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________________ ४१२ नायाधम्मकहाओ दूसरा श्रुतस्कन्ध, षष्ठ वर्ग, सप्तम वर्ग छट्ठो वग्गो : षष्ठ वर्ग १-३२ अज्झयणाणि : १-३२ अध्ययन १. छट्ठो वि वग्गो पंचमवग्ग-सरिसो, नवरं--महाकालाईणं उत्तरिल्लाणं इंदाणं अग्गमहिसीओ। पुव्वभवे सागेए नगरे। उत्तरकुरु-उज्जाणे। मायापियरो घूया-सरिनामया। सेसं तं चेव ।। १. छट्ठा वर्ग भी पंचम वर्ग के समान है। विशेष--महाकाल आदि उत्तरदिग्वर्ती इन्द्रों की अग्रमहिषियां। पूर्वभव में साकेत नगर । उत्तरकुरु उद्यान । माता-पिता और पुत्रियों के नाम समान थे। शेष पूर्ववत्। सत्तमो वग्गो : सप्तम वर्ग पढमं अज्झयणं : अध्ययन-१ सूरप्पभा : ‘सूप्रभा' १. जइ णं भंते समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं छठुस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते, सत्तमस्स णं भंते! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते? १. भन्ते ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथाओं के छटे वर्ग का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है तो भन्ते! सातवें वर्ग का श्रमण भगवान महावीर ने क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है? २. एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं सत्तमस्स वग्गस्स चत्तारि अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा--सूरप्पभा, आयवा, अच्चिमाली, पभंकरा॥ २. जम्बू! श्रमण भगवान महावीर ने सातवें वर्ग के चार अध्ययन प्रज्ञप्त किए हैं जैसे--सूरप्रभा, आतपा, अर्चिमाली, प्रभंकरा। ३. जइणं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं सत्तमस्स वग्गस्स चत्तारि अज्झयणा पण्णत्ता, सत्तमस्स णं भंते! वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते? ३. भन्ते! यदि श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथाओं के सातवें वर्ग के चार अध्ययन प्रज्ञप्त किए हैं तो भन्ते! उन्होंने सातवें वर्ग के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है? ४. एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ॥ ४. जम्बू! उस काल और उस समय राजगृह में समवसरण जुड़ा यावत् जन-समूह ने पर्युपासना की। ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरप्पभा देवी सूरंसि विमाणंसि सूरप्पभंसि सीहासणसि । सेसं जहा कालीए तहा, नवरं--पुन्वभवो अरक्खुरीए नयरीए सूरप्पभस्स गाहावइस्स सूरसिरीए भारियाए सूरप्पभा दारिया। सूरस्स अग्गमहिसी। ठिई अद्धपलिओवमं पंचहि वाससएहिं अब्भहियं । सेसं जहा कालीए॥ ५. उस काल और उस समय सूरप्रभा देवी सूरविमान के सूरप्रभ सिंहासन पर विहार कर रही थी। शेष जैसे--काली। विशेष-पूर्वभव में अरक्षुरी नगरी में सूरप्रभ गृहपति, सूरश्री भार्या की सुरप्रभा बालिका। वह सूर्य की अग्रमहिषी थी। स्थिति अर्द्धपल्योपम से पांच सौ वर्ष अधिक । शेष जैसे--काली। २-४ अज्झयणाणि ६. एवं आयवा, अच्चिमाली, पभंकरा । सव्वाओ अरक्खुरीए नयरीए॥ २-४ अध्ययन ६. इसी प्रकार आतपा, अर्चिमाली और प्रभंकरा का वर्णन ज्ञातव्य है। ये सभी अरक्षुरी नगरी की थीं। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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