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________________ नायाधम्मकहाओ ३८१ अठारहवां अध्ययन : सूत्र ४४-४८ चिलायस्स चोरपल्लीतो पलायण-पदं चिलात का चोर-पल्ली से पलायन-पद ४४. तएणं से चिलाए तं चोरसेन्नं तेहिं नगरगुत्तिएहिं हय-महिय-पवर ४४. उन नगर आरक्षकों ने उस चोर सेना को हत-मथित कर, वीर-घाइय-विवडियचिंध-घय-पडागं किच्छोवगयपाणं दिसोदिसिं उसके प्रवर वीरों को यमधाम पहुंचा, सेना के चिह्न-ध्वजाएं और पडिसेहियं (पासित्ता?) भीए तत्थे सुसुमं दारियं गहाय एगं महं पताकाएं गिरा, प्राण संकट में डाल, सब दिशाओं से उसके प्रहार अगामियं दीहमद्धं अडविं अणुप्पविढे। विफल कर दिये हैं--यह देखकर वह चिलात भीत, त्रस्त हो, सुसुमा बालिका को ले, एक महान ग्राम रहित प्रलम्ब मार्ग वाली अटवी में घुस गया। ४५. तए णं से धणे सत्थवाहे सुसुमं दारियं चिलाएणं अडवीमुहिं अवहीरमाणिं पासित्ता णं पंचहिं पुत्तेहिं सद्धिं अप्पछट्टे सण्णद्धबद्ध-वम्मिय-कवए चिलायस्स पयमग्गविहिं अणुगच्छमाणे अभिगज्जत हक्कारेमाणे पुक्कारेमाणे अभितज्जेमाणे अभितासेमाणे पिट्ठओ अणुगच्छइ।। ४५. वह चिलात सुंसुमा बालिका को अपहृत कर अटवी की ओर ले जा रहा है, यह देखकर धन सार्थवाह पांचो पुत्रों सहित छठा स्वयं सन्नद्ध बद्ध हो कवच पहन, चिलात के पदचिह्नों का अनुगमन करता हुआ गर्जना करता हुआ उसे हा दुष्ट, हा दुष्ट कहता हुआ, पुकारता हुआ, अभितर्जित करता हुआ और अभित्रस्त करता हुआ उसका पीछा करने लगा। ४६. तए णं से चिलाए तं धणं सत्यवाहं पंचहिं पुत्तेहिं सद्धिं अप्पछटुं सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवयं समणुगच्छमाणं पासइ, पासित्ता अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे जाहे नो संचाएइ सुंसुमं दारियं निव्वाहित्तए ताहे संते तंते परितंते नीलुप्पलगवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असिं परामुसइ, परामुसित्ता सुंसुमाए दारियाए उत्तमंग छिंदइ, छिंदित्ता तं गहाय तं अगामियं अडविं अणुप्पविद्रु॥ ४६. चिलात ने पांचो पुत्रों सहित छठे स्वयं धन सार्थवाह को सन्नद्ध-बद्ध हो कवच पहन अपना पीछा करते हुए देखा। यह देखकर वह शक्तिहीन, बलहीन, वीर्यहीन, पुरुषकारहीन और पराक्रमहीन हो गया। जब वह सुंसुमा बालिका का निर्वहन नहीं कर पाया तो उसने श्रान्त, क्लान्त और परिक्लान्त हो, नीलोत्पल, भैंसे का सींग और अतसी कुसुम के समान प्रभा और तीक्ष्ण धार वाली तलवार को हाथ में लिया। लेकर सुंसुमा बालिका का सिर काट दिया। काटकर उस कटे हुए सिर को लेकर वह उस ग्राम-रहित अटवी में घुस गया। ४७. तए णं से चिलाए तीसे अगामियाए अडवीए तण्हाए (छुहाए?)अभिभूए समाणे पम्हट्ठ-दिसाभाए सीहगुहं चोरपल्लि असंपत्ते अंतरा चेव कालगए। ४७. वह चिलात उस ग्राम-रहित अटवी में प्यास (क्षुधा?) से अभिभूत होकर दिग्मूढ़ हो गया। वह सिंहगुफा चोरपल्ली तक नहीं पहुंच सका और बीच में ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। निगमण-पदं ४८. एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंयो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे इमस्स ओरालियसरीरस्स वंतासवस्स पित्तासवस्स खेलासवस्स सुक्कासवस्स सोणियासवस्स दुख्य-उस्सास-निस्सासस्स दुख्य-मुत्त-पुरीस-पूय-बहुपडिपुण्णस्स उच्चार-पासवण-खेलसिंघाणग-वंत-पित्त-सुक्क-सोणियसंभवस्स अधुवस्स अणितियस्स असासयस्स सडण-पडण-विद्धंसणधम्मस्स पच्छा पुरं च णं अवस्स-विप्पजहणिज्जस्स वण्णहेउं वा रूवहेउं वा बलहेउं वा विसयहेउं वा आहारं आहारेइ, से णं इहलोए चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य हीलणिज्जे जाव चाउरतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिस्सइ--जहा व से चिलाए तक्करे। निगमन-पद ४८. आयुष्मन् श्रमणो! इसी प्रकार हमारा जो निर्ग्रन्थ अथवा निम्रन्थी आचार्य-उपाध्याय के पास मुण्ड हो अगार से अनगारता में प्रव्रजित हो इस वमन, पित्त, कफ, शुक्र, शोणित के झरने, दुर्गन्धित उच्छ्वास-नि:श्वास वाले, दुर्गन्धित मल-मूत्र और पीव से प्रतिपूर्ण, मल-मूत्र, कफ, नाक के मैल, वमन, पित्त, शुक्र और शोणित से उत्पन्न, अधुव, अनित्य, अशाश्वत तथा सड़ने, गिरने और विध्वस्त हो जाने वाले, पहले या पीछे अवश्य छूट जाने वाले औदारिक शरीर के वर्ण, रूप और बल की वृद्धि के लिए अथवा विषय-पूर्ति के लिए आहार करता है, वह इस लोक में भी बहुत श्रमणों, बहुत श्रमणियों, बहुत श्रावकों और बहुत श्राविकाओं द्वारा हीलनीय होता है यावत् वह चार गति वाले संसार रूपी कान्तार में पुन:-पुन: अनुपरिवर्तन करेगा, जैसे--वह चिलात तस्कर। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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