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टिप्पण
सूत्र १४ १. रीठा जैसे वर्ण वाले (रिट्ठवण्णा)
वृत्तिकार ने इसका अर्थ मदिरा वर्ण वाला किया है।
सूत्र २२ ३. द्रमक पुटों (दमणग पुडाण)
द्रमक--दौना, दवना। विस्तार हेतु द्रष्टव्य--वनस्पतिकोश।
२. लंघन- - - -त्रिपदी (लंघन- ---तिवइ) ४.पुष्पोत्तर, पद्मोत्तर (पुप्फुत्तर, पउमुत्तर) प्रस्तुत प्रकरण में कालिक द्वीप के घोड़ों की गति के विषय में अनेक पुष्पोत्तर पद्मोत्तर--ये शर्करा के भेद हैं। जो विभिन्न प्रकार के फूलों शब्द प्रयुक्त हुए हैं--
और पद्मकमलों से निर्मित की जाती थी। लंघन--गर्त आदि को लांघना। वल्गन--कूदना।
सूत्र ३६ धावन--वेग के साथ दौड़ना।
५. तित्तिरी (दीविग) धोरण--गति विषयक चातुर्य। .
वृत्तिकार के अनुसार पिंजरे में बंधा हुआ तित्तिर द्वीपिका कहलाता त्रिपदी--रंगभूमि में होने वाली मल्ल की गति की तरह चलना।२ है। द्वीपिका का प्रयोग पुरुष तित्तिर के लिए नहीं, स्त्री तित्तिर के लिए अभिधान चिन्तामणि की टीका में कुछ शब्दों का अर्थ स्पष्ट रूप से होना प्रासंगिक है। मिलता है। लंघन--पक्षी तथा हरिण के समान घोड़े की चाल, चौकड़ी मारना। वल्गन--शरीर के आगे के हिस्से को बढ़ाकर सिर को संकुचित कर त्रिक को झुकाए हुए घोड़े की गति अर्थात् सरपट चाल।' धोरण--मोर के समान घोड़े की चाल अर्थात् दुलकी चाल ।'
१. ज्ञातावृत्ति, पत्र-२३८
५. अभिधानचिन्तामणि (स्वोपज्ञवृत्ति), पृ. ५०३-तच्च नकुलादीनां गतिसदृशम्। २. वही, पत्र-२३६
६. ज्ञातावृत्ति, पत्र-२३६--पुष्पोत्तरा पद्मोत्तरा च शर्कराभेदावेव। ३. अभिधानचिन्तामणि (स्वोपज्ञ वृत्ति), पृ.५०३-लंघनम्-पक्षिणां मृगाणां च ७. वही, पत्र-२४०--शाकुनिकपुरुषसम्बन्धी पञ्जरस्थ तित्तिरो द्वीपिका ___गत्यनुयायि।
उच्यते। ४. अभिधानचिन्तामणि ४/३१३......वल्गितं पुनः ।
अग्रकायसमुल्लासात्कुञ्चितास्यं नतत्रिकम् ।।
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