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________________ दसवेलियं (दशवेकालिक) ३१४ ३६. रखते और उनका उपयोग करते हैं ( धारंति परिहरति घ ) प्रयोजन होने पर इसका मैं उपयोग करूंगा इस दृष्टि से रखना 'धारण' कहलाता है और वस्त्र आदि का स्वयं परिभोग करना 'परिणत है' यह समय धानुक प्रयोग है। इस धातु का ठीक छोड़ना होता है और सामयिक अर्थ है पहना। श्लोक २० : ख ४०. ज्ञातपुत्र महावीर ने ( नायपुत्रेण ) : भगवान् महावीर का एक नाम 'नायपुत्त' ज्ञातपुत्र भी है। यह नाम पितृवंश से संबन्धित है । भगवान् के लिए ज्ञात, ज्ञातकुलनिर्वृत्त और ज्ञातकुलचन्द्र आदि विशेषण भी प्रयुक्त हुए हैं । भगवान् के पिता सिद्धार्थ को 'ज्ञातकुल निर्वृत्त' नाम से सम्बोधित किया गया है । इससे स्पष्ट होता है कि भगवान् के कुल का नाम 'ज्ञात' था । अगस्त्यसिंह स्थविर और जिनदास महत्तर के अनुसार 'ज्ञात' क्षत्रियों का एक कुल या जाति है । 'ज्ञात' शब्द से वे ज्ञातकुल उत्पन्न सिद्धार्थ का ग्रहण करते हैं और 'ज्ञातपुत्र' से भगवान् का' । आचाराङ्ग (२०१५) में भगवान् के पिता को काश्यपगोत्री कहा गया गया है। भगवान् इक्ष्वाकुवंश में उत्पन्न हुए थे यह भी माना जाता है। भगवान् ऋषभ इक्ष्वाकुवंशी और काश्यपनी इसलिए वे आदि का कहलाते हैं। भगवान् महावीर भी इक्ष्वाकुवंशी और काश्यपगोत्री थे | ज्ञात या ज्ञातृ काश्यपगोत्रियों का अवान्तर भेद रहा होगा । अध्ययन ६ श्लोक २० टि० ३१-४१ हरिभद्रसूरि ने 'ज्ञात' का अर्थ उदार क्षत्रिय सिद्धार्थ किया है। बौद्ध साहित्य में भगवान् के लिए 'नानपुत्त' शब्द का अनेक स्थलों में प्रयोग हुआ है । प्रो० वसन्तकुमार चट्टोपाध्याय ने लिखा है कि लिच्छवियों की एक शाखा या वंश का नाम 'नाय' (नात ) था । 'नाथ' शब्द का अर्थ संभवतः जाति (राजा के लातिन) है। श्वेताम्बर अङ्ग आगमों में 'नाया धम्मकहा' एक आगम है। यहाँ 'नाय' शब्द भगवान् के नाम का सूचक है । दिगम्बर-परम्परा में 'नामकहा' को 'नाथधर्म - कथा' कहा गया है। महाकवि धनञ्जय ने भगवान् का वंश 'नाथ' माना है । इसलिए – भगवान् को 'नाथान्वय' नाम से संबोधित किया है । नाथ 'नाय' या 'नात' का ही अपभ्रंश रूप प्रतीत होता है । ४१. वस्त्र आदि को परिग्रह नहीं कहा है ( न सो परिग्गहो वृत्तो क ) : मुनि के वस्त्रों के सम्बन्ध में दो परम्पराएँ हैं। पहली परम्परा मुनि को वस्त्र धारण करने का निषेध करती है और दूसरी उसका विधान | पहली परपरा के अनुपावी अपने को दिगम्बर कहते हैं और दूसरी के अनुपायो श्वेताम्बर दिगम्बर और श्वेताम्बर ये दोनों १००० २२१ ताथ पारणा नाम संयोजत्वं पारिज जहा उप्पने पोषणे एवं परिभुंजिस्तामिति एसा पारणा, परिहरणा नाम जा सयं वत्थादी परिभुंजइ सा परिहरणा भण्णइ । २ हा० हा० टी० प० ११६ परिहरति परिभुञ्जते च । (क) अ० पू० णायभूयसिद्धस्थातियते । (ख) जि० चू० पृ० २२१ : णाया नाम खत्तियाणं जातिविसेसो, तम्मि संभूओ सिद्धत्थो, तस्य पुत्तो णायपुत्तो । ४ - अ० चि० १.३५ : इक्ष्वाकुकुलसम्भूताः स्याद्द्द्वाविंशतिरर्हताम् । ५- हा० टी० प० १६६ : ज्ञात उदारक्षत्रियः सिद्धार्थः तत्पुत्रेण । ६ - ( क ) म० नि० १.२.४ ; ३.१.४ । (ख) सं० नि० ३.१.१ । ७ - जै० भा० वर्ष २ अङ्क १४.१५ पृ० २७६ : जेकोवी ने 'नाथ' शब्द का संस्कृत प्रतिशब्द 'ज्ञात्रिक' व्यवहार किया है, परन्तु अर्थ-निर्णय को चेष्टा नहीं की है। मुझे ऐसा लगता है कि जिस वंश की पुत्र या कन्या का राजकन्या या राजपुत्र के साथ विवाह हो सकता था उसी वंश को 'ज्ञातिवंश' कहा गया है । -5 - ज० ६० भाग १ पृ० १२५: णाहधम्मकहा णाम अंग तित्थयराणं धम्मकहाणं सरुचं वण्णेदि । ६-६० ना० ११५ : सम्मतिर्महतिर्वोरो, महावीरोऽन्त्यकाश्यपः । नाथान्य वर्धमान वत्तीयमिह साम्प्रतम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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