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________________ पिडेसणा (पिण्डया) १३१. वर्णिका ( वण्णिय क ) : इसका अर्थ है पीली मिट्टी' क १३२. वेतिका ( सेडिय इसका अर्थ है खड़िया मिट्टी । ख १३३. सौराष्ट्रका ( सोरट्रिय ) सौराष्ट्र में पाई जाने वाली एक प्रकार की मिट्टी । इसे गोपीचन्दन भी कहते हैं। वर्णिकारों के अनुसार स्वर्णकार सोने पर चमक लाने के लिए इस मिट्टी का उपयोग करते थे । * १३४. तत्काल पीसे हुए आटे ( पिट्ठ ख ) : चावलों का कच्चा और अपरिणत आटा 'पिष्ट' कहलाता है | अगस्त्य सिंह और जिनदास के अनुसार अग्नि की मंद आँच से पकाया जाने वाला अपक्व पिष्ट एक प्रहर से परिणत होता है और तेज आँच से पकाया जाने वाला शीघ्र परिणत हो जाता है । १३५. अनाज के भूसे या छिलके ( कुक्कुस ): ख चावलों के छिलकों को 'कुक्कुस' कहा जाता है । १३६. फल के सूक्ष्म खण्ड ( उक्कट्ठे ग ) : २२६ अध्ययन ५ ( प्र० उ० ) : श्लोक ३४ टि० १३१-१३६ उत्कृष्ट शब्द के 'उक्किट्ठ", 'उक्कट्ठ' और 'उक्कुट्ठ'६ ये तीन शब्द बनते हैं । भिन्न-भिन्न आदर्शो में इन सब का प्रयोग मिलता है । 'उत्कृष्ट' का अर्थ फलों के सूक्ष्म खण्ड अथवा वनस्पति का चूर्ण होता है" । १- (क) अ० चू० पृ० ११० : वण्णिता पीतमट्टिया । (ख) जि० चू० पृ० १५६ : वष्णिया पीयमट्टिया । (ग) हा० टी० १० १७० वर्षिका पीतमुसिका । (क) अ० चू० पृ० ११० : सेडिया महासेडाति । (ख) जि० चू० पृ० १७६ : सेढिया गंडरिया I (ग) हा० टी० प० १७० : श्वेतिका - शुक्लमृत्तिका । ३ शा० नि० पृ० ६४ : सौराष्ट्र याढकीतुवरीपर्पटीकालिकासती । सुजाता देशभाषायां गोपीचन्दनमुच्यते ॥ ४- ( क ) अ० चू० पृ० ११० : सोरट्टिया तूवरिया सुवण्णस्स ओप्पकरणमट्टिया । (ख) जि० ० ० १७ सोरडिया उवरिया, जोए सुवणारा उप्प करेति सुवणस्स पिडं । ५. (क) अ० ० पृ० ११० : आमपिट्ठ आमओ लोट्टो । सो अपिधणो पोरुसीए परिणमति । बहुइंधणो आरतो चेव । (ख) जि० चू० पृ० १७६ : आमलोट्ठो, सो अप्पेधणो पोरिसिमित्तण परिणमड बहुइ घणो आरतो परिणमइ । ६ – ( (क) अ० चू० पृ० ११०: कुक्कुसा चाउलत्तया । (ख) जि० चू० पृ० १७६ : कुक्कुसा चाउलातया । (ग) हा० टी० प० १७० कुक्कुसाः प्रतीताः । (घ) नि० ४.३२ ० सा ७ - ० ८.१.१२८ : 'उक्किट्ठ' इत् कृपादी । ८- - हैम० ८.१.१२६ : 'उक्कट्ठ' ऋतोऽत् । Jain Education International ९०८.१.१३१ ''उत्पाद १० (क) नि० भा० ० १४०० उट्ठो नाम सविसवगस्थतिसंकुर फलागि वा उति हि होतो, एस उक्कुट्ठो हत्थो भणति । (ख) नि० ४.३० पू० सचिवस्तीग्गो ओक्को भणति । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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