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पिंडेसणा ( पिण्डैषणा )
२५५ अध्ययन ५ (प्र०उ०) : श्लोक ६७ टि० २१५-२२० मोक्षार्थ-प्रयुक्त किया है। उनके अनुसार मोक्ष की साधना शरीर से होती है और शरीर का निर्वाह आहार से होता है । मोक्ष-साधना के लिए शरीर का निर्वाह होता रहे इस दृष्टि से मुनि को आहार करना चाहिए, सौन्दर्य और बल बढ़ाने के लिए नहीं । २१५. तीता ( तिक्त ) ( तित्तगं क ) :
तिक्त के उदाहरण-करेला, खीरा, ककड़ी आदि हैं। २१६. कडुवा ( कडुयं क ) :
कटुक के उदाहरण --त्रिकटु (सोंठ, पीपल और कालीमिर्च) अश्वक और अदरक आदि हैं । २१७. कसैला ( कसायं क ) :
कषाय के उदाहरण-आँवले , निष्पाव (वल्लधान्य) आदि हैं। २१८. खट्टा ( अंबिलं ख):
खट्टे के उदाहरण - तक्र, कांजी आदि है । २१६. मीठा ( महरं ख ):
मधुर के उदाहरण-क्षीर", जल११, मधु१२ आदि । २२०. नमकीन ( लवणं ग) :
नमकीन के उदाहरण --नमक आदि ।
१- (क) जि० चू० पृ० १६० : 'एयलद्धमन्नत्थपउत्त' मिति अण्णो-मोक्खो तष्णिमित्तं आहारेयव्वंति, तम्हा साहुणा सब्भावाण
कुलेसु साधुत्ति (न) जिभिदियं उबालभइ, जहा जमेतं मया लद्ध एतं सरीरसगडस्स अक्खोवंगसरिसंतिकाऊण पउत्तं
न वण्णरूवबलाइनिमित्तंति । (ख) हा० टी० ५० १८० : 'अन्यार्थम्' अक्षोपाङ्गन्यायेन परमार्थतो मोक्षार्थं प्रयुक्तं तत्साधकम् । २-अ० चू० पृ० १२४ : 'तित्तगं' कारवेल्लाति । ३-(क) जि० चू० पृ० १८६ : तत्थ तित्तगं एलगवालुगाइ।
(ख) हा० टी० ५० १८० : तिक्तकं वा एलुकवालुङ्कादि । ४- अ० चू० पृ० १२४ : 'कडुयं त्रिकडुकाति । ५-जि० चू० पृ० १८६ : कडुमस्सगादि, जहा पभूएण अस्सगेण संजुत्तं दोद्धगं । ६-हा० टी० प०१८० : कटुकं वा आकतीमनादि । ७-अ० चू० पृ० १२४ : 'कसाय' आमलकसारियाति । ८-(ख) जि० चू० पृ० १८९ : कसायं निष्फायादी।
(ख) हा० टी० ५० १८० : कषायं वल्लादि । ६-(क) अ० चू० पृ० १२४ : अंबिलं तक्क-कंजियादि ।
(ख) जि० चू० पृ० १८६ : अंबिलं तक्कंबिलादि ।
(ग) हा० टी०प० १८० : अम्लं तक्रारनालादि । १०---अ० चू० पृ० १२४ : मधुरं खीराति । ११–जि० चू० पृ० १८६ : मधुरं जलखीरादि । १२-हा० टी० ५० १८० : मधुरं क्षीरमध्वादि । १३- (क) अ० चू० पृ० १२४ : लवणं सामुद्दलवणातिणा सुपडियुरामण्णं ।
(ख) जि० चू० पृ० १८६ : लवणं पसिद्धं चेव । (ग) हा० टी० ५० १८० : लवणं वा प्रकृतिक्षारं तथाविधं शाकादिलवणोत्कटं वाऽन्यत् ।
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