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________________ एगूणबीसइमं अज्झयणं उन्नीसवां अध्ययन पुंडरी : पुण्डरिक उक्खेव पदं १. जइ णं भंते! समणेण भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठारसमस्स नायज्झयणस्स अयम पण्णत्ते, एगुणवीसइमस्त णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते ? २. एवं खलु जंबू तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूदीने दीवे पुव्वविदेहे, सीयाए महानईए उत्तरिल्ले कूले, नीलवंतस्स (वासहरपव्वयस्स?) दाहिणेणं, उत्तरिल्लस्स सीयामुहवणसंडस्स पच्चत्विमेणं, एगसेलगस्स क्क्खारपव्ययस्स पुरत्थिमेणं एत्य गं पुक्खलावई नामं विजए पण्णत्ते ।। ३. तत्व णं पुंडरीगिणी नाम रायहाणी पण्णत्ता नवजोयणवित्यिण्णा दुवालस जोयणायामा जाव पच्चक्वं देवलोगभूया पासाईया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा ।। ४. तीसे णं पुंडरीगिणीए नयरीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए नलिणिवणे नाम उज्जाणे ।। ५. तत्थ णं पुंडरीगिणीए रायहाणीए महापउमे नामं राया होत्या ।। ६. तस्स णं पउमावई नाम देवी होत्या ।। ७. तस्स णं महापउमस्स रण्णो पुत्ता पउमावईए देवीए अत्तया दुवे कुमारा होत्या, तं जहा पुंडरीए व कंडरीए व सुकुमालपाणिपाया। पुंडरीए जुवराया || - कंडरीयस्स पव्वज्जा-पदं ८. तेणं कालेणं तेणं समएणं घेरागमणं । महापउमे राया निग्गए । धम्मं सोच्चा पुंडरीयं रज्जे ठवेत्ता पव्वइए। पुंडरीए राया जाए, कंडरीए जुवराया । महापउमे अणगारे चोहसपुव्वाइं अहिज्जइ । । ९. तए णं थेरा बडिया जणवयविहारं विहरति ।। १०. तए गं से महापउमे बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाठणित्ता जाव सिद्धे ॥ Jain Education International : उत्क्षेप-पद १. भन्ते! यदि धर्म के आदिकर्त्ता यावत् सिद्धि गति संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने ज्ञाता के अठारहवें अध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है, तो भन्ते! उन्होंने ज्ञाता के उन्नीसवें अध्ययन का क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है? २. जम्बू! उस काल और उस समय इसी जम्बूद्वीप द्वीप पूर्वविदेह में सीता महानदी के उत्तरी तट पर नीलवंत ( वर्षधर पर्वत ? ) के दक्षिण में उत्तरी सीतामुख वनखण्ड के पश्चिम में, एकशैलक वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में पुष्करावती नाम की विजय प्रज्ञप्त है। ३. वहां पुण्डरीकिणी नाम की राजधानी प्रज्ञप्त है। वह नौ योजन चौड़ी, बारह योजन लम्बी यावत् प्रत्यक्ष देवलोक तुल्य, चित्त को प्रसन्न करने वाली दर्शनीय, सुन्दर और असाधारण थी। 2 ४. उस पुण्डरीकिणी नगरी के ईशानकोण में नलिनीवन नाम का उद्यान था । ५. उस पुण्डरीकिणी राजधानी में महापद्म नाम का राजा था। ६. उसके पद्मावती नाम की देवी थी। ७. उस राजा महापद्म के पुत्र, पद्मावती देवी के आत्मज दो कुमार थे, जैसे -- पुण्डरीक और कण्डरीक । वे सुकुमार हाथ-पांव वाले थे। पुण्डरीक युवराज था। कण्डरीक का प्रव्रज्या पद ८. उस काल और उस समय स्थविरों का आगमन हुआ। महापद्म राजा ने निर्गमन किया। वह धर्म को सुन, पुण्डरीक को राज्य पर स्थापित कर प्रव्रजित हुआ। पुण्डरीक राजा बना और कण्डरीक युवराज । महापद्म अनगार ने चौदह पूर्वो का अध्ययन किया। ९. स्थविर बाहर जनपद विहार करने लगे। - १०. वह महापद्म अनगार बहुत वर्षों तक श्रामण्य पर्याय का पालन कर यावत् सिद्ध हुआ। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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