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________________ दसवेआलियं (दशवकालिक) २२८ अध्ययन ५ (प्र० उ०) : श्लोक ३३-३४ टि०१२६-१३० १६. कुक्कुसगतेण हत्थेण... १७. उक्कुट्ठगतेण हत्थेण.. ............ श्लोक ३३: १२६. जल से प्रार्द्र, सस्निग्ध ( उदओल्ले ससिणिद्धे क ) : जिससे बूदें टपक रही हों उसे आर्द्र' और केवल गीला-सा हो उसे सस्निग्ध' कहा जाता है। १२७. सचित्त रज-कण ( ससरक्खे ख ) : विशेष जानकारी के लिए देखिए ४.१८ का टिप्पण संख्या ६६ । १२८. मृत्तिका (मट्टिया ख ) : इसका अर्थ है मिट्टी का ढेला या कीचड़ । १२६. क्षार ( उसे ख ) : इसका अर्थ है खारी या नोनी मिट्टी। श्लोक ३४: १३०. गैरिक ( गेरुय क ) : इसका अर्थ है लाल मिट्टी। १.---(क) जि० चू० पृ० १७६ : उद उल्लं नाम जलतितं उद उल्लं। (ख) हा० टी० ५० १७० : उदकाो नाम गलदुदक बन्दुयुक्तः । २-(क) नि० भा० गा० १४८ चूणि : जत्थूदबिंदू ण संविज्जति तं ससिणिद्धं । (ख) अ० चू० पृ० १०८ : ससिणिद्ध-जं उदगेण किचि णिद्ध', ण पुण गलति । (ग) जि० चू० पृ० १७६ : ससिणिद्ध नाम जं न गलइ । (घ) हा० टी० ५० १७० : सस्निग्धो नाम ईषदु दकयुक्तः । ३ ---(क) अ० चू० पृ० १०६ : ससरक्ख पंसु-रउग्गुंडितं । (ख) जि० चू० पृ० १७६ : सस रक्खेण ससरक्खं नाम पंसुरजगुंडियं । (ग) हा० टी० ५० १७० : सरजस्को नाम-पृथिवी रजोगुण्डितः । ४- (क) अ० चू० पृ० १०६ : मट्टिया लेटुगो। (ख) जि० चू० पृ० १७६ : मट्टिया कडउमट्टिया चिक्खल्लो। (ग) हा० टी० ५० १७० : मृद्गतो नाम–कर्दमयुक्तः । ५ -(क) अ० चू० पृ० १०६ : उसो लवणपंसू । (ख) जि० चू० पृ० १६७ : ऊसो णाम पंसुखारो। (ग) हा० टी० ५० १७० : अष:-पांशु क्षारः । ६–(क) अ० चू० पृ० ११० : गेरुयं सुवण्णगेहतादि । (ख) जि० चू० १० १७६ : गेरुअ सुवण्ण ( रसिया)। (ग) हा० टी० ५० १७० : गैरिका-धातुः । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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