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सोलहवां अध्ययन : सूत्र २१-२३
२१. तए णं से धम्मरुई अणगारे अथामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमित्ति कट्टु आयारभंडगं एगंते ठवेइ, थंडिलं पडिलेहेइ, दब्भसंथारगं संथरेइ, दब्भसंथारगं दुरूहइ, पुरत्थाभिमुहे संपलियंकनिसण्णे करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं क्यासी-नमोत्यु णं अरहंताणं जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं । नमोत्थु णं धम्मघोसाणं धेराणं मम धम्मायरियाणं धम्मोवएसगाणं। पुब्विं पिणं मए धम्मघोसाणं घेराणं अंतिए सब्वे पाणादवाए पच्नक्लाए जावज्जीवाए जाव बहिद्धादाणे (पच्चक्खाए जावज्जीवाए ?), इयाणिं पिणं अहं तेसिं चैव भगवंताणं अतियं सव्यं पाणाइवायं पच्चवखामि जाव बहिद्धादाणं पच्चक्खामि जावज्जीवाए। जहा स्वंदओ जाव चरिमेहिं उसासेहिं बोसिरामि ति कट्टु आलोय पडिक्कते समाहिपते कालगए।
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नायाधम्मकहाओ
२१. वे धर्मरुचि अनगार अशक्त, निर्बत, वीर्यहीन तथा पुरुषार्थ और पराक्रम से शून्य हो गए। इस शरीर को धारण करना अशक्य है - यह सोचकर उन्होंने आचार भण्डक-धर्मोपकरण एकान्त में रखे । स्थण्डिल की प्रतिलेखना की। डाभ का बिछौना बिछाया। डाभ I के बिछौने पर आरूढ़ हुए और पूर्वाभिमुख हो, पर्यकासन में बैठे जुड़ी हुई सिर पर प्रदक्षिणा करती हुई अलि को मस्तक पर टिकाकर इस प्रकार कहा - नमस्कार हो धर्म के आदिकर्ता यावत् सिद्धिगति नामक स्थान को संप्राप्त अर्हतों को ।
साहूहिं धम्मरुइस्स गवेसणा - पदं
२२. तए णं ते धम्मघोसा घेरा धम्मरु अणगारं चिरगयं जाणित्ता समणे निग्धे सदावेति सदावेत्ता एवं व्यासी एवं खतु देवागुप्पिया! धम्मरुई अणगारे मासखमणपारणगति सालइयस्स तित्तालाउयस्स बहुसंभारसभियरल नेहावगाढस निसिरणडुबाए बहिया निग्गए चिरावेइ । तं गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वओ समंता मग्गण - गवेसणं करेह ।।
साहूहिं धम्मरुइस्स समाहिमरण- निवेदण-पदं २३. तए गं ते समणा निग्गंधा धम्मघोसाणं घेराणं जाव तहत्ति आणाए विणणं वपण पढिसुर्णेति, पटिसुणेत्ता धम्मघोसान घेराणं अंतियाओ परिनिक्समति, पडिनिक्स्वमित्ता धम्मरुदस्स अणगारस्स सव्वओ समंता मग्गण - गवेसणं करेमाणा जेणेव थंडिले तेणेव उपागच्छति, उवागच्छित्ता धम्मरुइल्स अणगारस्त सरीरगं निप्पाणं निच्चेट्टं जीवविप्पजढं पासंति, पासित्ता हा हा अहो! अकज्जमिति कट्टु धम्मरुइस्स अणगारस्स परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेति, धम्मरुदस्स आधारभंडगं गेष्टति गेण्हिता जेणेव धम्मघोसा घेरा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता गमागमणं पडिक्कमंति, पडिक्कमित्ता एवं वयासी--एवं खलु अम्हे तुम्भं अंतिपाओ पटिनिक्खमामो, सुभूमिभागस्स उज्जाणरस परिपेरतेणं धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वओ समंता मग्गण - गवेसणं करेमाणा जेणेव थंडिले तेणेव उवागच्छामो जाव इहं हव्वमागया । तं कालगए णं ते! धम्मरुई अणगारे । इमे से आयारभंडए ।
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नमस्कार हो, मेरे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक, स्थविर धर्मघोष को पहले भी मैंने धर्मघोष स्थविर के पास जीवन पर्यन्त सर्व प्राणातिपात का प्रत्याख्यान किया था, यावत् जीवन पर्यन्त सर्वपरिग्रह का प्रत्याख्यान किया था। मैं इस समय भी उन्हीं भगवान के परिपार्श्व में जीवन पर्यन्त सर्व प्राणातिपात का प्रत्याख्यान करता हूं यावत् जीवन पर्यन्त सर्व परिग्रह का प्रत्याख्यान करता हूं। स्कन्दक की भांति यावत् अन्तिम उच्छ्वास पर्यन्त शरीर का व्युत्सर्ग करता हूं--ऐसा कहकर आलोचना, प्रतिक्रमण कर, समाधि को प्राप्त हो कालगत हुए।
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साधुओं द्वारा धर्मरुचि की गवेषणा-पद
२२. धर्मरुचि अनगार को बाहर गए हुए बहुत समय बीत चुका है--यह जानकर धर्मघोष स्थविर ने श्रमण-निर्ग्रन्थों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा -- देवानुप्रियो ! धर्मरुचि अनगार को मासखमण के पारणक में (प्राप्त) वृक्ष की शाखा पर निष्पन्न तिक्त तुम्बे के प्रचुर मसाले भरकर और भरपूर स्नेह डालकर बनाए गए उस शाक के परिष्ठापन के लिए बाहर गए हुए बहुत समय हो गया है। अतः देवानुप्रियो ! तुम जाओ और धर्मरुचि अनगार की चारों ओर मार्गणा गवेषणा करो।
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साधुओं द्वारा धर्मरुचि के समाधि-मरण का निवेदन- पद २३. उन श्रमण-निग्रन्थों ने धर्मघोष स्थविर के यावत् आज्ञा वचन को 'तथास्तु' कहकर विनयपूर्वक स्वीकार किया। स्वीकार कर धर्मघोष स्थविर के पास से उठकर बाहर गए। बाहर जाकर धर्मरुचि अनगार की चारों ओर मार्गणा - गवेषणा करते हुए वे जहां स्थण्डित था, वहां आए। वहां आकर धर्मरुचि अनगार के निष्प्राण, निश्चेष्ट और निर्जीव शरीर को देखा देखकर हा अहो! अर्थ हो गया -- ऐसा कहकर धर्मरुचि अनगार का परिनिर्वाण हेतुक कायोत्सर्ग किया । धर्मरुचि के आचार- भाण्डक धर्मोपकरण लिए और जहां धर्मघोष स्थविर थे वहां आए। वहां आकर गमनागमन का प्रतिक्रमण किया । प्रतिक्रमण कर इस प्रकार कहा- भंते! हम आपके पास से उठकर बाहर गए । सुभूभिभाग उद्यान के आस-पास चारों ओर धर्मरुचि अनगार की मार्गणा - गवेषणा करते हुए हम जहां स्थण्डिल था, वहां आए यावत् शीघ्र ही यहां आए हैं। भंते! धर्मरुचि अनगार काल प्राप्त हो गए हैं। ये उनके आचार- भाण्डक - धर्मोपकरण हैं।
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