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भूमिका
श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार आगमों का वर्गीकरण
ज्ञान पांच हैं-- मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवल । इनमें चार ज्ञान स्थाप्य हैं-वे केवल स्वार्थ हैं । परार्थज्ञान केवल एक है, वह है श्रुत । उसी के माध्यम से सारा विचार-विनिमय और प्रतिपादन होता है !' व्यापक अर्थ में श्रुत का प्रयोग शब्दात्मक और संकेतात्मक-दोनों प्रकार की अभिव्यक्तियों के अर्थ में होता है। अतएव उसके चौदह विकल्प बनते हैं
(१) अक्षर-श्रुत। (२) अनक्षर-श्रुत । (३) संज्ञी-श्रुत। (४) असंज्ञी-श्रुत । (५) सम्यक् -श्रुत। (६) मिथ्या-श्रुत। (७) सादि-श्रुत। (८) अनादि-श्रुत । (९) सपर्यवसित-श्रुत। (१०) अपर्यवसित-श्रुती (११) गमिक-श्रुत। (१२) अगमिक-श्रुत । (१३) अंगप्रविष्ट-श्रुत । (१४) अनंगप्रविष्ट-श्रुत।
संक्षेप में 'श्रुत' का प्रयोग शास्त्र के अर्थ में होता है । वैदिक शास्त्रों को जैसे 'वेद' और बौद्ध शास्त्रों को जैसे 'पिटक' कहा जाता है, वैसे ही जैन-शास्त्रों को 'आगम' कहा जाता है । आगम के कर्ता विशिष्ट ज्ञानी होते हैं। इसलिए शेष साहित्य से उनका वर्गीकरण भिन्न होता है।
कालक्रम के अनुसार आगमों का पहला वर्गीकरण समवायांग में मिलता है। वहां केवल द्वादशाङ्गी का निरूपण है । दूसरा वर्गीकरण अनुयोगद्वार में मिलता है। वहाँ केवल द्वादशाङ्गी का नामोल्लेख मात्र है। तीसरा वर्गीकरण नन्दी का है, वह विस्तृत है। जान पड़ता है कि समवायांग और अनुयोगद्वार का वर्गीकरण प्रासंगिक है। नन्दी का वर्गीकरण आगम की सारी शाखाओं का निरूपण करने के ध्येय से किया हुआ है । वह इस प्रकार है
१-अनुयोगद्वार सूत्र २ : तत्थ चत्तारि नाणाई ठप्पाइ ठवणिज्जाई णो उद्दिसंति णो समुद्दिसति णो अणुण्णविज्जंति, सुय
नाणस्स उद्देसो अणुओगो य पवत्तइ । २–नंदी सूत्र ५१ : से कि तं सुयनाणपरोक्ख । चौद्दसविहं पण्णत्तं तं जहा-अक्खरसुयं"अणंगपविठें ।
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