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________________ अठारहवां अध्ययन सूत्र ४९-५२ धणस्स सुसुमाकए कंदण-पदं ४९. तए णं से धणे सत्यवाहे पंचहिं पुत्तेहिं (सद्धिं ?) अप्पछडे चिलायं तीसे अगामियाए अडवीए सम्बओ समता परिघाडेमाणेपरिधाडेमाणे संते तते परितते नो संचाएइ चितायं चोरसेणावई साहत्थिं गिण्हित्तए । से णं तओ पडिनियत्तइ, पडिनियत्तित्ता जेणेव सा संसुमा चिलाएण जीकियाओ वक्रोविया तेगेव उपागच्छ उवागच्छित्ता सुसुमं दारिवं चिलाएणं जीबियाओ क्रोक्यिं पास, पासिता परसुनियले व्व चंपगपायवे निव्वत्तमहे व्व इंदली विमुक्क-संधिबंधणे धरणितलंसि सव्वंगेहिं धसत्ति पडिए ।। ३८२ ५०. तए णं से धणे सत्यवाहे (पंचहिं पुत्तेहिं सद्धि ?) अप्पछडे आसत्ये कुवमाणे कंदमाणे विलवमाणे महया महया सदेणं कुहुकुहुस्स परुन्ने सुचिरकालं बाहप्पमोक्खं करेइ । धणेणं अडवि- लंघणट्ठ सुया-मंससोणियाहार - पदं ५१. तए णं से धणे सत्यवाहे पंचहि पुतेहिं (सद्धि ?) अप्पछ चिलाय तोते अगामियाए अडवीए सव्वओ समता परिधाडेमाणे तहाए छुहाए य परब्भाहते समाणे तीसे अगामियाए अडवीए सब्बओ समता उदगस्स भगाण- वेसणं करेमाणे सते ते परितते निव्विण्णे तीसे अगामियाए अडवीए उदगं अणासाएमाणे जेणेव सुसुमा जीवियाओ ववरोविएल्लिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जेटुं पुत्तं धणं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी -- एवं तु पुत्ता! सुसुमाए दारियाए अट्ठाए चिलायं तक्करं सम्यओ समता परिधाडेमाणा तण्हाए छुहाए य अभिभूया समाणा इमीसे अगामियाए अडवीए उदगस्स मग्गण - गवेसणं करेमाणा नो चेव णं उदगं आसादेमो । तए णं उदगं अणासाएमाणा नो संचाएमो रायगिहं संपात्तिए । तण्णं तुन्भे ममं देवाशुप्पिया! जीविवाओ ववरोवेह, मम मंसं च सोणियं च आहारेह, तेणं आहारेणं अवद्धा समाणा तओ पच्छा इमं अगामियं अडविं नित्यरिहिह, रायगिहं च संपावेहिह, मित्त-नाइ नियगसपण संबंधि परियणं अभिसमागच्छहिह, अत्यस्स य धम्मस्स य पुण्णस्स य आभागी भविस्सह ।। ५२. तए णं से जेट्ठे पुत्ते धणेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ते समाणे धणं सत्यवाहं एवं क्यासी तुन्भे गं ताओ! अम्हं पिया गुरुजणया देवयभूया ठवका पट्ठवका संरक्खगा संगोवगा । तं कहणणं अम्हे ताओ! तुब्भे जीवियाओ ववरोवेमो, तुब्भं णं मंसं च सोणियं च आहारेमो? तं तुब्भे णं ताओ! ममं जीवियाओ ववरोवेह, मंसं च सोणियं च आहारेह, अगामियं अडविं नित्थरिहिह, रायगिहं च Jain Education International नायाधम्मकहाओ धन का सुसुमा के लिए क्रन्दन - पद , ४९. पांचो पुत्रों सहित छठा स्वयं धन सार्थवाह उस ग्राम रहित अटवी में चितास के पीछे चारों ओर दौड़ता दौड़ता श्रान्त, क्लान्त और परिक्लान्त हो जाने के कारण वह चोर सेनापति को पकड़ नहीं पाया। तब वह वहां से लौटा। लौटकर जहां चिलात द्वारा मारी गयी सुसुमा थी, वहां आया। वहां आकर उसने चिलात द्वारा मारी गयी। सुसुमा को देखा। देखकर परशु से छिन्न चम्पक के पौधे की भांति और उत्सव की समाप्ति पर इन्द्र यष्टि की भांति संधिबन्धन खुल से वह अपने सम्पूर्ण शरीर के साथ धड़ाम से धरती पर गिर पड़ा। ५०. तब ( पांचों पुत्रों सहित) छठे स्वयं, धन सार्थवाह ने आश्वस्तहोकर कूजन (अव्यक्त शब्दपूर्वक रुदन), क्रन्दन और विलाप करते हुए, कुहू कुहू शब्दपूर्वक जोर-जोर से रोते हुए सुचिरकाल तक आंसू बहाए । अटवी लंघन के लिए धन द्वारा पुत्री के मांस और शोणित का आहार पद ५१. पांचो पुत्रों सहित छठे स्वयं धन सार्थवाह ने उस ग्राम रहित अटवी में चिलात के पीछे चारों ओर दौड़ते-दौड़ते भूल और प्यास से पीड़ित होकर उस ग्राम रहित अटवी में चारों ओर पानी की खोज की। जब उस ग्राम रहित अटवी में कहीं भी जल उपलब्ध नहीं हुआ, तब वे श्रान्त, क्लान्त परिक्तान्त और उदास होकर जहां मृत सुसुमा थी वहां आए। वहां आकर ज्येष्ठ पुत्र धन को बुलाया। उसे बुलाकर इस प्रकार कहा-पुत्र सुसुमा बालिका के लिए पिलात तस्कर के पीछे चारों ओर दौड़ते-दौड़ते हम भूख और प्यास से अभिभूत हो उठे हैं। इस ग्राम रहित अटवी में चारों ओर जल की खोज करने पर भी जल प्राप्त नहीं हो रहा है। जल को प्राप्त किये बिना हम राजगृह नगर नहीं पहुंच सकते। अतः देवानुप्रियो! तुम मुझे मार डालो, मेरे मांस और शोणित का आहार करो। उस आहार से प्राणों की रक्षा कर, इस ग्राम रहित अटवी को पार करो। राजगृह पहुंचो मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिजनों से मिलो तथा अर्थ, धर्म और पुण्य के आभागी बनो। - ५२. धन सार्थवाह के ऐसा कहने पर ज्येष्ठ पुत्र ने धन सार्थवाह से इस प्रकार कहा–तात! तुम हमारे पिता, गुरुजन और देवतुल्य हो । हमें (गृहस्थ धर्म या नीति मार्ग पर स्थित करने वाले हो प्रतिष्ठित करने वाले हो । हमारा संरक्षण और संगोपन करने वाले हो । अतः तात! हम तुम्हें कैसे मारे? कैसे तुम्हारे मांस और शोणित का आहार करें? इसलिए तात! तुम मुझे मार डालो। मेरे मांस और शोणित का For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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