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________________ नायाधम्मकहाओ ४०५ बीअं अज्झयणं अध्ययन २ राई 'राजी' : ४६. जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेण धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते, बिइयस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेण के अट्ठे पण्णत्ते ? ४७. एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए। सामी समोसढे परिसा निग्गया जाव पज्जुवासङ्ग ।। ४८. ते काणं तेणं समएणं राई देवी चमरचंचाए रायहाणीए एवं जहा काली तहेव आगया, नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगया ।। ४९. भति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसर, वंदित्ता नमसित्ता पुव्वभवपुच्छा ।। ५०. गोयमाति! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं क्यासी एवं खलु गोयमा! तेणं काले तेणं समएणं आमलकप्पा नयरी अंबसालवणे चेइए। जिवसत्तू राया राई गाहावई राइसिरी भारिया । राई दारिया । पासस्स समोसरणं । राई दारिया जहेव काली तहेव निक्खंता ।। ५१. तए णं सा राई अज्जा जाया ।। ५२. तए गं सा राई अज्जा पुष्कचूलाए अज्जाए अंतिए सामाइयमाझ्याई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ । ५३. तए णं सा राई अज्जा अण्णया कयाइ सरीरबाउसिया जाया यावि होत्या ।। ५४. तणं सा राई अज्जा पासत्या तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा चमरचचाए रायहाणीए रामसिए भवणे उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूतरिया अंगुलस्स असंखेज्जाए भागमेत्ताए ओगाहणाए राईदेवित्ताए उववण्णा जाव अंतं काहिइ ।। ५५. एवं खलु जंबू समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपतेण पढमस्स वग्गस्स बिइयज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते । -त्ति बेमि ।। Jain Education International दूसरा श्रुतस्कन्ध, प्रथम वर्ग सूत्र ४६-५५ ४६. भन्ते! यदि धर्म के आदिकर्ता यावत् सिद्धिगति संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथाओं के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है, तो भन्ते! धर्म के आदिकर्ता यावत् सिद्धिगति संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने द्वितीय अध्यययन का क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है? ४७. जम्बू! उस काल और उस समय राजगृह नगर और गुणशिलक चैत्य था। स्वामी समसकृत हुए। जनसमूह आया यावत् पर्युपासना की। ४८. उस काल और उस समय चमरचञ्चा राजधानी से काली देवी की तरह राजी देवी आई। नाट्य विधि प्रदर्शित कर वापस चली गई। ४९. भन्ते! भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना की। नमस्कार किया । वन्दना, नमस्कार कर पूर्वभव सम्बन्धी प्रश्न किया । ५०. हे गौतम! श्रमण भगवान महावीर ने भगवान गौतम को आमन्त्रित कर इस प्रकार कहा--गौतम! उस काल और उस समय आमलकल्पा नगरी थी। वहां आम्रशालवन चैत्य था जितशत्रु राजा, राजी गृहपति, राजी श्री भार्या और राजी बालिका थी। भगवान पार्श्व का समवसरण । काली के समान राजी ने भी निष्क्रमण किया । ५१. वह राजी आर्या बन गई। ५२. आर्या राजी ने आर्या पुष्पचूला के पास सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। ५३. किसी समय वह आर्या राजी शरीरबाकुशिका बन गई। ५४. वह पार्श्वस्था आर्या राजी उस प्रमाद स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही मृत्यु के समय मृत्यु को प्राप्त कर, चमरचञ्चा राजधानी, राजावतंसक भवन, उपपात सभा और देव शय्या में देवदूष्य वस्त्र के आवरण में अंगुल के असंख्यातायें भाग परिमित अवगाहना से राजी देवी के रूप में उपपन्न हुई यावत् वह सब दुःखों का अन्त करेगी। ५५. जम्बू! धर्म के आदिकर्ता यावत् सिद्धिगति संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने प्रथम वर्ग के द्वितीय अध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है। -ऐसा मैं कहता हूं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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