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________________ सत्रहवां अध्ययन : सूत्र २२ ३६६ नायाधम्मकहाओ २२. तए णं ते कोडुबियपुरिसा सगडी-सागडं सज्जेंति, सज्जेत्ता तत्थ २२. उन कौटुम्बिक पुरुषों ने छोटे बड़े वाहन तैयार किये। तैयार कर णं बहूणं वीणाण य वल्लकीण य भामरीण य कच्छभीण य वीणाओं, वल्लकी-वीणाओं (सात तन्त्रियों से बजने वाली) भ्रामरी-वीणाओं, भंभाण य छब्भामरीण य चित्तवीणाण य अण्णेसिं च बहूणं कच्छभी वीणाओं, भेरियों, षड्भ्रामरी-वीणाओं, चित्र-वीणाओं और सोइंदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी-सागडं भरेंति । बहूणं किण्हाण श्रोत्रेन्द्रिय प्रायोग्य अन्य अनेक द्रव्यों से छोटे बड़े वाहन भरे। य नीलाण व लोहियाण य हालिद्दाण य सुक्किलाण य कट्ठकम्माण उन्होंने बहुत से कृष्ण, नील, लोहित, हारिद्र, एवं शुक्ल वर्ण के य चित्तकम्माण य पोत्थकम्माण य लेप्पकम्माण य गंथिमाण य काष्ठकर्म, चित्रकर्म, पुस्तकर्म, लेप्यकर्म तथा ग्रन्थित, वेष्टित, पूरित वेढिमाण य पूरिमाण य संघाइमाण य अण्णेसिं च बहूणं एवं संघात्य वस्तुओं से और चक्षुरिन्द्रिय-प्रायोग्य अन्य अनेक द्रव्यों से चक्खिदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी-सागडं भरेति । बहूणं कोट्टपडाण छोटे बड़े वाहन भरे। य पत्तपुडाण य चोयपुडाण य तगरपुडाण य एलापुडाण य उन्होंने बहुत से कोष्ठ-पुटों (गंधद्रव्यों), पत्र-पूटों, त्वक्-पुटों, हिरिवेरपुडाण य चंदणपुडाण य कुंकुमपुडाण य उसीरपुडाण य तगर-पुटों, एला-पुटों, तृण-पुटों, चंदन-पुटो, कुंकुम-पुटों, उसीर-पुटों, चंपगपुडाण य मरुयगपुडाण य दमणगपुडाण य जातिपुडाणा य चम्पक-पुटों, मर्वक (मरुवा)-पुटों, द्रमक-पुटों', जाति-पुटों, जूहियापुडाण य मल्लियापुडाण य वासंतियापुडाण य केयइपुडाण जूहिका-पुटों, मल्लिका-पुटों, वासन्तिका-पुटों, केतकी-पुटों, कर्पूर-पुटों, य कप्पूरपुडाण य पाडलपुडाण य अण्णेसिं च बहूणं पाटल-पुटों और घ्राणेन्द्रिय प्रायोग्य अन्य अनेक द्रव्यों से छोटे बड़े घाणिंदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी-सागडं भरेंति । बहुस्स खंडस्स वाहन भरे। य गुलस्स य सक्कराए य मच्छंडियाए य पुप्फुत्तर-पउमुत्तराए उन्होंने बहुत-सी खाण्ड, गुड़, शक्कर, मत्स्यण्डिका, पुष्पपोत्तर, अण्णेसिं च जिभिदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी-सागडं भरेंति । पद्मोत्तर (फूलों या कमल के फूलों से बनी हुई खाण्ड) और बहूणं कोयवाण य कंबलाण य पावाराण य नवतयाण य मलयाण रसनेन्द्रिय प्रायोग्य अन्य अनेक द्रव्यों से छोटे बड़े वाहन भरे। य मसूराण य सिलावट्टाण य जाव हंसगब्भाण य अण्णेसिं च उन्होंने बहुत सी रजाइयों, कम्बलों, प्रावरणों (पर्दो), जीनों, फासिंदिय-पाउग्गाणं दव्वाणं सगडी-सागडं भरेंति, भरेत्ता मलय-मसूर के आसनों, शिलापट्टों यावत् हंसगर्भ वस्त्रों और सगडी-सागडं जोयंति, जोइत्ता जेणेव गंभीरए पोयट्ठाणे तेणेव स्पर्शनेन्द्रिय प्रायोग्य अन्य प्रकार के द्रव्यों से छोटे बड़े वाहन भरे। उवागच्छंति, सगडी-सागडं मोएंति, मोएत्ता