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दसवेलियं (दशर्वकालिक )
४८
वह
इड
मुद्दे सियाह
ते
वृत्त
४६ - तम्हा
नियागं ममायंति
कीयमुद्देसियाह वज्जयंति
निर्माया
५० - कंसेसु
कुंडमोए
भुजतो
आयारा
५२ - पच्छाकम्मं
एमट्ठ
निगंधा
समजाणंति महेसिणा ॥
५१ - सीओदगसमारंभे मत्तपोषण
जाई उन्नति
बिट्टो तत्थ
असणवाणाई
५३ - आसंदीपलियं के
ठिपप्पानो धम्मजीविणो ॥
कंसपा सु वा पुणो । असणपाणाई परिभस्सइ ॥
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पुरेकम्मं
सिया तत्य न कप्पई ।
न
भुंजंति गिहिभाषणे ॥
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मंचनासालएसु अणायरियमज्जाणं आसइत
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५४ - नासंदीपलियं केसु
न निसेज्जा
न
सद्दत्त,
निमगंवाऽपडिलेहाए बुद्धतमहिगा"
भूयाई अजमो ॥
वा ।
वा ॥
पीढए ।
"
३०२
ये निवाय ममान्ति,
मौदेशिकाहृतम् । वयं ते समजानन्ति
इत्युक्तं महर्षिणा ।। ४८ ।।
तरमादानपानादि
फीतमोशिकाहुतम्।
वर्जयति स्थितात्मानः
निर्ग्रन्था धर्मजीविनः ॥ ४६ ॥
कांस्येषु कांस्य पात्रेषु
'कुण्डमोदेषु' वा पुनः । भुजाम: अशनपानादि, आचारात् परिभ्रश्यति ॥ ५० ॥
शीतोदक समारम्
अमत्र धावनच्छर्दने ।
यानि सम्यते भूतानि,
दुष्प्रयमः ॥५१॥
पापुरकर्म
स्यात्तत्र न कल्पते ।
एतदर्थं न भुञ्जते, निर्ग्रन्था गृहिभाजने ॥ ५२ ॥
आसन्दी - पर्यङ्कयोः, मञ्चाशालकयोर्वा ।
अनाचरितमायांणां
आसितुं शक्ति वा ॥५३॥
सन्दीप
न निषद्यायां न पीठके ।
निथा: अप्रतिलेख, बुद्धोक्ताधिष्ठातारः ॥ १४
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अध्ययन ६ श्लोक ४८-५४
४८ - जो नित्याय ( आदरपूर्वक निमन्त्रित कर प्रतिदिन दिया जाने वाला ) क्रीत (निर्ग्रन्थ के निमित्त खरीदा गया ) औद्देशिक (निर्ग्रन्थ के निमित्त बनाया गया ) और आहृत (निर्ग्रन्थ के निमित्त दूर से सम्मुख लाया गया) आहार ग्रहण करते हैं वे आणि का अनुमोदन करते हैं ऐसा महर्षि महावीर ने कहा है।
४६ - इसलिए धर्मजीवी, स्थितात्मा नियत कि औरत अ पान आदि का वर्जन करते हैं।
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५० - जो गृहस्थ के कांसे के प्याले, कांसे के पात्र और कुण्डमोद ( कांसे के बने कुण्डे के आकार वाले बर्तन) में अशन, पान आदि खाता है वह श्रमण के आचार से भ्रष्ट होता है।
५१ - बर्तनों को सचित्त जल७२ से धोने में और बर्तनों के धोए हुए पानी को डालने में प्राणियों की होती है। सीरों ने वहाँ असंयम देखा है१४ ।
५२ - गृहस्थ के बर्तन में भोजन करने में 'पश्चात् कर्म' और 'पुरःकर्म' की संभावना है। वह निर्ग्रन्थ के लिए कल्प्य नहीं है । एतदर्थ वे गृहस्थ के बर्तन में भोजन नहीं करते।
५३ आप के लिए आदी पलंग मञ्च और आसालक ( अवष्टम्भ सहित आसन पर बैठना या सोना अनाचीर्ण है।
५४ - तीर्थङ्करों के द्वारा प्रतिपादित विधियों का आचरण करने वाले निर्ग्रन्थ आसन्दी, पलंग, आसन और पीढ़े का (विशेष स्थिति में उपयोग करना पड़े तो ) प्रतिलेखन किए बिना उन पर न बैठे और न सोए ।
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