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६. अर्थ विषयक मतभेद भी हैं ।'
इन सारी कठिनाइयों के उपरान्त भी उन्होंने अपना प्रयत्न नहीं छोड़ा और वे कुछ कर गए।
कठिनाइयां आज भी कम नहीं हैं, किन्तु उनके होते हुए भी आचार्यश्री तुलसी ने आगम सम्पादन के कार्य को अपने हाथों में ले लिया । उनके शक्तिशाली हाथों का स्पर्श पाकर निष्प्राण भी प्राणवान् बन जाता है तो भला आगम-साहित्य, जो स्वयं प्राणवान् है, उसमें प्राण-संचार करना क्या बड़ी बात है ? बड़ी बात यह है कि आचार्यश्री ने उसमें प्राण-संचार मेरी और मेरे सहयोगी साधु-साध्वियों की असमर्थ अंगुलियों द्वारा कराने का प्रयत्न किया है। सम्पादन कार्य में हमें आचार्यश्री का आशीर्वाद ही प्राप्त नहीं है किन्तु मार्ग-दर्शन और सक्रिय योग भी प्राप्त है । श्राचार्यवर ने इस कार्य को प्राथमिकता दी है और इसकी परिपूर्णता के लिए अपना पर्याप्त समय दिया है । उनके मार्ग-दर्शन, चिन्तन और प्रोत्साहन का संबल पर हम अनेक दुस्तर धाराओं का पार पाने में समर्थ हुए हैं।
प्रस्तुत पुस्तक के प्रथम संस्करण का विद्वानों ने जो स्वागत किया, वह उनकी उदार भावना का परिचायक है । आगम- सम्पादन कार्य के लिए प्राचार्यची तुलसी द्वारा स्वीकृत तस्व नीति तथा सम्पादन कार्य में संलग्न साधु-साध्वियों का यम भी उसका हेतु है। द्वितीय संस्करण में सामान्य संशोधनों के सिवाय कोई मुख्य परिवर्तन नहीं किया गया है। हमें विश्वास है कि यह द्वितीय संस्करण भी पाठकों के लिए उतना ही स्मरणीय होगा ।
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हमारे सम्पादनक्रम में सबसे पहला कार्य है संशोधित पाठ का संस्करण तैयार करना, फिर उसका हिन्दी अनुवाद करना । प्रस्तुत पुस्तक दशवेकालिक सूत्र का द्वितीय संस्करण है। इसमें मूल पाठ के साथ संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद और टिप्पर हैं। इसके प्रथम संस्करण में शब्द सूची थी, पर शब्द सूची मूल पाठ के संस्करण के साथ रखी गई है, इसलिए इस संस्करण में उसे नहीं रखा गया है। प्रस्तुत सूत्र के अनुवाद और संपादन कार्य में जिनका भी प्रत्यक्ष-परोक्ष योग रहा, उन सबके प्रति मैं विनम्र भाव से आभार व्यक्त करता हूँ ।
अत बिहार नई दिल्ली
२५०० वां निर्वाण दिवस
१. स्थानांगवृत्ति, प्रशस्ति १, २ :
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सत्सम्प्रदायहीनत्वात् सदृहस्य वियोगतः । सर्वस्वपरशास्त्राणामदृष्टेरस्मृतेश्च मे ॥ १ ॥ वाचनानामनेकत्वात् पुस्तकानामशुद्धितः । सूत्राणामतिगाम्भीर्या मतभेदाश्व कुत्रचित् ।। २ ।।
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मुनि नथमल
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