SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नायाधम्मकहाओ कोलाय ससा य कोकंतिया य चित्ता य चिल्लला य पुव्वपविट्ठा अग्गभयविया गयओ बिलधम्मेण चिट्ठति ।। १७९. तए गं तुमं मेहा! जेणेव से मंडले तेणेव उवागच्छति, उवागच्छिता तेहि बहूहिं सोहेहि य जाव चिल्ललेहि य एगयओ बिलधम्मेण चिट्ठसि ।। मेरुप्यभस्स पादुक्सेव-पदं १८०. तए णं तुमे मेहा! पाएणं गत्तं कंडूइस्सामी ति कट्टु पाए उविखत्ते तंसि च णं अंतरसि अण्णेहिं बलवतेहिं सत्तेहिं पणोलिज्जमाणे-पणोलिज्जमाणे ससए अणुप्पविद्वे ।। १८१. लए णं तुने मेहा! गायं कंद्रइत्ता पुणरवि पायं पडिनिक्खेविस्लामि त्ति कट्टु तं ससयं अणुपविट्टं पाससि, पासित्ता पाणाणुकंपयाए भूयाणुकंपयाए जीवाणुकंपयाए सत्ताणुकंपयाए से पाए अंतरा चैव संधारिए, नो चेव णं निखित्ते ।। १८२. तए गं तुमं मेहा! ताए पाणाणुकंपयाए भूयाणुकंपयाए जीवाणुकंपया सत्ताणुकंपयाए संसारे परित्तीकए, माणुस्साउए निवडे ॥ १८३. तए णं से वणदवे अड्ढाइज्जाई राइंदियाइं तं वणं झामेइ, झामेत्ता निडिए उवरए उपसते विज्झाए यावि होत्या ।। १८४. तए णं ते बहवे सीहा व जाव पिल्लता य तं वणदवं निडियं उवरयं उवसंत विज्झायं पासंति, पासिता अगिभयविप्यमुक्का तहाए य छुहाए य परब्भाहया समाणा तओ मंडलाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता सव्वओ समंता विप्पसरित्या ।। १८५. तए णं ते बहवे हत्थी म हत्पिणीओ व लोडया व लोहिया य कलभा य कलभिया यतं वणदवं निट्ठियं उवरयं उवसंतं विज्झायं पासंति, पासित्ता अग्गिभयविप्पमुक्का तण्हाए य छुहाए य परमाया समाणात मंडलाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्समित्ता दिसोदिसिं विप्पसरित्था ।। १८६. तए गं तुमं मेहा! जुण्णे जरा-जज्जरिय- देहे सिढिलवलितयविद्धिगत्ते कुब्बले किलते जुजिए पिवासिए अत्थामे अबले अपरक्कमे ठाकडे वेगेण विप्पसरिस्सामि त्ति कट्टु पाए पसारेमाणे विज्जुहए विव रययगिरि पन्मारे धरणितलसि सव्वंहिं सण्णिवइए। Jain Education International ५१ प्रथम अध्ययन सूत्र १७८-१८६ लकड़बग्घे, शरभ, सियार, बिडाल, कुत्ते, सूअर, खरगोश, लोमड़ी, चित्तल और चिल्लत पहले ही प्रविष्ट हो चुके थे। वे अग्नि के भय से घबराकर वहां बिलधर्म से (बित में रहने वाले कीड़े-मकोड़ों की भांति) ११ एक साथ रह रहे थे 1 १७९. मेघ! तब तूं जहां वह मण्डल था, वहां आया। वहां आकर उन बहुत सारे सिंहों यावत चिल्ललों के साथ घुलमिल कर बिलधर्म से रहने लगा। मेरुप्रभ का पादोत्क्षेप पद १८०. मेघ! पांव से शरीर को खुजलाऊंगा-यह सोच कर तू ने अपना एक पांव ऊपर उठाया। अन्य सबल प्राणियों द्वारा पुनः पुनः धकेले जाने पर उस पैर के नीचे एक खरगोश आ घुसा । १८१. मेघ! शरीर को जलाकर पांव को पुनः नीचे रखूंगा तूने ऐसा सोच पैर की जगह बैठे उस खरगोश को देखा। देखकर तू ने प्राणानुकम्पा, भूतानुकम्पा, जीवानुकम्पा और सरत्चानुकम्पा से अपने पैर को बीच में ही धाम लिया, उसे भूमि पर नहीं रखा १८२. मेघ! तूं ने उस प्राणानुकम्पा, भूतानुकम्पा, जीवानुकम्पा और सत्वानुकम्पा से संसार को सीमित किया और मनुष्य आयुष्य का बन्ध किया । १८३. उस वन-दव ने अढ़ाई रात-दिन तक उस वन को जलाया । जलाकर निष्ठित, उपरत और उपशान्त हो गया, बुझ गया। १८४. उन बहुत सारे सिंहो यावत् चिल्ललों ने उस वन-दव को निष्ठित, उपरत, उपशान्त और बुझा हुआ देखा। देखकर वे आग के मुक्त हो गये । प्यास और भूख से पीड़ित हो उस मण्डल से बाहर निकले। बाहर निकल कर चारों ओर फैल गये १८५. उन बहुत सारे हाथियों, हथिनियों उनके छोटे शिशुओं और वय प्राप्त कलभों ने भी उस वन दव को निष्ठित, उपरत, उपशांत और बुझा हुआ देखा। देखकर वे आग के भय से मुक्त हो गये। वे और भूख से पीड़ित हो, उस मण्डल से बाहर निकले। निकलकर चारों ओर फैल गये । १८६. मेघ! उस समय तूं जीर्ण, जरा-जर्जरित, शिथिल और सलवट भरी चमड़ी से मढे शरीर वाला, दुर्बल, क्लान्त, भूखा प्यासा, अशक्त, निर्बल पराक्रम शून्य और ठूंठ जैसा स्तब्ध हो गया था, फिर भी बलपूर्वक पांव को पसारुंगा यह सोच, पांव को पसारता हुआ तूं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy