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नायाधम्मकहाओ
३७९ तुब्भं विपुले धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाले ममं सुसुमा दारिया।
अठारहवां अध्ययन : सूत्र ३३-३७ आढ्य है। उसकी पुत्री, भद्रा की आत्मजा, पांचो पुत्रों की अनुजा सुंसुमा नाम की बालिका है। वह अहीन यावत् सुरूपा है। अत: देवानुप्रियो! हम चलें, धन सार्थवाह का घर लूटें।
उसका विपुल धन, कनक, रत्न, मणि, मौक्तिक, शंख, शिला एवं प्रवाल तुम्हारा और सुंसुमा बालिका मेरी।
३४. तए णं ते पंच चोरसया चिलायस्स (एयमहूँ?) पडिसुणेति ॥
३४. उन पांच सौ चोरों ने चिलात के (इस अर्थ को?) स्वीकार किया।
३५. तए णं ते चिलाए चोरसेणादई तेहिं पंचहिं चोरसएहिं सद्धि ___३५. वह चोर सेनापति चिलात उन पांच सौ चोरों के साथ गीले चमड़े
अल्लं चम्म दुरुहइ, दुरुहित्ता पच्चावरण्ह-कालसमयंसि पंचहिं पर बैठा। बैठकर अपराह्न काल के पश्चात् पांच सौ चोरों के साथ चोरसएहिं सद्धिं सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवए उप्पीलिय
सन्नद्ध बद्ध हो, कवच पहने। धनुष पट्टी को बांधा, गले में ग्रीवा-रक्षक सरासणपट्टिए पिणद्ध-गेविज्जे आविद्ध-विमल-वरचिंधपट्टे
उपकरण पहने। विमल और प्रवर चिह्न पट्ट बांधे तथा आयुध और गहियाउह-पहरणे माइय-गोमुहिएहिं फलएहिं, निक्किट्ठाहि प्रहरण लिए। रीछ के बालों से निर्मित गोमुखाकार पट्टियों, म्यान से असिलट्ठीहिं, अंसगएहिं तोणेहिं, सज्जीवेहिं धणूहिं, समुक्खित्तेहिं खींची हुई (नंगी) तलवारों, कन्धे पर रखे तूणीरों, प्रत्यञ्चा चढ़े धनुषों, सरेहिं, समुल्लालियाहिं दाहाहिं, ओसारियाहिं ऊरुघंटियाहिं,
तूणीर से निकाले गये बाणों, उछलते हुए विशिष्ट शस्त्रों, निनादित छिप्पतूरेहिं वज्जमाणेहिं महया-महया उक्कू?-सीहनाय-बोल
विशाल घंटाओं, द्रुतगति से प्रवादित वाद्यों तथा महान उत्कृष्ट सिंहनाद कलकलरवेणं पक्खुभिय-महा समुद्दरवभूयं पिव करेमाणा जनित कोलाहलपूर्ण शब्दों द्वारा प्रक्षुभित महासागर की भांति धरती को सीहगुहाओ चोरपल्लीओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव
शब्दायमान करते हुए वे सिंहगुफा चोरपल्ली से निकले। निकलकर रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता रायगिहस्स
जहां राजगृह नगर था, वहा आए। वहां आकर राजगृह नगर के अदूरसामंते एगं महं गहणं अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता दिवसं आसपास एक गहन जंगल में प्रविष्ट हुए। प्रविष्ट होकर दिन व्यतीत खवेमाणा चिट्ठति ॥
करने लगे।
३६. तए णं से चिलाए चोरसेणावई अद्धरत्त-कालसमयंसि निसंत-पडिनिसंतंति पंचहि चोरसएहिं सद्धिं माइय-गोमुहिएहिं फलएहिं जाव मूइयाहिं ऊरुघंटियाहिं जेणेव रायगिहे नयरे पुरथिमिल्ले दुवारे तेणेव उवागच्छइ, उदगवत्थिं परामुसइ आयते चोक्खे परमसुइभूए तालुग्घाडणिं विज्ज आवाहेइ, आवाहेत्ता रायगिहस्स दुवारकवाडे उदएणं अच्छोडेइ, अच्छोडेता कवाडं विहाडेइ, विहाडेता रायगिह अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणे-उग्घोसेमाणे एवं वयासी--एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! चिलाए नामं चोरसेणावई पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं सीहगुहाओ चोरपल्लीओ इहं हव्वमागए धणस्स सत्थवाहस्स गिहं घाउकामे । तं जे णं नवियाए माउयाए दुद्धं पाउकामे, से णं निगच्छउ त्ति कटु जेणेव धणस्स सत्थवाहस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धणस्स गिहं विहाडेइ।।
३६. अर्धरात्रि के समय जब घर से बाहर गये लोग पुन: अपने-अपने घर
लौट आये, वह चोर सेनापति चिलात पांच सौ चोरों के साथ रीछ के बालों से निर्मित गोमुखाकार पट्टिकाओं यावत् नि:शब्द विशाल घन्टाओं के साथ जहां राजगृह नगर का पूर्व दिशावर्ती द्वार था, वहां आया। वहां आकर चर्ममय उदक-पात्र (मशक) को उठाया। आचमन कर, साफ-सुथरा और परम पवित्र हो, तालोद्घाटिनी विद्या का आवाहन किया। आवाहन कर राजगृह के द्वार के कपाटों पर जल छींटा। जल छींटकर द्वार को खोला, खोलकर राजगृह में प्रवेश किया। प्रवेश कर उच्चस्वर से उद्घोषणा करते हुए इस प्रकार बोला-देवानुप्रियो! मैं चोर सेनापति चिलात हूँ और धन सार्थवाह का घर लूटने के लिए पांच सौ चोरों के साथ सिंहगुफा चोरपल्ली से अभी यहां आया हूँ। ___ अत: जो नई मां का दूध पीना चाहता है, वह निकलकर मेरे सामने आए-यह कहता हुआ वह जहां धन सार्थवाह का घर था, वहां आया। वहां आकर धन सार्थवाह के घर का द्वार खोला।
३७. तए णं से धणे चिलाएणं चोरसेणावइणा पंचहिं चोरसएहिं
सद्धिं गिह घाइज्जमाणं पासइ, पासित्ता भीए तत्थे तसिए उब्विग्गे संजायभए पंचहिं पुत्तेहिं सद्धिं एगते अवक्कमइ।।
३७. धन सार्थवाह ने पांच सौ चोरों के साथ चोर सेनापति चिलात को
अपने घर की लूट-पाट करते देखा। देखकर वह भीत, त्रस्त, तृषित, उद्विग्न और भयाक्रान्त हो पांचो पुत्रों के साथ एकान्त में चला गया।
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