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________________ २८ प्रथम अध्ययन : सूत्र ८८-८९ हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलंभोगसमत्थे साहसिए वियालचारी जाए यावि होत्था ।। नायाधम्मकहाओ भाषाओं में विशारद, संगीत में रुचि लेने वाला तथा गन्धर्व विद्या और नाट्य कला में कुशल बन गया। वह हययोधी, गजयोधी, रथयोधी, बाहुयोधी, भुजाओं से शत्रु का मर्दन करने वाला, पूर्ण भोग समर्थ, साहसिक और विकाल बेला में भी विचरने की क्षमता वाला हो गया। मेहस्स पाणिग्गहण-पदं ८९. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं बावत्तरि-कलापंडियं जाव वियालचारिं जायं पासंति, पासित्ता अट्ठ पासायवडिसए कारेंति--अब्भुग्गयमूसिय पहसिए विव मणि-कणगरयण-भत्तिचित्ते वाउद्धय-विजय-वेजयंती-पडाग-छत्ताइच्छत्तकलिए तुंगे गगणतलमभिलंघमाणसिहरे जालंतररयण पंजरुम्मिलिए ब्व मणिकणगथूभियाए वियसिय-सयवत्त-पुंडरीए तिलयरयणद्धचंदच्चिए नाणामणिमयदामालंकिए अंतो बाहिं च सण्हे तवणिज्ज-रुइल- वालुया- पत्थरे सुहफासे सस्सिरीयरूवे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। ___एगं च णं महं भवणं कारेंति--अणेगखंभसयसन्निविट्ठ लीलट्ठियसाल-भंजियागं अब्भग्गयसकयवइरवेइयातोरणवररइयसालभंजिय-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ-लट्ठ-संठिय-पसत्थवेरुलियखंभ-नाणामणि-कणगरयण-खचियउज्जलं बहुसम-सुविभत्त-निचियर-मणिज्जभूमिभागं ईहामिय-उसभतुरय-नर-मगर-विहग-वालगकिन्नर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजरवणलय-पउमलय-भत्तिचित्तंखंभुग्गयवयरवेइया-परिगयाभिरामं विज्जाहर-जमल-जुयल-जंतजुत्तं पिव अच्चीसहस्स- मालणीयं रूवगसहस्सकलियं भिसमाणं भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेसं सुहफासं सस्सिरीयरूवं कंचणमणि-रयणथूभियागं नाणाविहपंचवण्ण-घंटापडाग-परिमंडियग्गसिहरं धवल-मरिचिकवयं विणिम्मुयंत लाउल्लोइयमहियं जाव गंधवट्टिभूयं पासाईयं दरिसणिज्ज अभिरूवं पडिरूवं ।। मेघ का पाणिग्रहण-पद ८९. कुमार मेघ के माता-पिता ने कुमार मेध को बहत्तर कलाओं में पण्डित यावत् विकाल बेला में भी विचरने की क्षमतायुक्त देखा। देखकर उसके लिए आठ प्रासादावतंसक बनवाए। वे ऊपर उठे हुए ऊंचे, धवल प्रभापटल के कारण प्रहसित से, मणि, कनक और रत्नों की भांतो से चित्रित, हवा में फहराती हुई, विजय-वैजयन्ती पताकाओं छत्रों और अतिछत्रों से कलित, उत्तुंग गगन तल का भी अतिक्रमण करने वाले, शिखरों से युक्त, रत्न जटित वातायनों के कारण खुले पिंजरे से प्रतीत होने वाले, मणि-कनक निर्मित स्तूपिकाओं से युक्त, विकसित नीलकमलों एवं श्वेत कमलों से युक्त तिलक, रत्न और अर्द्धचन्द्रों से चित्रित, नाना मणिमय दाम-मालाओं से अलंकृत, भीतर और बाहर से श्लक्षण--चिकने आंगन में बिछी हुई रुचिर स्वर्ण-बालुका के कारण सुखद स्पर्श वाले, अतिशय श्री सम्पन्न, चित्त को प्रसन्न करने वाले, दर्शनीय, कमनीय और रमणीय थे। उन्होंने एक बड़ा भवन बनवाया। वह अनेक सैंकड़ों खम्भों पर अवस्थित था। उसमें नृत्य करती पुतलियां उत्कीर्ण थीं। वह भवन ऊंची उठी हुई सुनिर्मित वज्ररत्नमय वेदिकाओं और सिंह द्वारों से युक्त था। उसके कलात्मक ढंग से उकेरी हुई पुतलियों से युक्त, सुश्लिष्ट, विशिष्ट तथा कमनीय आकृति वाले प्रशस्त वैडूर्य रत्नों के खम्भे थे। वह नाना मणि, कनक और रत्नों से खचित एवं प्रभास्वर था। उसका आंगन बहुसम, सुविभक्त, ठोस और रमणीय था। वह ईहामृग, बैल, घोड़ा, मनुष्य, मगरमच्छ, पक्षी, सर्प, किन्नर, मृग, अष्टापद, चमरीगाय, हाथी, अशोक आदि की लता और पद्मलता--इनकी भांतों से चित्रित था। खम्भों के ऊपर उठी हुई वज्ररत्नमय वेदिका से अभिराम था। वह यंत्र से संचालित विद्याधर-युगल की प्रतिमा से युक्त था। वह रत्नों की हजारों रश्मियों से शोभित और उनमें बिम्बित हजारों प्रतिबिम्बों से कमनीय लग रहा था। वह देदीप्यमान, अतिशय देदीप्यमान, देखते ही दृष्टि को बांधने वाला, स्पर्श-सुखद, सश्रीक (श्री सम्पन्न) तथा कंचन, मणि और रत्नों की स्तूपिकाओं से युक्त था। उसके अग्रशिखर अनेक प्रकार की पंचरंगी घंटायुक्त पताकाओं से परिमण्डित थे। वह अपने धवल-रश्मि-पुंज को चारों और बिखेर रहा था। वह गोबर से लीपा और धुलकाया हुआ यावत् गन्धवर्तिका जैसा, चित्त को प्रसन्न करने वाला, दर्शनीय, कमनीय और रमणीय था। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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