऐसा न कहे। इसी प्रकार सदर भविष्य और अतीत के सुज्ञात तथा वर्तमान के निश्चित अर्थ को हृदय में सम्यक् प्रकार से स्थापित कर उसका निर्देश करे---जैसा हो वैसा कहे । छटु तथा सातवें श्लोक में जिस क्रिया का हो सकना संदिग्ध हो उसे निश्चयपूर्ण शब्दों में कहने का निषेध किया है और इन दो उलोकों में अतीत, अनागत और वर्तमान की घटनाओं तथा व्यक्तियों की निश्चित जानकारी के अभाव में या संदिग्ध जानकारी की स्थिति में उनका निश्चित भाषा में प्रतिपादन करने का निषेध किया है । अगस्त्य चूणि में 'एष्यत्' का अर्थ निकट भविष्य और अनागत का अर्थ सुदूर भविष्य किया है । कल्की होगा—यह सुदूर भविष्य का अविज्ञात अर्थ है । दिलीप सुदूर अतीत में हुए हैं। उनके बारे में निर्धारित बातें कहना असत्य वचन है। १-भिक्षु० ४. ४.७६ । २-हा० टी० १०२१४ : तथा साम्प्रतातीतार्थयोरपि या शङ्किता, साम्प्रतार्थे स्त्रीपुरुषाविनिश्चये एष पुरुष इति, अतीतार्थेऽप्येवमेव बलीवर्दतत्स्च्याद्यनिश्चये तदाऽत्र गौरस्माभिष्ट इति । ३---अ० चू० पृ० १६६ : एसो आसणो, अणागतो विकिट्ठो। ४-अ० चू० पृ० १६६ : अणुवधारितं -अविष्णातं । ५- अ० चू० पृ० १६६ : जहा दिलीपादयो एवं विधा आसी। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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