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छ8 अज्ञयणं : षष्ठ अध्ययन
महायारकहा : महाचार कथा
मूल
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
१-नाणदंसणसंपन्न
संजमे य तवे रयं । गणिमागमसंपन्न उज्जाणम्मि समोसढं ॥
ज्ञानदर्शनसंपन्न, संयमे च तपसि रतम् । गणिमागमसंपन्नम्, उद्याने समवसृतम् ॥१॥
१-२--ज्ञान-दर्शन से सम्पन्न, संयम और तप में रत, आगम-सम्पदा से युक्त गणी को उद्यान में समवसृत देख राजा और उनके अमात्य, ब्राह्मण और क्षत्रिय उन्हें नम्रतापूर्वक पूछते हैं--आपके आचार का विषय कैसा है ?
२--रायाणो रायमच्चाय
माहणा अदुव खत्तिया। पुच्छंति निहुअप्पाणो कहं मे आयारगोयरो ? ॥
राजानो राजामात्याश्च, ब्राह्मणा अथवा क्षत्रियाः । पृच्छन्ति निभृतात्मानः, कथं भवतामाचारगोचरः? ॥२॥
३-तेसि सो निहओ दंतो
सव्वभूयसुहावहो । सिक्खाए सुसमाउत्तो आइक्खई वियक्खणो॥
तेभ्यः स निभृतो दान्तः, सर्वभूतसुखावहः। शिक्षया सुसमायुक्तः, आख्याति विचक्षणः ॥३॥
३-ऐसा पूछे जाने पर वे स्थितात्मा, दान्त, सब प्राणियों के लिए सुखावह, शिक्षा में समायुक्त और विचक्षण गणी उन्हें बताते हैं---
४-हंदि धम्मत्थकामाणं
निग्गंथाणं सुणेह मे। आयारगोयरं भीम सयलं दुरहिद्वियं ॥
हंदि धर्मार्थकामानां, निर्ग्रन्थानां शृणुत मम । आचारगोचरं भीम, सकलं दुरधिष्ठितम् ॥४॥
४---मोक्ष चाहने वाले निर्ग्रन्थों के भीम, दुर्धर और पूर्ण आचार का विषय मुझसे सुनो।
५-नन्नत्थ एरिसं वृत्तं
जं लोए परमदुच्चरं ।। विउलट्ठाणभाइस्स न भूयं न भविस्सई॥
नान्यत्र ईदृशमुक्तं, यल्लोके परम-दुश्चरम्। विपुलस्थानभागिनः, न भूतं न भविष्यति ॥५॥
५-लोक में इस प्रकार का अत्यन्त दुष्कर आचार निर्ग्रन्थ-दर्शन के अतिरिक्त कहीं नहीं कहा गया है। मोक्ष-स्थान की आराधना करने वाले के लिए ऐसा आचार अतीत में न कहीं था और न कहीं भविष्य में होगा।
६-बाल, वृद्ध अस्वस्थ या स्वस्थ--- सभी मुमुक्षुओं को जिन गुणों की आराधना अखण्ड और अस्फुटित१२ रूप से करनी चाहिए, उन्हें यथार्थ रूप से सुनो।
६-सखुड्डगवियत्ताणं
वाहियाणं च जे गुणा। अखंडफुडिया कायव्वा तं तुणेह जहा तहा ॥
सक्षुल्लक-व्यक्तानां, व्याधितानां च ये गुणाः । अखण्डास्फुटिताः कर्तव्याः, तान् शृणुत यथा तथा ॥६॥
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