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________________ सोलहवां अध्ययन : सूत्र १५६-१५९ ३३० नायाधम्मकहाओ १५६. तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा कल्लं पाउप्पभायाए १५६. वे वासुदेव प्रमुख हजारों राजाओं ने उषाकाल में पौ फटने पर रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते यावत् सहस्ररश्मि दिनकर, तेज से जाज्वल्यमान सूर्य के कुछ ऊपर ण्हाया जाव सव्वालंकारविभूसिया हत्थि-खंधवरगया आ जाने पर स्नान कर यावत् सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं घरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं और प्रवर हस्तिस्कन्ध पर आरूढ़ होते हए कटसरैया के फूलों से बनी वीइज्ज़माणा हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए मालाओं से युक्त छत्र धारण किया। श्वेत चामरों से वीजित होते हुए सद्धिं संपरिवुडा महयाभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ता अश्व, गज, रथ और प्रवर पदाति योद्धाओं से कलित चतुरंगिणी सेना सव्विड्ढीए जाव टुंदहि-निग्घोस-नाइयरवेणं जेणेव संयवरामंडवे के साथ, उससे परिवृत हो, महान सुभटों की विभिन्न टुकड़ियों तथा तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता अणुप्पविसंति, अणुप्पविसित्ता पथदर्शक वृन्द से घिरे हुए सम्पूर्ण ऋद्धि यावत् दुन्दुभि निर्घोष से पत्तेयं-पत्तेयं नामंकिएस आसणेस निसीयंति दोवई रायवरकण्णं निनादित स्वरों के साथ, जहां स्वयंवर मण्डप था, वहां आए। आकर पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिट्ठति।। मण्डप में प्रवेश किया। प्रवेश कर पृथक्-पृथक् नामांकित आसनों पर बैठे और प्रवर राजकन्या द्रौपदी की प्रतीक्षा करने लगे। १५७. तए णं से दुवए राया कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते पहाए जाव सव्वालंकारविभूसिए हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणे हय-गय-रहपवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिडे महयाभड-चडगर-रह-पहकर-विंदपरिक्खित्ते कपिल्लपुरं नगर मझमझेणं निग्गच्छइ, जेणेव सयंवरामंडवे जेणेव वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धाक्ता कण्हस्स वासुदेवस्स सेयवरचामरं गहाय उववीयमाणे चिट्ठइ।। १५७. उस द्रुपद राजा ने भी उषाकाल में पौ फटने पर सहस्ररश्मि दिनकर तेज से जाज्वल्यमान सूर्य के कुछ ऊपर आ जाने पर, स्नान कर यावत् सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित और प्रवर हस्तिस्कन्ध पर आरूढ़ हो, कटसरैया के फूलों से बनी मालाओं से युक्त छत्र धारण किया। श्वेत चामरों से वीजित होता हुआ, अश्व, गज, रथ और प्रवर पदाति योद्धाओं से कलित चतुरंगिणी सेना के साथ उससे परिवृत हो महान सुभटों की विभिन्न टुकड़ियों तथा पथदर्शक वृन्द से घिरे हुए काम्पिल्यपुर नगर के बीचोंबीच होता हुआ निकला और जहां स्वयंवर मण्डप था, जहां वासुदेव प्रमुख हजारों राजा थे, वहां आया। वहां आकर सटे हुए दस नखों वाली दोनों हथेलियों से निष्पन्न संपुट आकार वाली अंजलि को सिर के सम्मुख घुमा कर मस्तक पर टिकाकर वासुदेव प्रमुख राजाओं का 'जय-विजय' की ध्वनि से वर्धापन किया। वर्धापन कर प्रवर श्वेत चामर लेकर कृष्ण वासुदेव को वीजित करने लग गया। १५८. तए णं सा दोवई रायवरकण्णा कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणधरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता पहाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगलपायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिया मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव जिणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जिणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जिणपडिमाणं अच्चणं करेइ, करेत्ता जिणघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अतउरे तेणेव उवागच्छइ॥ १५८. वह प्रवर राजकन्या द्रौपदी उषाकाल में पौ फटने पर सहस्ररश्मि दिनकर तेज से जाज्वल्यमान सूर्य के कुछ ऊपर आ जाने पर जहां मज्जन-घर था, वहां आई। आकर मज्जन-घर में प्रवेश किया। प्रवेश कर स्नान, बलिकर्म और कौतूक मंगल रूप प्रायश्चित्त कर, पवित्र स्थान में प्रवेश करने योग्य प्रवर मंगल वस्त्र पहन, मज्जन-घर से निकली। निकलकर जहां जिनालय था, वहां आयी। आकर जिनालय में प्रविष्ट हुई। प्रविष्ट होकर जिन प्रतिमाओं की पूजा की। पूजा कर जिनालय से निकली। निकलकर जहां अन्त:पुर था, वहां आयी। १५९. तए णं तं दोवइं रायवरकण्णं अंतेउरियाओ सव्वालंकारवि- भूसियं करेति । किं ते? वरपायपत्तनेउरा जाव चेडिया-चक्कवालमहयरग-विंद-परिक्खित्ता अंतेउराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्ख- मित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धिं चाउग्घंटं आसरहं दुरूहइ। १५९. अन्त:पुर की महिलाओं ने प्रवर राजकन्या द्रौपदी को सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित किया। वे अलंकार कौन से थे? उसके पावों में प्रवर नूपुर पहनाए यावत् वह दासी-समूह और महत्तर वृन्द से घिरी हुई अन्त:पुर से निकली। निकलकर जहां बाहरी सभा-मण्डप था, जहां चार घंटों वाला अश्वरथ था, वहां आयी। वहां आकर क्रीडन धात्री लेखिका के साथ चार घंटों वाले अश्वरथ पर आरूढ़ हुई। Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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