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महायारकहा ( महाचारकथा )
३२५ अध्ययन ६ : श्लोक ५५-५७ टि० ७६-८४ ७६. आसन ( निसेज्जा ख ):
___एक या अनेक वस्त्रों से बना हुआ आसन' । ८०. पीढ़े का ( पीढए ख ):
जिनदास महत्तर के अनुसार 'पीढा' पलाल का और टीका के अनुसार बेंत आदि का होता है। ८१. ( बुद्धवुत्तमहिट्ठगा ५ ) : यहाँ मकार अलाक्षणिक है।
श्लोक ५५: ८२. गंभोर-छिद्र वाले ( गंभोरविजया क ):
गंभीर का अर्थ अप्रकाश और विजय का अर्थ विभाग है। जिनका विभाग अप्रकाशकर होता है वे गंभीरविजय' कहलाते हैं । जिनदास चूणि में मार्गण, पृथक्करण, विवेचन और विचय को एकार्थक माना है । टीकाकार ने 'विजय' की छाया विजय और उसका अर्थ आश्रय किया है। जिनदास धूणि में 'वैकल्पिक' रूप में 'विजय' का अर्थ आथय किया है। इनके अनुमार गंभीरविजय' का अर्थ 'प्रकाश-रहित आश्रय वाला' है । हमने 'विजय' की संस्कृत-छाया 'विचय' की है । अभयदेवसूरि ने भी इसकी छाया यही की है।
श्लोक ५६ : ८३. अबोधि-कारक अनाचार को ( अबोहियं घ )
अगस्त्य धुणि और टीका में अबोधिक का अर्थ --- अबोधिकारकर या जिसका फल मिथ्यात्व हो वह किया है । जिनदास चूर्णि में इसका अर्थ केवल मिथ्यात्व किया है।
श्लोक ५७:
८४. श्लोक ५७
धुणिद्वय में गृहस्थ के घर बैठने से होने वाले ब्रह्मचर्य-नाश आदि के कारणों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है : स्त्री को बार-बार देखने से और उसके साथ बातचीत करने से ब्रह्मचर्य का विनाश होता है१२ ।
१- (क) जि० चू० पृ० २२६ : 'निसिज्जा' नाम एगे कप्पो अगेगा या कप्पा ।
(ख) हा० टी० ५० २०४ : निषद्यायाम् एकादिकल्परूपायाम् । २-जि० चू० पु० २२६ : 'पीढगं'–पलालपीठगादि। ३ हा० टी०प० २०४ : 'पीठके'--वेत्रमयादौ । ४-अ० चू० ५० १५४ : गंभीरं अप्पगास, विजयो--विभागो। गंभीरो जेसि ते गंभीरविजया । ५-जि. चू० पृ० २२६ : गंभीरं अप्पगासं भष्णइ, विजओ नाम गम्गणंति वा पियुकरणंति वा विवेयणति वा विजओत्ति वा एगट्ठा। ६ हा० टी०प० २०४ : गम्भीरम् – अप्रकाशं विजय-आश्रयः अप्रकाशापया एते' । ७-जि० चू० पृ० २२६ : अहया विजओ उवस्सओ भण्णइ, जम्हा तेसि पाणाणं गंभीरो उबस्सो तओ दुचिसोधगा।
.भग० २५.७ वृ० : आणाविजए - आज्ञा-जिनप्रवचनं तस्याविचयो निर्णयो यत्र तवाशाविचयं प्राकृतत्वाच्च आणाविजयेत्ति । ६-अ० चू. पृ १५४ : अबोहिकारि अबोहिकं । १० हा० टी० प० २०५ : 'अबोधिक' मिथ्यात्वफलम् । ११--जि० चू० पृ० २२६ : 'अबोहियं' नाम मिच्छत्तं । १२-जि० चू० पृ० २२६ : कहं बंभचेरस्स विवत्ती होज्जा ?, अवरोप्परओसभासअन्नोऽन्नदसणादीहि बंभचेरविवत्ती भवति ।
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