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________________ पिंडेसणा ( पिण्डेषणा) २८१ अध्ययन ५ (द्वि० उ०) : श्लोक २२ टि० ३७-३६ कायफल ... यह एक छोटे कद का हमेशा हरा रहने वाला वृक्ष है। इसका छिलका खुरदरा, बादामी और भूरे रंग का होता है। इसके पत्ते गुच्छों में लगते हैं। उनकी लम्बाई ७.५ से १२.५ सेन्टिमीटर और चौड़ाई २.५ से ५ सेन्टिमीटर तक होती है। कसारु -- कसेरु नाम का जलीय कन्द है । यह एक किस्म का भारतीय घास का कंद है । इस घास से बोरे और चटाइयाँ बनती हैं । यह घास तालाबों और झीलों में जमती है । इस वृक्ष की जड़ों में कुछ गठाने रहती हैं जो तन्तुओं से ढंकी हुई रहती हैं । इसका फल गोल और पीले रंग का जायफल के बराबर होता है। इसकी छोटे और बड़े के भेद से दो जातियाँ होती हैं । छोटा कसेरु हल्का और आकृति में मोथे की तरह होता है । इसको हिन्दी में चिचोड़ और लेटिन में केपेरिस एस्क्युलेंटस कहते हैं। दूसरी बड़ी जाति को राज कसेरु कहते हैं। सर्दी के दिनों में कसेरु जमीन से निकाले जाते हैं और उनके कार का छिलका हटाकर उनको कच्चे ही खाते हैं। ३७. अपक्व-तिलपपड़ी ( तिलपप्पडगंग ) वह तिल-पपड़ी वजित है, जो कच्चे तिलों से बनी हो । ३८. कदम्ब-फल (नीमंग ) : ___हारिभद्रीय टीका में 'नीम' नीमफलम्- ऐसा मुद्रित पाठ है । किन्तु 'नीमं नीपफलम्'- ऐसा पाठ होना चाहिए । पूणियों में 'नीम' शब्द का प्रयोग उचित हो सकता है, किन्तु संस्कृत में नहीं । संस्कृत में इसका रूप 'नीप' होगा। 'नीप' का अर्थ 'कदम्ब' है और उस का प्राकृत रूप 'नीम' होता है । कदम्ब एक प्रकार का मध्यम आकार का वृक्ष होता है जो भारतवर्ष के पहाड़ों में स्वाभाविक तौर से बहुत पैदा होता है । इसका पुष्प सफेद और कुछ पीले रंग का होता है । इसके फूल पर पंखुड़ियां नहीं होतीं, बल्कि सफेद-सफेद सुगन्धित तन्तु इसके चारों ओर उठे हुए रहते हैं । इसका फल गोल नींबू के समान होता है। कदम्ब की कई तरह की जातियाँ होती हैं। इनमें राज कदम्ब, धारा कदम्ब, धूलि कदम्ब, भूमि कदम्ब इत्यादि जातियाँ उल्लेखनीय है। श्लोक २२: ३६. चावल का पिष्ट (चाउलं पिट्ठ क ): अगस्त्यसिंह ने अभिनव और अनिन्धन ( बिना पकाए हुए ) चावल के पिष्ट को सचित्त माना है। जिनदास ने 'चावल-पिट्ठ' का अर्थ भ्राष्ट्र (भूने हुए चावल) किया है। वह जब तक अपरिणत होता है तब तक सचित्त रहता है। १-व० चं० पृ० ५२७।। २-व० चं० पृ० ४७६ । ३-(क) अ० चू० पृ० १३० : "तिलपप्पडयो' आमतिलेहि जो पप्पडो कतो। (ख) जि० चू० पृ० १९८ : जो आमगेहि तिलेहि कीरइ, तमवि आमगं परिवज्जेज्जा। (ग) हा० टी० ५० १८५ : 'तिलपर्पट' पिष्टतिलमयम् । ४-हा० टी० ५० १८५ : 'नीम' नीमफलम् । ५-(क) अ० चू० पृ०१३० : 'णीव' फलं । (ख) जि० चू० पृ० १९८ : 'मीम' नीमरक्खस्स फलं। ६-हैम० ८.१.२३४ : तीपापोडे मो वा। ७-८० चं० पृ० ३७५॥ ८.-अ० चू० पृ० १३० : चाउलं पिट्ठलोट्ठो । तं अभिणवमणिधणं सच्चित्तं भवति । है-जि० चू० पृ० १९८ : चाउलं पिठं भट्ठ भण्णइ, तमपरिणतधम्म सचित्तं भवति । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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