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दसवेलियं ( दशवैकालिक )
६१. पोली भूमि ( घसासु ) :
ख
६२. दरार-युक्त भूमि में ( भिलुगासु ख ) : यह देशी शब्द है। इसका अर्थ है दरार ।
'घसा' का अर्थ है- शुषिर भूमि, पुराने भूसे की राशि या वह प्रदेश जिसके एक सिरे का आक्रमण करने से सारा प्रदेश
हिल उठे।
घ
१३. जल से ( वियद्वेण ) :
'विकृत' का अर्थ जल या प्रामुक जल हैं।
३२८
श्लोक ६२ :
२४. श्लोक ६२
सूक्ष्म प्राणी की जहाँ हिंसा न होती हो उस स्थिति में भी स्नान नहीं करना चाहिए । जिनदास महत्तर ने इसके कारणों का उल्लेख करते हुए बताया है कि स्नान करने से ब्रह्मचर्य की अगुप्ति होती है, अस्नान रूप काय-क्लेश तप नहीं होता और विभूषा का दोष लगता है ।
६५. शीत या उष्ण जल से ( सीएण उसिणेण वा
ख
अध्ययन ६ : श्लोक ६२-६३ टि० ६१-६७
):
अगस्त्य सिंह स्थविर ने 'शीत' का अर्थ जिसका स्पर्श सुखकर हो वह जल और 'उष्ण' का अर्थ आयु-विनाशकारी जल किया हैं। टीकाकार ने 'शीत' और 'उष्ण' का अर्थ प्रासुक और अप्रासुक जल किया है" ।
६. ( असिणाणमहिमा) :
): यहाँ 'मकार अलादाणिक है।
श्लोक ६३ :
१७. गन्ध चूर्ण ( सिणाणं * ) :
यहाँ 'मान' का अर्थ
है। टीकाकार ने 'स्थान' को उसके प्रसिद्ध अर्थ अंग-प्रशालन में ग्रहण किया है वह सही नहीं है । चूर्ण में इसकी विस्तृत जानकारी नहीं मिलती फिर भी उससे यह स्पष्ट है कि यह कोई उद्वर्तनीय गन्ध द्रव्य है" । उमास्वाति
१ (क) अ० पू० पृ० १५६ मतिमतरजीविता इति प्रसि, अंतो सुष्णो भूमिपदेसो पुराणभूसातिरासी वा ।
(ख) हा० डी० प० २०५ 'सा' विरभूमि
२- जि०
० चू० पृ० २३१ : घसा नाम जत्थ एगदेसे अक्कममाणे सो पदेसो सब्वी चलइ सा घसा भण्णइ । ३– (क) जि० चू० पृ० २३१ : भिलुगा राई |
(ख) हा० टी० प० २०५ : 'भिलुगासु च' तथाविधभूमिराजीषु च ।
४- जि० चू० पृ० २३१: वियडं पाणयं भण्णइ ।
'बिग' फामुपाणिएणावि ।
५ (क) अ० ० पृ० १५६ (ख) हा० टी० प० २०६
बिकृतेन प्राकोदकेन ।
६- जि० चू० पृ० २३२ : जइ उप्पीलावणादिदोसा न भवंति, तहावि अन्ने व्हायमाणस्स दोसा भवंति कहं ?, व्हायमाणस्स अतिभवति अपिच्चयो व काकिलेस तो सो पद, विभुसादोसो य भवति ।
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७ - अ० चू० पृ० १५६ : सीतेण वा सुहफरिसेण, उसिणेण वा आउविणासकारिणा ।
८० टी० १० २०६ शीतेन योग्नोदकेन प्रासुकेनासुकेत्यर्थः । ६- हा० टी० ० प० २०६ : 'स्नानं' पूर्वोक्तम् ।
१० अ० चू० पृ० १५६ : सिणाणं सामायिगं उवण्हाणं । अधवा गंधवट्टओ ।
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