SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छज्जीवणिया ( षड्जीवनिका ) १३८ अध्ययन ४ : सूत्र ११ टि० ४७-४६ आ चुकी है। जो त्रास का अनुभव करते हैं, उन्हें त्रस कहते हैं। जो एक ही स्थान पर अवस्थित रहते हैं, उन्हें स्थावर कहते हैं।' कुंथु आदि सूक्ष्म त्रस हैं और गाय आदि बादर त्रस हैं । साधारण वनस्पति आदि सूक्ष्म स्थावर हैं और पृथ्वी आदि बादर स्थावर है । " 'सुमं वा बायरं वा तसं वा थावरं वा' इसके पूर्व 'से' शब्द है । 'से' शब्द का प्रयोग निर्देश में होता है । यहाँ यह शब्द पूर्वोक्त 'प्राणातिपात' की ओर निर्देश करता है । वह प्राणातिपात सूक्ष्म शरीर अथवा बादर शरीर के प्रति होता है । 3 अगस्त्य चूर्णि के अनुसार यह आत्मा का निर्देश करता है। हरिभद्र सूरि के अनुसार यह शब्द मागधी भाषा का है । इसका शब्दार्थ है अथ । इसका प्रयोग किसी बात के कहने के आरम्भ में किया जाता है । " ४७. ( अइयाएन्जा ) : हरिभद्रसूरि के अनुसार 'अवाजा' शब्द 'अतिपातयामि' के अर्थ में प्रयुक्त है। प्राकृत में आये प्रयोगों में ऐसा होता है। इस प्रकार सभी महाव्रत और व्रत में जो पाठ है उसे टीकाकार ने प्रथम पुरुष मान प्राकृत शैली के अनुसार उसका उत्तम पुरुष में परिवर्तन किया है | अगस्त्य चूर्णि में सर्वत्र उत्तम पुरुष के प्रयोग हैं, जैसे – “नेव सयं पाणे अइवाएमि' । उत्तम पुरुष का भी ' अहवाएज्जा' रूप बनता है । इसलिए पुरुष परिवर्तन की आवश्यकता भी नहीं है । उक्त स्थलों में प्रथम पुरुष की क्रिया मानी जाय तो उसकी संगति यों होगी पढमे भंते ! महत्वए पाणाइवायाओ वेरमणं' से लेकर 'नेव सयं' के पहले का कथन शिष्य की ओर से है और 'नेव सयं' से आचार्य उपदेश देते हैं और 'न करेमि' से शिष्य आचार्य के उपदेशानुसार प्रतिज्ञा ग्रहण करता है । उपदेश की भाषा का प्रकार सूत्रकृताङ्ग (२.१.१५ ) में भी यही है । आचारला (१५।४३ ) में महाव्रत प्रत्याख्यान की भाषा इस प्रकार है- "पढमं भंते ! महव्वयं पच्चवखामि सव्वं पाणाइवायंसे सुहुमं वा बायरं वा, तसं वा थावरं वाणेवसयं पाणाइवायं कारेज्जा णेवण्णेहि पाणाइवायं कारवेज्जा, ठेवण्णं पाणाइवायं करतं समणुजाणेज्जा, जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणसा वयसा कायसा । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।" स्वीकृत पाठ का अगस्त्य चूर्णि में पाठान्तर के रूप में उल्लेख हुआ है । पाँच महाव्रत और छट्टु व्रत में अगस्त्य घूर्णिके अनुसार जो पाठ-भेद है उनका अनुवाद इस प्रकार है : -- "भंते ! मैं प्राणातिपात विरति रूप पहले महाव्रत को ग्रहण करने के लिए उपस्थित हुआ हूँ। भंते ! मैं पहले महाव्रत में प्राणातिपात से विरत हुआ हूँ ।" यही क्रम सभी महाव्रतों और व्रत का है । ४८-४९ मैं स्वयं नहीं करूंगा अनुमोदन भी नहीं करूँगा ( नेव सर्व पाणे अइवाएमा न समभुजाणेज्जा) : इस तरह त्रिविध-त्रिविध-तीन करण और तीन योग से प्रत्याख्यान करने वाले के ४६ भङ्गों (विकल्पों) से त्याग होते हैं । इन १ – (क) अ० चू० पृ० ८१ : 'तसं वा' 'त्रसी उद्वेजने' त्रस्यतीति त्रसः तं वा, 'थावरों' जो थाणातो ण विचलति तं वा । वा सही विकल्पे सब्वे पगारा महंतव्या वेदिका पुट क्षुद्रजन्तुषु गरिब पाणातिवातो" ति एतस्य विसेसणत्वं सहमातिवयणं । जीवस्स असंखेज्जपदेसते सव्वे सुहुम-बायर विसेसा सरीरदव्वगता इति सुहुम-बायरसंसणेण एगग्गहणे समाणजातीयसूतणमिति । (ख) जि० चू० पृ० १४६-४७ : तत्थ जे ते सुहुमा बादरा य ते दुबिहा तं० तसा य थावरा वा, तत्थ तसंतीति तसा, जे एगंम ठाणे अर्वाट्टिया चिट्ठति ते थावरा भण्णं ति 1 २० टी० प० १४५ सूक्ष्मनसः कुन्थ्यादि स्थावरी बनस्पत्यादि बावरस्वसो गवादिः स्वावरः पृथिव्यादिः । ३- जि० चू० पृ० १४६ : 'से' त्ति निद्देसे बट्टइ, कि निद्दिसति ?, जो सो पाणातिवाओ तं निद्देसेइ, से य पाणाइवाए सुहमसरीरेसु वा बादरसरीरेसु वा होज्जा । ४ - अ० चू० पृ० ८१ : से इति वयणाधारेण अप्पणो निद्देसं करेति, सो अहमेव अब्भुवगम्म कत पच्चक्खाणो । 'से' शब्दो मागधदेशीप्रसिद्धः अथ शब्दार्थः स चोपन्यासे । ५- हा० टी० प० १४५ ६ - हा० टी० प० १४५ शेव सपा यासि प्राकृता छान्दसत्वात् हि तिहो भवन्ती' ति न्यायात नंब स्वयं प्राणिनः अतिपातयामि नैवान्यैः प्राणिनोऽतिपातयामि, प्राणिनोऽतिपातयतोऽप्यन्यान्न समनुजानामि । ७ हेमश० ३.१७७ वृ० यथा तृतीयत्रये अइवाएन्जा अयायायेज्जा न समजागामि न समजानेजा था। : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy