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________________ पिंडेसणा ( पिण्डैषणा) २२७ अध्ययन ५ (प्र० उ०): श्लोक ३२ टि० १२३-१२५ श्लोक ३२: १२३. पुराकर्म-कृत ( पुरेकम्मेण क ) : साधु को भिक्षा देने के निमित्त पहले सजीव जल से हाथ, कड़छी आदि धोना अथवा अन्य किसी प्रकार का आरम्भ-हिंसा करना पूर्व-कर्म दोष है। १२४. बर्तन से ( भायणेण ख ): ___ काँसे आदि के बर्तन को 'भाजन' कहा जाता है । निशीथ धूर्णि के अनुसार मिट्टी का बर्तन 'अमत्रक' या 'मात्रक' और कांस्य का पात्र 'भाजन' कहलाता है। १२५. श्लोक ३३-३४ : पाठान्तर का टिप्पण : एवं उदओल्ले ससिण द......॥३३।। गेरुय व पणय...............||३४।। टीकाकार के अनुसार ये दो गाथाएँ हैं । धुणि में इनके स्थान पर सत्रह श्लोक हैं। टीकाभिमत गाथाओं में 'एवं' और 'बोधव्वं' ये दो शब्द जो हैं वे इस बात के सूचक हैं कि ये संग्रह-गाथाएँ हैं । जान पड़ता है कि पहले ये श्लोक भिन्न-भिन्न थे फिर बाद में संक्षेपीकरण की दृष्टि से उनका थोड़े में संग्रह किया गया। यह कब और किसने किया इसकी निश्चित जानकारी हमें नहीं है। इसके बारे में इतना ही अनुमान किया जा सकता है कि यह परिवर्तन चूणि और टीका के निर्माण का मध्यवर्ती है । अगस्त्य पूणि की गाथाए इस प्रकार हैं : १. उदओल्लेण हत्थे ण दवीए भायणेण वा । देतियं पडियाइक्खे ण मे कप्पति तारिसं । २. ससिणिद्धेण हत्थेण.... ३. ससरक्खेण हत्थेण.. ४. मट्टियागतेण हत्थेण.............. ५. ऊसगतेण हत्थेण..... ६. हरितालगतेण हत्थेण...... ... ७. हिंगोलुयगतेण हत्थेण.. ८. मणोसिलागतेण हत्थेण........ ६. अंजणगतेण हत्थेण. १०. लोणगतेण हत्थेण.... ११. गेरुयगतेण हत्थेण.... १२. वणियगतेण हत्थेण.. १३. सेडियगतेण हत्थेण . १४. सोरठ्ठियगतेण हत्थेण ... १५. पिट्ठगतेण हत्थेण.......... ............ १- (क) अ० चू० पृ० १०८ : पुरेकम्मं जं साधुनिमितं धोवणं हत्यादीणं । (ख) जि० चू० पृ० १७८ : पुरेकम्मं नाम जं साधूणं दट्ठूणं हत्थं भायणं धोवइ तं पुरेकम्म भण्णइ । (ग) हा० टी० प० १७० : पुरः कर्मणा हस्तेन साधुनिमित्तं प्राक्कृतजलोज्ननव्यापारेण । २ (क) जि० चू० पृ० १७६ : भायणं कसभायणादि । (ख) हा० टी० ५० १७० : 'भाजनेन वा' कांस्यभाजनादिना । ३-(क) नि० ४.३६ चू० : पुढविमओ मत्तओ। कंसमयं भायणं । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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