SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छज्जीवणिया (षड्जीवनिका ) १२१ १- भगवान् महावीर का गोत्र काश्यप था । इसलिए वे काश्यप कहलाते थे' । २- काश्य का अर्थ इक्षु-रस होता है। उसका पान करने वाले को काश्यप कहते हैं । भगवान् ऋषभ ने इक्षु-रस का पान किया था अतः वे काश्यप कहलाये । उनके गोत्र में उत्पन्न व्यक्ति इसी कारण काश्यप कहलाने लगे । भगवान् महावीर २४ वें तीर्थङ्कर थे । अतः वे निश्चय ही प्रथम तीर्थंकर ऋषभ के धर्म-वंश या विद्या-वंश में उत्पन्न कहे जा सकते हैं । इसलिए उन्हें काश्यप कहा है। धनञ्जय नाममाला में भगवान् ऋषभ का एक नाम काश्यप बतलाया है । भाव्यकार ने काश्य का अर्थ क्षत्रिय-तेज किया है और उसकी रक्षा करने वाले को काश्यप कहा है । भगवान् ऋषभ के बाद जो तीर्थङ्कर हुए वे भी सामान्य रूप से काश्यप कहलाने लगे । भगवान् महावीर अन्तिम तीर्थङ्कर थे अतः उनका नाम अन्त्य काश्यप मिलता है। ४. श्रमण... महावीर द्वारा (समणेणं महावीरेणं) : आचाराङ्ग के चौबीसवें अध्ययन में चौबीसवें तीर्थंङ्कर के 'महावीर' है । सहज समभाव आदि गुण-समुदाय से सम्पन्न होने के कठोर परीषहों को सहन करने के कारण देवों ने उनका नाम महावीर रखा । 'समण' शब्द की व्याख्या के लिए देखिए अ० १ टि० १४ । यश और गुणों में महान् वीर होने से भगवान् का नाम महावीर पड़ा। जो शूर - विक्रान्त होता है उसे वीर कहते हैं । कषायादि महान् आन्तरिक शत्रुओं को जीतने से भगवान् महाविक्रान्त - महावीर कहलाए । कहा है तीन नाम बतलाए हैं। उनमें दूसरा नाम 'समण' और तीसरा नाम कारण वे 'समय' कहलाए। भयंकर भय भैरव तथा अचेलकता आदि विदारयति यत्कर्म, तपसा च विराजते । तपोवीर्येण युक्तश्च तस्माद्वीर इति स्मृतः ॥ अध्ययन ४ : सूत्र १ टि० ४-५ अर्थात् जो कर्मों को विदीर्ण करता है, तपपूर्वक रहता हैं, जो इस प्रकार तप और वीर्य से युक्त होता है, वह वीर होता है । इन गुणों में महान वीर वे महावी ५. प्रवेदित (पवेइया) : अगस्त्य घृणि के अनुसार इसका अर्थ है-अच्छी तरह विज्ञात-अच्छी तरह जाना हुआ" । हरिभद्र सूरि के अनुसार केवलज्ञान १ --- (क) जि० चू० पृ० १३२ : काश्यपं गोत्तं कुलं यस्य सोऽयं काशपगोत्तो । (ख) हा० टी० प० १३७ : 'काश्यपेने' ति काश्यपसगोत्रेण । २ (क) अ० चू० पृ० ७३ : कासं उच्छू तस्स विकारो- काश्य:- रसः, सो जस्त पाणं सो कासवो उसभसामी, तस्स जो गोत्तजाता ते कासवा, तेण वद्धमाणसामी कासवो, (ख) जि० ० चू० पृ० १३२ : काशो नाम इक्खु भण्णइ, जम्हा तं इक्खु पिवंति तेन काश्यपा अभिधीयते । ३. -धन० नाम० ११४ पृ० ५७ : वषीर्यान् वृषभो ज्यायान् पुरुराद्यः प्रजापतिः । ऐक्ष्वाकु : (क: ) काश्यपो ब्रह्मा गौतमो नाभिजोऽग्रजः ॥ ४. -धन० नाम० पु० ५७ : काश्यं क्षत्रियतेजः पातीति काश्यपः । तथा च महापुराणे - काश्य मित्युच्यते तेजः काश्यपस्तस्य पालनात् । ५-धन० नाम० ११५ ०२० : Jain Education International सम्मतिमतीवीरो महावीरोस्काइपपः । नाथान्वयो वर्धमानो यत्तीर्थमिह साम्प्रतम् ॥ ६० पू०१५.१६ सहसं समजे भीमं भयमेश्वं उरात अबेलयं परीसह सहइति देवेह से नाम कसम भगवं महाबीरे। ७- जि० चू० पृ० १३२ : महंतो यसोगुणेहिं वीरोत्ति महावीरो । हा० टी० प० १२० 'महावीरेण 'शूरवीरविकान्ता विति क्वायादिशत्रुजयान्महाविक्रान्तो महावीरः । ९-हा० डी० प० १३७ : महचासो वीरराव महावीरः । १०- २० ० ० ७३ विदज्ञाने' साधु वेदिता पवेदिता-साधुविष्णाता। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy