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________________ पिंडेषणा ( पिण्डेषणा ) ७-३ इंगालं छारियं रासि तुसरासि च गोमयं । सस रोहि पाहि संजओ तं न अफ्फमे || ८- न चरेज्ज वासे वासंते महियाए व पडंतीए । महावाए व वायंते तिरिच्छपाइमेसु ६- न चरेज्ज पेससामंते वंभरवसाणुए बंभयारिस्स दंतस्स होन्जा तस्थ विसोत्तिया ॥ १० - अणावणे चरंतरस संसग्गीए अभिवणं । होज्ज वयाणं बयाणं पीला सामण्णम्मि य संसओ ॥ वा ॥ ११- तम्हा एवं विद्याचिता दोसं चजए मुणी १२ - ४ साणं सूइयं गावि दित्तं गोणं हयं गयं । संडिन्भं कलहं जुद्धं दूरओ दुग्गणं । बेससामंत एगतमस्सिए || Jain Education International परिवज्जए । १३ – अणुन्नए नावणए अप्पहि अणाउले । इंदियाणि जहाभागं दमइत्ता मुणी चरे ॥ १८१ आङ्गारं क्षारिक राशि राशि च गोमयम् । सतरक्षाभ्यां पादाभ्याम्, संयतस्तं नाक्रामेत् ॥७॥ न चरेद्वर्षे वर्षति महिकायां वा पतन्त्याम् । महावाते या तिसंपातेषु बाति, वा ॥ ५ ॥ न चरेद् बेशसामन्ते, ब्रह्मचर्यवशानुगः ब्रह्मचारिणो दान्तस्य, भवेत्तत्र विस्रोतसिका ॥६॥ अनायतने संसर्गेणाऽभीक्ष्णम् भवेद् व्रतानां पीडा, 1 श्रामण्ये च संशयः ॥ १०॥ चरतः, तस्मादेतद् विज्ञाप दोषं दुर्गंति-वर्द्धनम् । वर्जयेद्वेश सामन्तं, मुनिरेकान्तमाश्रितः ॥११॥ इवानं सूतिकां गां दृप्त गां हयं गजम् । 'डि' कलहं युद्ध, दूरतः परिवर्जयेत् ।।१२।। अनुन्नतो अग्रहृष्टोऽनाकुलः इन्द्रियाणि यथाभागं, दमविश्वा मुनिश्चरेत् ।।१३।। नावनतः, For Private & Personal Use Only अध्ययन ५ ( प्र० उ० ) : इलोक ७-१३ ७- संयमीमुनि राति जसे भरे हुए पैरों से" कोयलेर, राख, भूसे और गोबर के ढेर के ऊपर होकर न जाये । ८ - वर्षा बरस रही हो, ३५ कुहरा गिर 38 रहा हो, ६ महावात चल रहा हो और मार्ग में तिर्यक् संपातिम जीव छा रहे हों तो भिक्षा के लिए न जाये । ६- ब्रह्मचर्य का वशवर्ती मुनि" वेश्याबाड़े के समीप " न जाये । वहाँ दमितेन्द्रिय ब्रह्मचारी के भी विस्रोतसिका ४२ हो सकती है- साधना का स्रोत मुड़ सकता है । १० - अस्थान में बार-बार जाने वाले के (याओं का संसर्ग होने के कारण व्रतों की पीड़ा (विनाश) और बामण्य में सन्देह हो सकता है । ४५ ११ इसलिए बढ़ाने वाला दोष जानकर एकान्त (मोक्ष- मार्ग ) ४७ का अनुगमन करने वाला मुनि वेश्या बाड़े के समीप न जाये 1 १२- श्वान, ब्याई हुई गाय, ६ उन्मत्त बैल, अश्व और हाथी, बच्चों के कीड़ास्थल, कलह" और युद्ध ( के स्थान ) को५२ दूर से टाल कर जाये । १३ – मुनि न ऊंचा मुहकर १५, न झुककर५६, न हृष्ट होकर न आकुल होकर 25, (किन्तु ) इन्द्रियों को अपने-अपने विषय के अनुसार दमन कर ले। www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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