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________________ नायाधम्मकहाओ ८३. तए णं तस्स मेहरस कुमारस्स अम्मापियरो अणुपुब्वेणं नामकरणं च पजेमणगं च पचकमणगं च चोलोवनयं च महया महया इड्ढी-सक्कार-समुदएणं करेंसु ।। मेहस्स कलागहण -पदं ८४. तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो साइरेगट्ठवासजायगं चेव सोहणस तिहिकरण मुटुसंसि कलापरियस्स उवर्णेति ।। ८५. तए णं से कलायरिए मेहं कुमारं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावतारं कलाओ सुत्तओ य अत्यओ य करणओ य सेहावे सिखावे, तं जहा- १. लेहं २. गणियं ३. रूवं ४ नहं ५. गीयं ६. वाइयं ७. सरगयं ८. पोक्खरगयं ९. समतालं १०. जूयं ११. जणवायं १२. पासयं १३. अट्ठावयं १४. पोरेकव्वं १५. दगमट्टियं १६. अण्णविहिं १७. पाणविहिं १८. वत्यविहिं १९. विलेवणविहिं २०. सयणविहिं २१. अजं २२. पहेलियं २३. मागहियं २४. गाहं २५. गीयं २६. सिलोयं २७. हिरण्णजुत्तिं २८. सुवण्णजुत्तिं २९. चुण्णजुत्तिं ३०. आभरणविहिं ३१. तरुणीपडिकम्मं ३२. इत्थिलक्खणं ३३. पुरिसलक्खणं ३४. हयलक्लणं ३५. गयलक्खणं, ३६. गोणलक्खणं ३७. कुक्कुडलक्खणं ३८. छत्तलक्खणं ३९. दंडलक्खणं ४०. असिलक्खणं ४१. मणिलक्खणं ४२. कागणिलक्खणं ४३. वत्युविज्जं ४४. संघारमाणं ४५. नगरमाणं ४६. वूहं ४७. पडिवूहं ४८. चारं ४९. पडिचारं ५०. चक्क ५१. गरुलहं ५२. सगडवूहं ५३. जुद्धं ५४. निजुद्धं ५५. जुद्धाइजुद्धं ५६. अट्ठिजुद्धं ५७. मुट्ठिजुद्धं ५८. बाहुजुद्धं ५९. लयाजुद्ध ६० ईसत्थं ६१. छरुप्पवायं ६२. धणुवेयं ६३. हिरण्णपा ६४. सुवण्णपागं ६५. बट्टले ६६. सुत्त ६७. नालिया ६८ पत्तच्छेज्जे ६९. कडच्छेज्जं ७०. सज्जीवं ७१. निज्जीवं ७२. सउणरुतं ति ।। ८६. तए गं से कलायरिए मेहं कुमारं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणस्यपज्जवताणाओ बायत्तरि कलाओ सुत्तओ य अत्यओ य करणओ य सेहावेइ सिक्खावेइ, सेहावेत्ता सिक्खावेत्ता अम्मापिऊणं उरणे ॥ ८७. तए णं मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो तं कलायरियं महुरेहिं वयणेहिं विउलेण य बत्थ-गंध मल्तालंकारेणं सक्कारेति सम्माणेंति, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयंति, दलइत्ता पडिविसज्जेंति ।। ८८. तणं से मेहे कुमारे बावत्तरि-कलापंडिए नवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारसविहिप्पगारदेसीभासाविसारए गीयरई गंधव्वनट्टकुसले २७ प्रथम अध्ययन : सूत्र ८३-८८ ८३. कुमार मेघ के माता-पिता ने महान ऋद्धि और सत्कार समुदय के साथ क्रमशः उसका नामकरण संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार, चंक्रमण संस्कार और शिखा धारण संस्कार सम्पन्न किया । Jain Education International मेघ का कलाग्रहण पद ८४. कुमार मेघ जब कुछ अधिक आठ वर्ष का हुआ तब माता - पिता शुभ तिथि, करण और मुहूर्त में उसे कलाचार्य के पास ले गए। ८५. कलाचार्य ने कुमार मेघ को लेख आदि गणित प्रधान से लेकर शकुनरुत पर्यन्त बहत्तर कलाएं सूत्र, अर्थ और क्रियात्मक रूप से पढ़ाई और उनका अभ्यास कराया।" वे बहत्तर कलाएं ये हैं :-- + १. लेख २. गणित ३. रूप ४ नाट्य ५ गीत ६. वाद्य ७. स्वरगत ८. पुष्करगत ९. समताल १०. द्यूत ११ जनवाद १२. पाशक फेंकने की कला १३. अष्टापद १४ पुर: काव्य १५ दकमृत्तिका १६. अन्नविधि १७. पानविधि १८ वस्त्रविधि १९. विलेपन विधि २० शयन विधि २१. आर्या २२ प्रहेलिका २३. मागधिका २४ गाया २५. गीतिका २६. श्लोक २७. हिरण्य - युक्ति २८. सुवर्ण युक्ति २९ चूर्ण - युक्ति ३०. आभरण - विधि ३१. तरुणी - प्रतिकर्म ३२. स्त्रीलक्षण ३३. पुरुष लक्षण ३४. हय लक्षण ३५. गज लक्षण ३६. गौ लक्षण ३७. कुक्कुट लक्षण ३८. छत्र लक्षण ३९. दण्ड लक्षण ४० असि लक्षण ४१. मणि लक्षण ४२. काकिनी लक्षण ४३. वास्तुविद्या ४४. स्कन्धावारमान ४५. नगरमान ४६ व्यूह ४७ प्रतिव्यूह ४८. चार ४९. प्रतिचार ५०. चक्रव्यूह ५१. गरुडव्यूह ५२. शकट व्यूह ५३. युद्ध ५४. नियुद्ध ५५. युद्धातियुद्ध ५६. अस्थियुद्ध ५७. मुष्टियुद्ध ५८. बाहुपुड ५९. लता-युद्ध ६० अस्त्र ६१. त्सरूप्रवाद (लड्गशास्त्र) ६२. धनुर्वेद ६३. हिरण्यपाक ६४. सुवर्णपाक ६५. वृत्तक्रीड़ा ६६. सूत्र कीड़ा ६७. नालिका क्रीडा ६८. पछे ६९. कट-छेद्य ७०. सजीव ७१. निर्जीव और ७२ शकुन रुत। ८६. उस कलाचार्य ने मेघ कुमार को लेख आदि, गणित प्रधान और शकुनस्त पर्यवसान वाली बहत्तर कलाएं सूत्र, अर्थ और क्रियात्मक रूप से पढ़ाई और उनका अभ्यास कराया। पढ़ाकर, अभ्यास कराकर उसको माता-पिता के पास लाया । ८७. कुमार मेघ के माता - पिता ने मधुर वचनों से और विपुल वस्त्र, गन्धचूर्ण मालाओं और अलंकारों से उस कलाचार्य को सत्कृत सम्मानित किया। सत्कृत सम्मानित कर उसको जीवन निर्वाह के योग्य विपुल प्रीतिदान दिया । देकर प्रतिविसर्जित किया । ८८. वह कुमार मेघ बहत्तर कलाओं में पण्डित बन गया। उसके नौ सुप्त अंग जागृत हो गये।" वह (प्रवृत्ति भेद से) अठारह प्रकार की देशी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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