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________________ दसवेलियं ( दशवेकालिक ) कोलमपुरिसन्न कासवनालयं । २१- तहा बेलुयं तिलपपडगं आमगं २२ - तव चाउल पि वियडं वा तत्तनि । तिलपिट्ठ आमगं २४ - तहेव २३- कविट्ठ मूलगं आमं मणसा वि न बीयमणि बिहेलगं आमगं २६- अगो न २५ समुयाणं चरे कुलं उच्चाययं नीर्य ऊसढं अमुयिओ मायने २७ - बहु विविहं माउलिंग च मूलगतियं । असत्थपरिणयं नीमं परिवज्जए ॥ विसी एज्ज Jain Education International इपिन्नागं परिवज्जए ॥ फलमंथूणि जाणिया । पियालं च परघरे पत्थए || परिवज्जए ॥ कुलमइक्कम्म भिक्खू सया । वित्त मेसेज्जा पंडिए । भोयणम्मि एसणारए ॥ नाभिधाए ॥ अत्थि खाइमसाइमं । न तत्थ पंडिओ कुप्पे इच्छा देज्ज परो न वा ॥ २६८ तथा कोलमनुत्स्विन्नं, वेणुकं काश्यपालिकाम् । तिलपर्यटक नीपं, आमक परिवर्जयेत् ॥ २१ ॥ तथैव 'चाउ' पिष्टं, विकट वा तप्त निर्वृतम् । तिष्टतिथिष्यार्क, परिवर्जयेत्॥२२॥ कपित्थं मातुलिङ्ग च मूलकं मूलकलिकाम् । आमामशस्त्रपरिणतां, मनसाऽपि न प्रार्थयेत् ॥ २३॥ तथैव फलमन्यून्, बीजमन्थून् ज्ञात्वा । विभीतकं प्रियालं च, आमकं परिवर्जयेत् ॥ २४॥ समुदा परे भिक्षु कुलवायचं सदा । नीच कुलमतिक्रम्य, उप(उत्तं) नाभिचारयेत् ॥ २५॥ " अदीनो वृत्तिमेषयेत् न विषीदेत पण्डितः । भोज मात्राज्ञ एषणारतः ॥ २६ ॥ अध्ययन ५ ( द्वि० उ० ) श्लोक २१-२७ २१ - इसी प्रकार जो उबाला हुआ न हो वह बेर, वंश -करी काश्यपनालिका तथा अपनत्र तिल पपड़ी और कदम्ब फल न ले । 3 बहु परगृहेऽस्ति विविध खाद्य स्वाद्यम् । न तत्र पण्डितः कुप्येत्, इच्छा दद्यात् परो न वा ॥२७॥ For Private & Personal Use Only २२ - इसी प्रकार चावल का पिष्ट पूरा न उबला हुआ गर्म" जल४१, तिल का पिष्ट, पोई-साग और सरसों की खली ४२ अपक्व न ले । २३ अपक्व और शस्त्र से अपरिणत बिजोरा मूला और मूले के कैथ गोल टुकड़े को मन कर भी न चाहे । २४ - इसी प्रकार अपक्व फलचूर्णं, बीजपूर्ण, बहेड़ा और प्रियाल फल ४८ न ले । २५ मि सदा समुदाना भिक्षा करे, उच्च और नीच सभी कुलों में जाए, नीच कुल को छोड़कर उच्च कुल में न जाए । 1 २६ - भोजन में अमूच्छित मात्रा को जानने वाला, एषणारत पण्डित मुनि अदीन भाव से वृति (शिक्षा) की एपणा करे ( भिक्षा न मिलने पर ) विषाद न करे । । २७ - गृहस्थ के घर में नाना प्रकार का प्रचुर खाद्य-स्वाद्य होता है, (किन्तु न देने पर ) पण्डित मुनि कोप न करे । (यों करे की अपनी इच्छा है, दे या न दे । www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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