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बुडियायारकहा ( क्षुल्लिकाचार कथा )
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अध्ययन ३ : इलोक टि०.४५
निशीच भाष्यकार के अनुसार रोगप्रतिकार के लिए नहीं किन्तु मेरा वर्ष सुन्दर हो जाय, स्वर मधुर हो जाय, बल-बड़े अथवा मैं दीर्घ आयु बनूँ, मैं कृश होऊ या स्थूल होऊ – इन निमित्तों से वमन, विरेचन आदि करने वाला भिक्षु प्रायश्चित्त का भागी होता है।
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चूर्णिकारों ने वमन, विरेचन और वस्तिकर्म को आरोग्य प्रतिकर्म कहा है। जिनदास ने रोग न हो, इस अकल्प्य कहा है । इसी आधार पर हमने इन तीनों शब्दों के अनुवाद के साथ 'रोग की सम्भावना से बचने के को बनाए रखने के लिए जोड़ा है।
निशीथ में वमन, विरेचन के प्रायश्चित्त-सूत्र के अनन्तर अरोग-प्रतिकर्म का प्रायश्चित्त सूत्र है । रोग की सम्भावना से बचने की आकांक्षा और वर्ण, बल आदि की आकांक्षा भिन्न-भिन्न हैं ।
मत बस्तिकर्म, विरेचन के निषेध के ये दोनों प्रयोजन रहे हैं, यह उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है।
४५. दंतवण (दंतवणे )
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लोक में विवेचन किया जा रहा है ।
होगा अनाचार का उल्लेख है और यहाँ 'दवणे का दोनों में समानता होने से यहाँ संयुक्त
'पोयणा' का संस्कृत रूप 'दन्तप्रचायन' होता है। इसके निम्न अर्थ मिलते हैं
(१) अगस्त्यसिंह स्थविर और जिनदास महत्तर ने इस शब्द का अर्थ काष्ठ, पानी आदि से दाँतों को पखारना किया है। (२) हरिभद्रसूरि ने इसका अर्थ दांतों का अंगुली आदि से प्रक्षालन करना किया है। अंगुली आदि में दन्तकाष्ठ शामिल नहीं है । उसका उल्लेख उन्होंने 'दन्तवण' के अर्थ में किया है ।
उक्त दोनों अर्थों में यह पार्थक्य ध्यान देने जैसा है । 'दन्तवण' के निम्न अर्थ किये गये हैं :
(१) अगस्त्यसिह स्थविर ने इसका अर्थ दांतों की विभूषा करना किया है।
(२) जिनदास ने इसे 'लोकप्रसिद्ध' कहकर इसके अर्थ पर कोई प्रकाश नहीं डाला । सम्भवतः उनका आशय दंतवन से है। (३) हरिभद्र सूरि ने इसका अर्थ दंतकाष्ठ किया है ।
जिससे दांतों का मल घिस कर उतारा जाता है उसे दंतकाष्ठ कहते हैं ।
'दंतवण' शब्द देशी प्रतीत होता है। वनस्पति, वृक्ष आदि के अर्थ में 'वन' शब्द प्रयुक्त हुआ है। सम्भव है काष्ठ या लकड़ी के अर्थ में भी इसका प्रयोग होता हो। यदि इसे संस्कृत-सम माना जाय तो
दंत- पवन से दन्त-अवण दंतवण हो सकता है। कहा गया है ।
जिस काष्ठ खण्ड से दांत पवित्र किये जाते हैं उसे दन्त (पा) वन दंतवन अनाचार का अर्थ दातुन करना होता है ।
अगस्त्य सिंह स्थविर ने दोनों अनाचारों का अर्थ बिलकुल भिन्न किया है पर 'दंतवण' शब्द पर से 'दांतों की विभूषा' करना - यह
१- नि० भा० गा० ४३३१ वण्ण-सर-रूव-मेहा, वंगवलीपलित-णासणठ्ठा वा । दीहाउ तता वा धूल-किसडा वा ।। २ (क) अ० चू० पृ० ६२ : एतानि आरोग्गपडिकम्माणि रूवबलत्थमणा तिष्ण' । (ख) जि० चू० पृ० ११५ : एयाणि आरोग्गपरिकम्मनिमितं वा ण कप्पड़ । ३- नि० १३.३६, ४०, ४२: जे भिक्खू वमण करेति, करेंतं वा सातिज्जति ।
निमित्त से इनका सेवन लिए, रूप, बल आदि
जे भिक्खू विरेषण करेति, करेतं वा सातिज्जति ।
जे भिक्खु अरोगे य परिक्रम्मं करेति करतं वा सातिज्जति।
- (क) अ० चू० पृ० ६०: दंतपहोवण' दंताण कट्ठोदकादीहि पक्खाण ं ।
(ख) जि० ० पृ० ११३
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तपोवन नाम दंताण कट्टोदगादहि पाण
५- हा० टी० प० ११७ : 'दन्तप्रधावनं' चांगुल्यादिना क्षालनम् ।
६ - अ० चू० पृ० ६२ : दंतमण दसणाणं (विभूसा ) ।
७ - हा० टी० प० ११८ : दन्तकाष्ठं च प्रतीतम् ।
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८ उपा०] १.५ डी० पृ० ७ दन्तमलापकर्षणकाष्ठम् ।
८- प्रव० ४.२१० टी० प० ५१ : दन्ताः पूयन्ते -- पवित्राः क्रियन्ते येन काष्ठखण्डेन तद्दन्तपावनम्
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