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पंचमं अज्झयणं : पञ्चम अध्ययन पिंडेसणा : पिण्डैषणा पढोमोसो : प्रथम उद्देशक
मूल
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
१-संपत्ते भिक्खकालम्मि
असंभंतो अमुच्छिओ। इमेण कमजोगेण भत्तपाणं वेसए ॥
संप्राप्ते भिक्षाकाले, असंभ्रान्तोऽमूच्छितः । अनेन क्रमयोगेन, भक्तपानं गवेषयेत् ॥१॥
१–भिक्षा का काल प्राप्त होने पर मुनि असंभ्रांत और अमूच्छित रहता हुआ इस—आगे कहे जाने वाले, क्रम-योग से भक्त-पान की गवेषणा करे।
२- से गामे वा नगरे वा
गोयरग्गगओ मणी । चरे मंदमणुव्विग्गो अव्वक्खित्तेण चेयसा ॥
स ग्रामे वा नगरे वा, गोचराग्रगतो मुनिः। चरेन्मन्दमनुद्विग्नः, अव्याक्षिप्तेन चेतसा ॥२॥
२- गाँव या नगर में गोचराग्र के लिए निकला हुआ वह मुनि धीमे-धीमे,० अनुद्विग्न और अव्याक्षिप्त चित्त से१२ चले।
३- पुरओ जुगमायाए
पेहमाणो महि चरे । वज्जतो बीयहरियाई पाणे य दगमट्रियं ॥
पुरतो युगमात्रया, प्रेक्षमाणो महीं चरेत् । वर्जयन् बीजहरितानि. प्राणांश्च दक-मृत्तिकाम् ॥३॥
___३-आगे युग-प्रमाण भूमि को५ देखता हुआ और बीज, हरियाली,१३ प्राणी, जल तथा सजीव-मिट्टी को टालता हुआ चले।
४- ओवायं विसमं खाj
विज्जलं परिवज्जए । संकमेण न गच्छेज्जा विज्जमाणे परवकमे५ ॥
अवपातं विषम स्थाणु, 'विज्जल' परिवर्जयेत् । संक्रमेण न गच्छेत्, विद्यमाने परक्रमे ॥४॥
५- पवडते व से तत्थ
पक्खलंते व संजए । हिंसेज्ज पाणभूयाई तसे अदुव थावरे ॥
प्रपतन् वा स तत्र, प्रस्खलन् वा संयतः । हिस्यात् प्राणभूतानि, त्रसानथवा स्थावरान ॥५॥
४-दूसरे मार्ग के होते हुए गड्ढे, उबड़ खाबड़ भू-भाग, कटे हुए सूखे पेड़ या अनाज के डंठल २३ और पंकिल मार्ग को टाले तथा संक्रम (जल या गड्ढे को पार करने के लिए काष्ठ या पाषाण-रचित पुल) के ऊपर से२४ न जाये।
५-६-वहाँ गिरने या लड़खड़ा जाने से वह संयमी प्राणी-भूतों - त्रस अथवा स्थावर जीवों की हिंसा करता है, इसलिए सुसमाहित संयमी दूसरे मार्ग के होते हुए२७ उस मार्ग से न जाये । यदि दूसरा मार्ग न हो तो यतनापूर्वक जाये।
६-तम्हा तेण न गच्छेज्जा
संजए सुसमाहिए । सइ अन्नेण मग्गेण जयमेव परक्कमे ॥
तस्मात्तेन न गच्छेत्, संयतः सुसमाहितः। सत्यन्यस्मिन् मार्गे, यतमेव पराक्रमेत् ॥६॥
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