________________
३०३
अध्ययन ६ : श्लोक ५५-६१
महायारकहा (महाचारकथा) ५५-गंभीरविजया एए
पाणा दुप्पडिलेहगा। आसंदीपलियंकाय एयम विवज्जिया ॥
गम्भीरं विच (ज) या एते, प्राणा दुष्प्रतिलेख्यकाः । आसन्दो-पर्यङ्करच एतदर्थं विवजितौ ॥५५॥
५५–आसन्दी आदि गम्भीर-छिद्र वाले होते हैं। इनमें प्राणियों का प्रतिलेखन करना कठिन होता है। इसलिए आसन्दी, पलंग आदि पर बैठना या सोना वर्जित किया है।
५६ गोयरगपविट्ठस्स
निसेज्जा जस्स कप्पई। इमेरिसमणायारं आवज्जइ अबोहियं ॥
गोचरान-प्रविष्टस्य, निषद्या यस्य कल्पते । एतादृशमनाचार, आपद्यते अबोधिकम् ॥५६॥
५६---भिक्षा के लिए प्रविष्ट जो मुनि गृहस्थ के घर में बैठता है वह इस प्रकार के आगे कहे जाने वाले, अबोधि-कारक अनाचार को प्राप्त होता है।
५७-८"विवत्ती बंभचेररस
पाणाणं अवहे वहो। वणीमगपडिग्घाओ पडिकोहो अगारिणं ॥
विपत्तिब्रह्मचर्यस्य, प्राणानामवधे वधः । वनीपक-प्रतिघातः, प्रतिकोधोऽगारिणाम् ॥५७॥
५७-गृहस्थ के घर में बैठने से ब्रह्मचर्य-- आचार का विनाश, प्राणियों का अवधकाल मैं वध, भिक्षाचरों के अन्तराय और घर वालों को क्रोध उत्पन्न होता है
५८ अगुत्ती बंभचेरस्स
इत्थीओ यावि संकणं । कुसोलबड्णं ठाणं दूरओ परिवज्जए॥
अगुप्तिब्रह्मचर्यस्य, स्त्रीतश्चापि शङ्कनम् । कुशीलवर्धनं स्थानं, दूरतः परिवर्जयेत् ॥५॥
५८----ब्रह्मचर्य असुरक्षित होता है८५ और स्त्री के प्रति भी शंका उत्पन्न होती है । यह (गृहान्तर निषद्या) कुशील वर्धक स्थान है इसलिए मुनि इसका दूर से वर्जन करे।
५६ तिण्हमन्नयरागस्स
निसेज्जा जस्स कप्पई। जराए अभिभूयस्स वाहियस्स तवस्सिणो॥
त्रयाणामन्यतरकस्य, निषद्या यस्य कल्पते। जरयाऽभिभूतस्य, व्याधितस्य तपस्विनः ॥५६॥
५६–जराग्रस्त, रोगी और तपस्वीइन तीनों में से कोई भी साधु गृहस्थ के घर में बैठ सकता है।
६०-वाहिओ वा अरोगी वा
सिणाणं जो उ पत्थए । वोक्कतो होइ आयारो जढो हवइ संजमो॥
व्याधितो वा अरोगी वा, स्नानं यस्तु प्रार्थयते । व्युत्क्रान्तो भवति आचारः, त्यक्तो भवति संयमः ॥६०॥
६०-जो रोगी या नीरोग साधु स्नान करने की अभिलाषा करता है उसके आचार का उल्लंघन होता है, उसका संयम परित्यक्त होता है।
६१-संतिमे सुहमा पाणा
घसासु भिलुगासु य। जे उ भिक्खू सिणायंतो वियडेणुप्पिलावए ॥
सन्ति इमे सूक्ष्माः प्राणाः, घसासु 'भिलुगासु' च । यांस्तु भिक्षुः स्नान्, विकटेन उत्प्लावयति ॥६१॥
६१—यह बहुत स्पष्ट है कि पोली भूमि और दरार-युक्त भूमि में६२ सूक्ष्म प्राणी होते हैं। प्रासुक जल से स्नान करने वाला भिक्षु भी उन्हें जल से प्लावित करता
dain Education Intermational
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org