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________________ आमुख प्रस्तुत अध्ययन की घटना सुंसुमा की परिक्रमा कर रही है इसलिए इसका नाम संसमा है। इसका प्रतिपाद्य है--यात्रामात्राशन। मुनि केवल जीवनयात्रा को चलाने के लिए आहार करे। उसके साथ आसक्ति का लवलेश भी नहीं रहे। सूत्रकार ने आसक्ति को स्पष्ट भाषा में समझाया है। वर्ण, रूप, बल और विषय के लिए किया जाने वाला आहार आसक्ति से सम्पृक्त होता है। मुनि के लिए निर्देश है-- मुनि वर्ण, रूप, बल और विषय के लिए आहार न करे। एकमात्र सिद्धि के लिए आहार करे। आसक्ति और अनासक्ति के बीच भेदरेखा खींचना बहुत कठिन काम है। सूत्रकार ने धन सार्थवाह के उदाहरण से इसे समझाने का प्रयत्न किया है। समझाने के लिए जिस घटना का चुनाव किया है, वह घटना असाधारण है, उसे सामान्य नहीं कहा जा सकता। प्राचीन समय में साधु-संन्यासी के आहार के लिए 'पुत्रमांसोपमम्' सूत्र का प्रयोग मिलता है। यहां पुत्र के मांसाहार के स्थान पर पुत्री के मांसाहार की घटना है। पुत्री का मांस खाना एक प्रकम्पित करने वाला वृत्त है। इसमें धन सार्थवाह की विवशता झलक रही है। मुनि के सामने भी शरीर चलाने की विवशता है। शरीर के बिना धर्म की साधना नहीं होती और आहार किए बिना शरीर नहीं चलता। आहार के साथ स्वाद और आसक्ति का संबंध है। इस आसक्ति को दूर कर शारीरिक विवशता की अनुभूति कर आहार करना जटिल विषय है। सूत्रकार ने इस जटिलता को मार्मिक घटना से समझाया है। हम घटना को न पकड़ें। उसके मर्म को पकड़ना ही पर्याप्त है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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