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________________ नायाधम्मकहाओ ३६५ उवागच्छंति, उवागच्छित्ता हत्थिसीसयस नयरस्स बहिया अग्गुज्जाणे सत्थनिवेसं करेंति, करेत्ता सगडी-सागडं मोएंति, मोएत्ता महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं गेण्हति, गेण्हित्ता हत्थिसीसयं नयरं अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता जेणेव से कणगकेऊ राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं महत्थं महाचं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं उवणेति ।। सत्रहवां अध्ययन : सूत्र १६-२१ वहां आकर हस्तिशीर्ष नगर के बाहर प्रधान उद्यान में सार्थ को ठहराया। ठहराकर छोटे बड़े वाहन खोले। खोलकर महान अर्थवान, महान मूल्यवान और महान अर्हता वाला राजाओं के योग्य विपुल उपहार लिया। उपहार लेकर हस्तिशीर्ष नगर में प्रवेश किया। प्रवेश कर जहां कनककेतु राजा था, वहां आए। वहां आकर महान अर्थवान, महान मूल्यवान और महान अर्हता वाला राजाओं के योग्य विपुल उपहार भेंट किया। आसाण आणयण-पदं १७. तए णं से कणगकेऊ राया तेसिं संजत्ता-नावावाणियगाणं तं महत्थं महाघं महरिहं विउलंरायारिहं पाहुडं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता ते संजत्ता-नावावाणियगे एवं वयासी--तुब्भे णं देवाणुप्पिया! गामागर-नगर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टण-आसम-निगमसंबाह-सण्णिक्साइं आहिंडह, लवणसमुदं च अभिक्खणं-अभिक्खणं पोयवहणेणं ओगाहेह । तं अत्थियाइंच केइ भे कहिंचि अच्छेरए दिट्टपुव्वे? अश्वों का आनयन-पद १७. कनककेतु राजा ने उन सांयात्रिक पोत-वणिकों का वह महान अर्थवान, महान मूल्यवान और महान अर्हता वाला राजाओं के योग्य विपुल उपहार स्वीकार किया। स्वीकार कर उन पोतवणिकों से इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो! तुम बहुत से ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, द्रोणमुख, मडम्ब, पत्तन, आश्रम, निगम, संबाह और सन्निवेशों में घूमते हो और पोतवहन से बार-बार लवणसमुद्र का अवगाहन करते हो। अत: तुम लोगों ने कहीं पर भी कोई आश्चर्य देखा है? १८. तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा कणगकेउं एवं वयासी--एवं खलु अम्हे देवाणुप्पिया! इहेव हत्थिसीसे नयरे परिवसामो तं चेव जाव कालियदीक्तणं संछूढा । तत्थ णंबहवे हिरण्णागरे य सुवण्णागरे य रयणागरे य वइरागरे य बहवे तत्थ आसे पासामो। किंते? हरिरेणु जाव अम्हं गंध आघायंति, आघाइत्ता भीया तत्था उब्विग्गा उब्विग्गमणा तओ अणेगाइंजोयणाई उन्भमंति। तए णं सामी! अम्हेहि कालियदीवे ते आसा' अच्छेरए दिपव्वे।। १८. वे सांयात्रिक पोत-वणिक् उस कनककेतु राजा से इस प्रकार बोले--देवानुप्रिय! हम यहीं हस्तिशीर्ष नगर में रहते हैं। पूर्ववत् वक्तव्यता यावत् हम कालिक द्वीप के पास पहुंचे, वहां हमने बहुत सी हिरण्य, सुवर्ण, रत्न और वज्र की खाने देखी और बहुत से अश्व देखे। वे कैसे थे? कुछ अश्वों का कटिप्रदेश नीलरजकणों से लिप्त था--इसलिए वे कटिसूत्र पहने हुए से लगते थे यावत् उन अश्वों ने हमें सूंघा। सूंघकर भीत, त्रस्त, उद्विग्न और उद्विग्नमन वाले होकर अनेक योजन दूर भाग गए। ___अत: स्वामिन्! हमने कालिकद्वीप में उन अश्वों को आश्चर्य रूप में देखा है। १९. तए णं से कणगकेऊ तेसिं संजत्ता-नावावाणियगाणं अंतिए १९. वह कनककेतु राजा उन सांयात्रिक पोतवणिकों से यह अर्थ सुनकर, एयमढे सोच्चा निसम्म ते संजत्ता-नावावाणियए एवं अवधारण कर उन सांयात्रिक पोतवणिकों से इस प्रकार बोला--देवानुप्रियो वयासी--गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! मम कोडुबियपुरिसेहिं तुम मेरे कौटुम्बिक पुरुषों के साथ जाओ और कालिकद्वीप से उन सद्धिं कालियदीवाओ ते आसे आणेह ।। अश्वों को लाओ। २०. तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा एवं सामि! त्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति ।। २०. ऐसा ही होगा, स्वामिन्! इस प्रकार सांयात्रिक पोतवणिकों ने राजा के आज्ञा-वचन को विनय-पूर्वक स्वीकार किया। २१. तए णं से कणगकेऊ कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी--गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! संजत्ता-नावावाणियएहिं सद्धि कालियदीवाओ मम आसे आणेह । तेवि पडिसुणेति ।। २१. उस कनककेतु राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। उन्हें बुलाकर इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो! तुम इन सांयात्रिक पोतवणिकों के साथ जाओ और कालिकद्वीप से मेरे लिए अश्व लाओ। उन्होंने भी स्वीकार किया। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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