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________________ पिंडेसणा ( पिण्डेषणा ) घ १८. प्रवचन की (पवयणस्स ) : प्रवचन का अर्थ द्वादशाङ्गी है' । प्रवचन के आधारभूत जैन-शासन को भी प्रवचन कहा जाता है। श्लोक १४ : १६. उत्पल ( उप्पलं क ) : नीलकमल । क २०. पद्म (पउम ) : रक्त-कमल । अगस्त्य सिंह ने पद्म का अर्थ 'नलिन' और हरिभद्र ने 'अरविन्द' किया है । 'अरविन्द' रक्तोत्पल का नाम है । ख २१. कुमुद (कुमुयं वा ): श्वेत कमल । इसका नाम गर्दभ है । २०७ अध्ययन ५ (द्वि००) श्लोक १२-१५ टि० १८-२३ श्लोक १२ : ख २२. मालती ( मगदंतियं ): यह देशी शब्द है । इसका अर्थ मालती और मोगरा है। कुछ आचार्य इसका अर्थ 'मल्लिका' (बेला) करते हैं । श्लोक १५: २३. लोक १५: अगस्त्य पुगि के अनुसार १४ और १५ को श्लोक के रूप में पढ़ने की परम्परा रही है। पूर्णिकार ने इसके समर्थन में लौकिक लोक भी किया है। १ - भग० २०.८.१४ : पवयणं पुण दुवालसंगे गणिपिङगे । २ (क) अ० चु० पृ० १२८ : उप्पलं णीलं । (ख) जि० चू० पृ० १६६ : उप्पलं नीलोत्पला दे । (ग) हा० टी० प० १८५ : 'उत्पल' नीलोत्पलादि । ३- अ० चू० पृ० १२८ : पडमं णलियं । ४―हा० टी० प० १८५ पद्मम्' अरविन्दं वापि । ५- शा० नि० भू० पृ० ५३९ । ६- (क) जि० चू० पृ० १२८ : 'कुमुदं' गद्दभगं । (ख) जि० चू० पृ० १६६ : कुमुदं गद्दभुप्पलं । (ग) हा० टी० प० १८५ कुमुदं वा' गर्दभक वा । (क) अ० चू० पृ० १२८: 'मगदं तिगा' मेलिगा । ७ (ख) जि. ० चू० पृ० १९६ : यति मेदिया, अपने नगति-धियइल्लो मदगंतिया भण्णइ । (ग) हा० टी० प० १८५ 'दंतकांतिकां माये । ८ - -अ० चु० पृ० १२६ : 'तं भवे भत्तपाणं' एतत्स विमं प्रद्ध पदंति - देतिपं पडियाइक्खे तं किं ? संजताणं अकप्पिय परिहासमाणसंबंधमतीतायंत रसिलोयसंबंध समाजति तहा एपिति पुन Jain Education International यदिवसोभति लोगे यमुग्वाहिलोइया प्रयोग उपा दश धर्म न भाति तरष्ट्रा मत्तः प्रमत्त उन्मत्तो भ्रांतः कुद्धः पिपासितः ॥ त्वरमाणश्च भीरुश्च चोरः कामी च ते दशः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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