पोयवहणं सज्जेंति, भरकर छोटे बड़े वाहन जोते। जोतकर जहां गंभीरक बन्दरगाह सज्जेत्ता तेसिं उक्किट्ठाणं सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाणं कट्ठस्स था, वहां आए। छोटे बड़े वाहन खोले। खोलकर पोतवहन तैयार य तणस्स य पाणियस्स य तंदुलाण य समियस्स य गोरसस्स य किए। तैयार कर उन उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध-द्रव्यों जाव अण्णेसिं च बहूणं पोयवहणपाउग्गाणं पोयवहणं भरेंति, से तथा काठ, घास, पानी, चावल, गेहूं का आटा, गोरस यावत् अन्य भरेत्ता दक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव कालियदीवे तेणेव अनेक पोतवहन प्रायोग्य पदार्थों से उस पोतवहन को भरा। भरकर उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं लबेंति, लबेत्ता ताई उक्किट्ठाई दक्षिणानुकूल पवन के साथ जहां कालिकद्वीप था, वहां आए। वहां सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाई, एगट्टियाहिं कालियदीवं उत्तरेंति । आकर जहाज का लंगर डाला। लंगर डालकर उन उत्कृष्ट शब्द, जहि-जहिं च णं ते आसा आसयंति वा सयंति वा चिटुंति स्पर्श, रस, रूप और गंध-द्रव्यों को नौकाओं द्वारा कालिकद्वीप पर वा तुयटृति वा तहिं-तहिं च णं ते कोडुंबियपुरिसा ताओ वीणाओ उतारा। य जाव चित्तवीणाओ य अण्णाणि य बहूणि सोइदिय-पाउग्गाणि ___ जहां-जहां वे अश्व बैठते, सोते, खड़े रहते अथवा त्वग्-वर्तन य दव्वाणि समुदीरेमाणा-समुदीरेमाणा ठवेंति, तेसिं च परिपेरतेणं करते, वहां-वहां वे कौटुम्बिक पुरुष उन वीणाओं यावत् चित्र-वीणाओं पासए ठवेंति, ठवेत्ता निच्चला निष्फंदा तुसिणीया चिट्ठति । और अन्य अनेक श्रोत्रेन्द्रिय-प्रायोग्य द्रव्यों (मधुर स्वरों) की उदीरणा जत्थ-जत्थ ते आसा आसयंति वा सयंति वा चिट्ठति वा करते हुए रहते। उन अश्वों के आसपास चारों ओर जाल बिछा देते। तुयटृति वा तत्थ-तत्थ णं ते कोडुंबियपुरिसा बहूणि किण्हाणि य बिछाकर स्वयं निश्चल, निष्पन्द एवं मौन रहते। नीलाणि य लोहियाणी य हालिदाणी य सुक्किलाणि य कट्ठकम्माणि ___ जहां-जहां वे अश्व बैठते, सोते, खड़े रहते अथवा त्वम् वर्तन य जाव संघाइमाणि य अण्णाणि स बहूणि चक्खिदिय-पाउग्गाणि करते, वहां-वहां वे कौटुम्बिक पुरुष बहुत से कृष्ण, नील, लोहित, य दव्वाणि ठवेंति, तेसिं परिपेरतेणं पासए ठवेंति, ठवेत्ता निच्चला हारिद्र और शुक्ल वर्ण के काष्ठ कर्म यावत् संघात्य वस्तुएं और अनेक निप्फंदा तुसिणीया चिट्ठति । चक्षुरिन्द्रिय प्रायोग्य द्रव्य रख देते। उन अश्वों के आसपास चारों ओर जत्थ-जत्थ ते आसा आसयंति वा सयति वा चिट्ठति वा जाल बिछा देते। बिछाकर स्वयं निश्चल, निष्पन्द एवं मौन रहते। तुयदृति वा तत्थ-तत्थ णं ते कोडुबियपुरिसा तेसिं बहूणं कोट्टपुडाण जहां-जहां वे अश्व बैठते, सोते, खड़े रहते अथवा त्वग् वर्तन य जाव पाडलपुडाण य अण्णेसिं च बहूणं घाणिदिय-पाउग्गाण करते, वहां-वहां वे कौटुम्बिक पुरुष बहुत से कोष्ठ-पुटों यावत Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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