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पिडेसणा ( पिण्डषणा)
२६७ १४-उप्पलं पउमं वा वि उत्पलं पद्म वाऽपि,
कुमुयं वा मगदंतियं । कुमुदं वा 'मगदन्तिकाम्। अन्नं वा पुप्फ सच्चित्तं
अन्यद्वा पुष्पं सचित्त, तं च संलंचिया दए ॥ तच्च सलुञ्च्य दद्यात् ॥१४॥
अध्ययन ५ (द्वि०उ०) : श्लोक १४-२०
१४-१५---कोई उत्पल१६, पद्म२९, कुमुद२१, मालती२२ या अन्य किसी सचित्त पुष्प का छेदन कर भिक्षा दे वह भक्त-पान संयति के लिए अकल्पनीय होता है, इसलिए मुनि देती हुई स्त्री को प्रतिषेध करे- इस प्रकार का आहार मैं नहीं ले सकता ।
१५-तं भवे भत्तपाणं तु
संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥
तद्भवेद् भक्त-पानं तु, संयतानामकल्पिकम् । ददतीं प्रत्याचक्षीत, न मे कल्पते तादृशम् ॥१॥
१६-उप्पलं पउमं वा वि
कुमुयं वा मगदंतियं । अन्नं वा पुप्फ सच्चित्तं तं च सम्मद्दिया दए ॥
उत्पलं पद्म वाऽपि, कुमुदं वा 'मगदन्तिकाम्' । अन्यद्वा पुष्पं सचित्तं, तच्च संमृद्य दद्यात् ॥१६॥
१६-१७-कोई उत्पल, पद्म, कुमुद, मालती या अन्य किसी सचित्त पुष्प को कुचल कर२४ भिक्षा दे, वह भक्त-पान संयति के लिए अकल्पनीय होता है, इसलिए मुनि देती हुई स्त्री को प्रतिषेध करे—इस प्रकार का आहार में नहीं ले सकता।
१७-तं भवे भत्तपाणं तु
संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥
तद्भवेद् भक्त-पानं तु, संयतानामकल्पिकम् । ददती प्रत्याचक्षीत, न मे कल्पते तादृशम् ॥१७॥
लय
१८-सालुयं वा विरालियं
शालूकं वा विरालिका, कुमुदुप्पलनालियं । कुमुदोत्पलनालिकाम् । मुणालियं सासवनालियं मृणालिका सर्षपनालिका, उच्छुखंड अनिव्वुडं ॥ इक्षु-खण्डमनिव॒तम् ॥१८॥
१८-१६-कमलकन्द२६, पलाशकन्द, कुमुद-नाल, उत्पल-नाल, पद्म-नाल२८, सरसों की नाल२६, अपवव गंडेरी", वृक्ष, तृण' या दूसरी हरियाली की कच्ची नई कोंपल न ले।
१६-तरुणगं वा पवालं
रुक्खस्स तणगस्स वा । अन्नस्स वा वि हरियस्स आमगं परिवज्जए॥
तरुणकं वा प्रवालं, रूक्षस्य तृणकस्य वा। अन्यस्य वापि हरितस्य, आमकं परिवर्जयेत् ॥१६॥
२०-तरुणियं व छिवाडि
आमियं भज्जियं सई। देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥
तरुणी वा छिवाडि', आमिका भजितां सकृत् । ददतीं प्रत्याचक्षीत, न मे कल्पते तादृशम् ॥२०॥
२०-- कच्चो और एक बार भूनी हुई33 फली* देती हुई स्त्री को मुनि प्रतिषेध करे-इस प्रकार का आहार में नहीं ले सकता।
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