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________________ नायाधम्मकहाओ ४१३ दूसरा श्रुतस्कन्ध, अष्टम वर्ग : सूत्र १-६ अट्ठमो वग्गे : अष्टम वर्ग पढमं अज्झयणं : अध्ययन १ चंदप्पभा: चन्द्रप्रभा १. जइणं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं सत्तमस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते, अट्ठमस्स णं भते! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते? १. भन्ते! यदि श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथाओं के सातवें वर्ग का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है तो भन्ते! आठवें वर्ग का श्रमण भगवान महावीर . ने क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है? २. एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स वग्गस्स चत्तारि अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा--चंदप्पभा, दोसिणाभा, अच्चिमाली, पभंकरा॥ २. जम्बू! श्रमण भगवान महावीर ने आठवें वर्ग के चार अध्ययन प्रज्ञप्त किए हैं, जैसे--चन्द्रप्रभा, दोसीणाभा, अर्चिमाली, प्रभंकरा। ३. जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं अट्ठमस्स वग्गस्स चत्तारि अज्झयणा पण्णत्ता, अट्ठमस्स णं भंते! वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते? ३. भन्ते! यदि श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथाओं के आठवें वर्ग के चार अध्ययन प्रज्ञप्त किए हैं तो भन्ते! उन्होंने आठवें वर्ग के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है? ४. एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ॥ ४. जम्बू! उस काल और उस समय राजगृह में समवसरण जुड़ा यावत् जन-समूह ने पर्युपासना की। ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंदप्पभा देवी चंदप्पभंसि विमाणसि चंदप्पमंसि सीहाससि । सेसंजहा कालीए, नवरं--पुत्वभवो महुराए नयरीए भंडिवडेंसए उज्जाणे। चंदप्पभे गाहावई। चंदसिरी भारिया। चंदप्पभा दारिया। चंदस्स अग्गमहिसी। ठिई अद्धपलिओवमं पण्णासवाससहस्सेहिं अब्भहियं ।। ५. उस काल और उस समय चन्द्रप्रभा देवी, चन्द्रप्रभ विमान में, चन्द्रप्रभ सिंहासन पर विहार कर रही थी। शेष जैसे-काली। विशेष--पूर्वभव में मथुरा नगरी का भण्डीवतंस उद्यान। चन्द्रप्रभ गृहपति । चन्द्रश्री भार्या। चन्द्रप्रभा बालिका। वह चन्द्र की अग्रमहिषी थी। स्थिति अर्द्धपल्योपम से पचास हजार वर्ष अधिक। २-४ अज्झयणाणि अध्ययन २-४ ६. एवं--दोसिणाभा, अच्चिमाली, पभंकरा, महुराए नयरीए। ६. इसी प्रकार दोसीणाभा, अर्चिमाली और प्रभंकरा के अध्ययन ज्ञातव्य हैं। मायापियरो धूया-सरिसनामा। मथुरा नगरी। माता-पिता और पुत्रियों के नाम समान थे। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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