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________________ २८ दसवेआलियं ( दशवकालिक ) इसके दो कारण हो सकते हैं-- (१) जो श्रमण उस समय जीवित थे और जिन्हें जो-जो आगम कण्ठस्थ थे, उन्हीं के अनुसार आगम संकलित किये गए। यह जानते हुए भी कि एक ही बात दो भिन्न भागमों में भिन्न प्रकार से कही गई है, देवद्धिगणी क्षमाश्रमण ने उनमें हस्तक्षेप करना अपना अधिकार नहीं समझा। (२) नौवीं शताब्दी में सम्पन्न हुई माथुरी तथा वल्लभी वाचना की परम्परा के अवशिष्ट श्रमणों को जैसा और जितना स्मृति में था उसे संकलित किया गया । वे श्रमण बीच-बीच में अनेक आलापक भूल भी गये हों-यह भी विसंवादों का मुख्य कारण हो सकता है।' ज्योतिष्करंड की वृत्ति में कहा गया है कि वर्तमान में उपलब्ध अनुयोगद्वार सूत्र माथुरी वाचना का है और ज्योतिष्करंड के कर्ता बल्लभी वाचना की परम्परा के आचार्य थे। यही कारण है कि अनुयोगद्वार और ज्योतिष्करण्ड के संख्या स्थानों में अन्तर प्रतीत होता है। अनुयोगद्वार के अनुसार शीर्षप्रहेलिका की संख्या १६३ अंकों की है और ज्योतिष्करण्ड के अनुसार वह २५० अंकों की। ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के प्रारम्भ (लगभग १७५-१८२) में उच्छिन्न अंगों के संकलन का प्रयास हुआ था । चक्रवर्ती खारवेल जैन-धर्म का अनन्य उपासक था। उसके सुप्रसिद्ध "हाथी गुम्फा" अभिलेख में यह उपलब्ध होता है कि उसने उड़ीसा के कुमारी पर्वत पर जैन श्रमणों का संघ बुलाया और मौर्य काल में जो अंग उच्छिन्न हो गये थे उन्हें उपस्थित किया। इस प्रकार आगम की व्यवस्थिति के लिए अनेक बार अनेक प्रयास हुए। यह भी माना जाता है कि प्रत्येक अवसर्पिणी में चरम श्रुतधर आचार्य सूत्र-पाठ की मर्यादा करते हैं और वे दशवकालिक का नवीन संस्करण प्रस्तुत करते हैं । यह अनादि संस्थिति है। इस अवसर्पिणी में अन्तिम श्रुतधर वचस्वामी थे। उन्होंने सर्वप्रथम सत्र-पाठ की मर्यादा की। प्राचीन नामों में परिवर्तन कर मेधकुमार, जमालि आदि के नामों को स्थान दिया। इस मान्यता का प्राचीनतम आधार अन्वेषणीय है । आगम-संकलन का यह संक्षिप्त इतिहास है। प्रस्तुत आगम : स्वरूप और परिचय प्रस्तुत आगम का नाम दशवकालिक है। इसके दस अध्ययन हैं और यह विकाल में रचा गया इसलिए इसका नाम दशवकालिक रखा गया। इसके कर्ता श्रुतकेवली शय्यंभव हैं। अपने पुत्र शिष्य-मनक के लिए उन्होंने इसकी रचना की। वीर संवत् ७२ के आस-पास "चम्पा" में इसकी रचना हुई। इसकी दो चूलिकाएं हैं। अध्ययनों के नाम, श्लोक संख्या और विषय इस प्रकार हैंअध्ययन श्लोक संख्या विषय (१) द्रुमपुष्पिका धर्म-प्रशंसा और माधुकरी वृत्ति। (२) थामण्यपूर्वक संयम में धृति और उसकी साधना। (३) क्षुल्लकाचार-कथा आचार और अनाचार का विवेक । (४) धर्म-प्रज्ञप्ति या षड्जीवनिका सूत्र २३ तथा श्लोक २८ जीव-संयम तथा आत्म-संयम का विचार। १-सामाचारी शतक-आगम स्थापनाधिकार.....३८ वां । २-(क) सामाचारी शतक ---आगम स्थापनाधिकार-३८ वां। (ख) गच्छाचार पत्र ३-४॥ ३-जर्नल आफ दी बिहार एण्ड ओडिसा रिसर्च सोसाइटी, भा० १३, पृ० २३६ ४-प्रवचन परीक्षा, विश्राम ४, गाथा ६७, पत्र ३०७-३०६ । ५-तत्त्वार्थ श्रुतसागरीय वृत्ति (पत्र ६७) में इसका नाम "वृक्षकुसुम" दिया है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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