________________
४१४
नायाधम्मकहाओ
दूसरा श्रुतस्कन्ध, नवम वर्ग : सूत्र १-६
नवमो वग्गो : नवम वर्ग १-८ अज्झयणाणि : १-८ अध्ययन
१. जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं अट्ठमस्स
वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते, नवमस्स णं भते! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णते?
१. भन्ते! यदि श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथाओं के आठवें वर्ग का यह
अर्थ प्रज्ञप्त किया है तो भन्ते! नौवें वर्ग का श्रमण भगवान महावीर ने क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है?
२. एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं नवमस्स वग्गस्स अट्ठ अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा--
गाहा-- १. पउमा २. सिवा ३. सई ४. अंजू, ५. रोहिणी ६. नवमिया इय । ७. अयला ८. अच्छरा।
२. जम्बू! श्रमण भगवान महावीर ने नौंवे वर्ग के आठ अध्ययन प्रज्ञप्त किए हैं जैसे--
गाथा-- पद्मा, शिवा, शची, अंजू, रोहिणी, नवमिका, अचला अप्सरा।
३. जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं नवमस्स
वग्गस्स अट्ठ अज्झयणा पण्णत्ता, नवमस्स णं भंते! वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते?
३. भन्ते! यदि श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथाओं के नौवे वर्ग के आठ
अध्ययन प्रज्ञप्त किए हैं तो भन्ते! उन्होंने नौवें वर्ग के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है?
४. एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणंजाव
परिसा पज्जुवासइ॥
४. जम्बू! उस काल और उस समय राजगृह में समवसरण जुड़ा यावत्
जन-समूह ने पर्युपासना की।
५. तेणं कालेणं तेणं समएणं पउमावई देवी सोहम्मे कप्पेपउमवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए पउमंसि सीहाससि जहा कालीए॥
५. उस काल और उस समय पद्मावती देवी, सौधर्मकल्प पद्मावतंसक विमान और सुधर्मा सभा में पद्म सिंहासन पर विहार कर रही थी। शेष, जैसे--काली।
६. एवं अट्ट वि अज्झयणा काली-गमएणं नायव्वा, नवरं--सावत्थीए
दोजणीओ। हत्थिणाउरे दोजणीओ। कपिल्लपुरे दोजणीओ। साएए दोजणीओ। पउमे पियरो विजया मायराओ। सव्वाओ वि पासस्स अंतियं पव्वइयाओ। सक्कस्स अग्गमहिसीओ। ठिई सत्त पलिओवमाइं। महाविदेहे वासे अंतं काहिति।।
६. इस प्रकार आठों ही अध्ययन काली के वर्णन के समान ज्ञातव्य हैं।
विशेष--उनमें दो श्रावस्ती की, दो हस्तिनापुर की, दो काम्पिल्यपुर की और दो साकेत की थीं। पिता-पद्म, माताएं-विजया। सभी पार्श्व के पास प्रव्रजित हुई। शक की अग्रमहिषियां बनी। स्थिति सात पल्योपम । महाविदेह वर्ष में सब दु:खों का अन्त करेंगी।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org