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________________ अठारहवां अध्ययन : सूत्र ३८-४३ ३८. तए णं से चिलाए चोरसेणावई धणस्स सत्यवाहस्स हिं घाएइ, पाएता सुबहु धण-कणगरयण-मणि-मोत्तिय संखसिल-प्पवाल- रत्तरयण-संत-सार- सावएज्जं सुसुमं च दारियं गण्ड गेण्डित्ता रायगिहाओ पडिनिक्लमई, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सीहगुहा तेणेव पहारेत्य नमनाए । नगरमुत्तिएहिं चोरनिगह-पदं ३९. तए गं से धणे सत्यवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छड, वागच्छत्ता सुबहु धण-कणगं सुसुमं च दारियं अवहरियं जाणित्ता महत्वं महग्धं महरिडं पाहुडं महाय जेणेव नगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छ, उवागच्छिता तं महत्वं महत्वं महरिहं पाहु उवणे, उवत्ता एवं क्यासी -- एवं खलु देवाणुप्पिया! चिलाए चोरसेणावई सीहगुहाओ चोरपल्लीओ इहं हन्यमागम्म पंचहि चोरसएहिं सद्धिं मम हिं धाएत्ता सुबहुं धण-कणगं सुसुमं च दारियं गहाय रायगिहाओ पडिनिक्खमित्ता जेणेव सीहगुहा तेणेव पडिगए । तं इच्छामो णं देवाप्पिया! सुंसुमाए दारियाए कूवं गमित्तए । तुब्भं णं देवाणुपिया से विपुले धण-कणगे, ममं सुंसुमा दारिया ।। ३८० ४०. तए णं ते नगरमुत्तिया धणस्स एपम पहिसुर्णेति, पडिसुणेत्ता सण्णद्ध - बद्ध-वम्मिय - कवया जाव गहियाउहपहरणा महयामहया उक्कुड सीहनाय बोल कलकलरवेणं पक्लुभिय-महासमुदरवभूयं पिव करेमाणा रायगिहाओ निग्गच्छति, निग्गच्छिता जेणेव चिलाए चोरसेणावई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता चिलाएणं चोरसेणावइणा सद्धिं संपलग्गा यावि होत्या ।। ४१. तए णं ते नगरगुत्तिया चिलाये चोरसेणावई हय-महियपवरवीर घाइय-विवडियचिंध-धय-पडागं किच्छोवगयपाणं दिसोदिसिं पडिसेहेंति । ४२. तए णं ते पंच चोरसया नगरगुत्तिएहि हय महिय पवरवीरघाइय-विवडिय चिंध-धप-पडागा किच्छोवगयपाणा दिसोदिसिं पडिसेहिया समाणा तं विपुलं धण-कणगं विच्छड्डमाणा य विप्यरिमाणां य सब्द समंता विष्पतात्या ।। ४३. तए णं ते नगरगुत्तिया तं विपुलं धण-कणगं गेण्डति, गेण्हित्ता जेणेव रायगि नगरे तेणेव उवागच्छति । Jain Education International नायाधम्मकहाओ ३८. उस चोर सेनापति चिलात ने धन सार्थवाह का घर लूटा लूटकर धन, कनक, रत्न, मणि, मौक्तिक, शंख, शिला, प्रवाल, पद्मनाग, मणियां श्रेष्ठ सुगन्धित द्रव्य तथा दान भोग आदि के लिए स्वापतेय और सुसुमा बालिका को ले लिया । उसे लेकर वह राजगृह नगर से वापस निकला। निकलकर जहां सिंहगुफा थी, उस और प्रस्थान कर दिया। नगर-रक्षकों द्वारा चोर का निग्रह - पद ३९. वह धन सार्थवाह जहां अपना घर था, वहां आया। वहां आकर बहुत सा धन, कनक और सुसुमा बालिका को अपहृत हुआ जानकर महान अर्थवान, महानं मूल्यवान और महान अर्हता वाला उपहार लेकर जहां नगर आरक्षक थे, वहां आया। वहां आकर महान अर्थवान, महान मूल्यवान और महान अर्हता वाला उपहार भेंट किया। भेंट कर इस प्रकार बोला- देवानुप्रियो! चोर सेनापति चिलात सिंहगुफा चोरपल्ली से शीघ्र यहां आकर, पांच सौ चोरों के साथ मेरा घर लूट, बहुत-सा धन, कनक और सुंसुमा बालिका को ले, राजगृह नगर से निकलकर जहां सिंहगुफा थी वहां वापस चला गया। अतः देवानुप्रियो! मैं सुसुमा बालिका की खोज करने के लिए जाना चाहता हूँ । देवानुप्रियो ! वह विपुल धन-कनक तुम्हारा और सुसुमा बालिका मेरी । ४०. उन नगर आरक्षकों ने धन का यह प्रस्ताव स्वीकार किया। स्वीकार कर सन्नद्ध बद्ध हो कवच पहने यावत् आयुध और प्रहरण लिये । महान उत्कृष्ट, सिंहनाद जनित कोलाहलपूर्ण शब्दों द्वारा प्रक्षुभित महासागर की भांति धरती को शब्दायमान करते हुए वे राजगृह से निकले। निकलकर जहां चोर सेनापति चिलात था, वहां आये। वहां आकर चोर सेनापति चिलात के साथ युद्ध करने लगे। ४१. उन नगर आरक्षकों ने चोर सेनापति चिलात को हत मथित कर डाला, उसके प्रवर वीरों को यमधाम पहुंचा दिया। सेना के चिह्न - ध्वजाओं और पताकाओं को गिरा दिया, उसके प्राण संकट में डाल दिये और सब दिशाओं से उसके प्रहारों को विफल कर दिया। ४२. जब उन नगर आरक्षकों ने उन पांच सौ चोरों को हत मथित कर डाला, उनके प्रवर वीरों को यमधाम पहुंचा दिया, सेना के चिह्नध्वजाएं और पताकाएं गिरा दी, प्राण संकट में डाल दिये और सब दिशाओं से उनके प्रहार विफल कर दिये, तब वे चोर उस विपुल धन- कनक को फेंकते हुए, बिखेरते हुए चारों ओर भाग गए। ४३. उन नगर आरक्षकों ने उस विपुल धन, कनक को बटोर लिया। बटोर कर जहां राजगृह नगर था, वहां आ गए। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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