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________________ दूसरा श्रुतस्कन्ध, प्रथम वर्ग : सूत्र ३९-४५ ४०४ नायाधम्मकहाओ भवन, उपपात सभा और देव शय्या में देवदूष्य वस्त्र के आवरण में अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमित अवगाहना से काली देवी के रूप में उपपन्न हुई। ४०. तए णं सा काली देवी अहुणोववण्णा समाणी पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तभावं गच्छति (तं जहा--आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणपाण-पज्जत्तीए भासमणपज्जत्तीए)। ४०. वह सद्य: उपपन्न काली देवी पांच पर्याप्तियों से पर्याप्त अवस्था को प्राप्त हुई (जैसे--आहार-पर्याप्ति से, शरीर पर्याप्ति से, इन्द्रिय पर्याप्ति से, आनापान पर्याप्ति से, भाषा-मन: पर्याप्ति से) ४१. तए णं सा काली देवी चउण्हं सामाणिय-साहस्सीणं जाव सोलसण्हं आयरक्ख-देवसाहस्सीणं अण्णेसिंच बहूणं कालिवडेंसग- भवणवासीणं असुरकुमाराणं देवाण य देवीण य आहेवच्चंकारेमाणी जाव विहरइ॥ ४१. वह काली देवी चार हजार सामानिक यावत् सोलह हजार आत्मरक्षक देवों तथा कालीवतंसक भवन में निवास करने वाले अन्य अनेक असुर कुमार देवों और देवियों का आधिपत्य करती हुई यावत् विहार करने लगी। ४२. एवं खलु गोयमा! कालीए देवीए सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए। ४२. इस प्रकार गौतम! काली देवी को वह दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवद्युति और दिव्य देवानुभाव उपलब्ध हुआ, प्राप्त हुआ, अभिसमन्वागत हुआ। ४३. कालीए णं भंते! देवीए केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! अड्ढाइज्जाइं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता।। ४३. भन्ते! काली देवी की काल-स्थिति कितनी है? गौतम! उसकी स्थिति अढ़ाई पल्योपम है। ४४. काली णं भंते! देवी ताओ देवलोगाओ अणंतरं उन्वट्टित्ता कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ? गोयमा महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुझिहिइ मुच्चिहिद परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणं अंतं काहिइ॥ ४४. भन्ते! काली देवी उस देवलोक से उद्वर्तन के अनन्तर कहां जाएगी? कहां उपपन्न होगी? गौतम! वह महाविदेह वर्ष में सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत होगी और सब दुखों का अन्त करेगी। निक्खेव-पदं ४५. एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते। -त्ति बेमि॥ निक्षेप-पद ४५. जम्बू! इस प्रकार धर्म के आदिकर्ता यावत् सिद्धिगति संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है। -ऐसा मैं कहता हूं। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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