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दसवेआलियं (दशवकालिक)
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अध्ययन ३ : श्लोक ५टि० २६ १. आज्ञा लेने पर...... २. मकान के अवग्रह में प्रविष्ट होने पर ...... ३. आंगन में प्रवेश करने पर..... ४. प्रायोग्य तृण, ढेला आदि की आज्ञा लेने पर ...... ५. वसति (मकान) में प्रवेश करने पर.... ६. पात्र विदोष के लेने और कुल-स्थापना करने पर.... ७. स्वाध्याय आरंभ करने पर....... ८. उपयोग सहित भिक्षा के लिए उठ जाने पर...... ६. भोजन प्रारम्भ करने पर..... १०. पात्र आदि वसति में रखने पर...... ११. देवसिक आवश्यक प्रारम्भ करने पर..... १२. रात्री का प्रथम प्रहर बीतने पर...... १३. रात्री का दूसरा प्रहर बीतने पर....... १४. रात्री का तीसरा प्रहर बीतने पर..... १५. रात्री का चौथा प्रहर बीतने पर......
--शय्यातर होता है।
भाष्यकार का अपना मत यह है कि श्रमण रात में जिस उपाश्रय में रहे, सोए और चरम आवश्यक कार्य करे उसका स्वामी शय्यातर होता है।
शय्यातर के अशन, पान, खाद्य, वस्त्र, पात्र आदि अग्राह्य होते हैं । तिनका, राख, पाट-बाजोट आदि ग्राह्य होते हैं।
अण्णो भणति-जदा दोद्धियादिभंडयं दाणाति कुलठ्ठवणाए व ठवियाए। अण्णो भणति-जता सज्झायं आढत्ता काउं । अण्णो भणति - जता उवओगं काउंभिक्खाए गता। अण्णो भणति - जता भुंजिउमारहा। अण्णो भणति--भायणेसु निक्खित्तेसु । अण्णो भणति ...जता देवसियं आवर सयं कतं । अण्णो भणति - रातीए पढमे जामे गते । अण्णो अणति--बितिए। अण्णो भणति-ततिए।
अण्णो भणति-चउत्थे। १-नि० भा० ११४८ चू० : जत्थ राउ द्विता तत्थेव सुत्ता तत्थेव चरिमावस्सयं कयं तो सेज्जातरो भवति । २-नि० भा० गा० ११५१-५४ चू० : दुविह चउविवह छउविह, अढविहो होति बारसविधो वा।
सेज्जातरस्स पिंडो, तव्वतिरित्तो अपिंडो उ॥ दुविहं चउम्विहं छन्विहं च एगगाहाए वक्खाणेति
आधारोवधि दुविधो, विदु अण्ण पाण ओहुबग्गहिओ।
असणादि चउरो ओहे, उवग्गहे छव्विधो एसो ॥ आहारो उवकरणं च एस दुविहो । बे दुया चउरो ति, सो इमो-- अण्णं पाणं ओहियं उवग्गहियं च । असणादि चउरो ओहिए उवग्गहिए य, एसो छव्विहो । इमो अविहो
असणे पाणे वत्थे, पाते सूयादिगा य चउरट्ठा। असणादी वत्थादी, सूयादि चक्कगा तिणि ॥
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