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________________ दसवेआलियं ( दशवैकालिक ) अध्ययन ३ : श्लोक २ टि० ११ 'भन्ते ! भिक्षु-संघ के साथ मेरा कल का भोजन स्वीकार करें।' तथागत ने मौन से स्वीकार किया। सिंह सेनापति स्वीकृति जान तथागत को अभिवादन कर, प्रदक्षिणा कर चला गया । तब सिंह सेनापति ने एक आदमी से कहा- 'जा तू तैयार मांस को देख तो।' तब सिंह सेनापति ने उस रात के बीतने पर अपने घर में उत्तम खाद्य-भोज्य तयार करा, तथागत को काल की सूचना दी। तथागत वहाँ जा भिक्षु-संघ के साथ बिछे आसन पर बैठे । उस समय बहुत से निगंठ वैशाली में एक सड़क से दूसरी सड़क पर, एक चौरास्ते से दूसरे चौरास्ते पर, बाँह उठाकर चिल्लाते थे-- 'आज सिंह सेनापति ने मोटे पशु को मारकर, श्रमण गौतम के लिए भोजन पकाया; श्रमण गौतम जान-बूझकर (अपने ही) उद्देश्य से किये, उस मांस को खाता है ।' तब किसी पुरुष ने सिंह सेनापति के कान में यह बात डाली। सिंह बोला : 'जाने दो आर्यो ! चिरकाल से आयुष्मान् (निगंठ) बुद्ध, धर्म, संघ की निन्दा चाहने वाले हैं । यह असत्, तुच्छ, मिथ्या=अ-भूत निंदा करते नहीं शरमाते । हम तो (अपने) प्राण के लिए भी जान-बूझकर प्राण न मारेंगे।' सिंह सेनापति ने बुद्ध सहित भिक्षु-संघ को अपने हाथ से उत्तम खाद्य-भोज्य से संतर्पित कर, परिपूर्ण किया। तब तथागत ने इसी सम्बन्ध में इसी प्रकरण में धार्मिक कथा कह भिक्षओं को सम्बोधित किया-'भिक्षुओ ! जान-बूझ कर (आने) उद्देश्य से बने मांस को नहीं खाना चाहिए। जो खाये उसे दुक्कट का दोष हो। भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ (अपने लिए मारे को) देखे, सुने, संदेहयुक्त- इन तीन बातों से शुद्ध मछली और मांस (के खाने) की।" इस घटना से निम्नलिखित बातें फलित होती हैं : (१) सिंह ने किसी प्राणी को नहीं मारा था (२) उसने बाजार से सीधा मांस मँगवाकर उसका भोजन बनाया था, (३) सीधा मांस लाकर बौद्ध भिक्षुओं के लिए भोजन बना खिलाना बुद्ध की दृष्टि में औद्देशिक नहीं था; (४) पशु को मार कर मांस तैयार करना ही बुद्ध-दृष्टि में औद्दे शिक था और (५) अशुद्ध मांस टालने के लिए बुद्ध ने जो तीन नियम दिये वे जैनों की आलोचना के परिणाम थे। उससे पहले ऐसा कोई नियम नहीं था। उपयुक्त घटना इस बात का प्रमाण है कि बुद्ध और बौद्ध भिक्षु निमन्त्रण स्वीकार कर आमन्त्रित भोजन ग्रहण करते थे। त्रिपिटक में इसके प्रचुर प्रमाण मिलते हैं । संघ-भेद की दृष्टि से देवदत्त ने श्रमण गौतम बुद्ध से जो पाँच बातें मांगी थी उनमें एक यह भी थी कि भिक्षु जिन्दगी-भर पिण्डपातिक (भिक्षा मांग कर खाने वाले) रहें। जो निमन्त्रण खाये उसे दोष हो । बुद्ध ने इसे स्वीकार नहीं किया। इससे यह स्पष्ट ही है कि निमन्त्रण स्वीकार करने का रिवाज बौद्ध-संघ में शुरू से ही था। बुद्ध स्वयं पहले दिन निमन्त्रण स्वीकार करते और दूसरे दिन सैकड़ों भिक्षुओं के साथ भोजन करते। बौद्ध श्रमणोपासक भोजन के लिए बाजार से वस्तुएं खरीदते, उससे खाद्य वस्तुएं बनाते। यह सब भिक्षु-संघ को उद्देश्य कर होता था और बुद्ध अथवा बौद्ध-भिक्षुओं की जानकारी के बाहर भी नहीं हो सकता था। इसे वे खाते थे। इस तरह निमन्त्रण स्वीकार करने से बौद्ध भिक्षु औद्दे शिक, क्रीतकृत नियाग और अभिहत चारों प्रकार के आहार का सेवन करते थे, यह भी स्पष्ट ही है। देवदत्त ने दूसरी बात यह रखी थी कि भिक्ष जिन्दगी-भर मछली-मांस न खायें, जो खाये उसे दोष हो। बुद्ध ने इसे भी स्वीकार न किया और बोले : "अदृष्ट, अश्रुत, अपरिशंकित इन तीन कोटि से परिशुद्ध मांस की मैंने अनुज्ञा दी है।” इसका अर्थ भी इतना ही था कि उपासक द्वारा पशु नहीं मारा जाना चाहिए। उपासक ने भिक्षुओं के लिए पशु मारा है- यदि भिक्षु यह देख ले, सुन ले अथवा उसे इसकी शंका हो जाय तो वह ग्रहण न करे अन्यथा वह ग्रहण कर सकता है। बौद्ध-भिक्षुओं को खिलाने के लिए सीधा मांस खरीद कर उसे पकाया जा सकता था—यह सिंह सेनापति की घटना से स्वयं ही सिद्ध है। ऐसा करनेवाले के पाप नहीं माना जाता था किन्तु पुण्य माना जाता था; यह भी निम्नलिखित घटना से प्रकट होगा: १--विनर्यापटक : महावग्ग : ६.४.८ पु० २४४ से संक्षिप्त । R--Sacred Books of The Buddhists Vol. XI : Book of the Discipline Part II & III : Indexes pp. ___421 & 430. See "Invitation." ३-विनयपिटक : चुल्लवग्ग ७.२.७ पृ०४८८ । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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