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चौदहवां अध्ययन सूत्र ५०-५३
पोट्टिलाए पव्वज्जा - पदं
५०. लए गं सीसे पोट्टिलाए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरतकालसमयसि कुटुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए कप्पे समुपज्जित्था एवं खलु तेपलिपुत्तस्स पुब्बिं पड्डा कंता पिया मनुष्णा मणामा आणि इयाणिं अणिट्टा अकंता अप्पिया अण्णा अमणामा जाया । नेच्छइ णं तेयलिपुत्ते मम नामगोयमवि सवणयाए किं पुण दंसणं वा परिभोगं वा? तं सेयं खलु ममं सुब्ववाणं अज्जाणं अंतिए पव्वइत्तए एवं सपेहेइ, सत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव तेयलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिया! मए सुव्वयाणं अजाण अंतिए धम्मेनिसते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पटिच्छिए अभिरुइए । तं इच्छामि णं तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया पव्वइत्तए ।।
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५१. तए णं तेपलिपुत्ते पोट्टिलं एवं क्यासी एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए! मुंडा पव्वश्या समाणी कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोसु देवताए उववज्जिहिसि । तं जइ गं तुमं देवाणुप्पिए ममं ताओ देवलगाओ आगम्म केवलिपण्णत्ते धम्मे बोहेहि, तो हं विसज्जेमि । अह गं तुमं ममं न संबोहेसि, तो ते न विसज्जेमि ॥
५२. तए णं सा पोट्टिला तेयलिपुत्तस्स एयमट्ठे पडिसुणेइ ।। ५३. तए णं तेयलिपुते विडलं असणं पाणं खाइमं साइमं उक्क्खडावे, उपक्खडावेत्ता मित्त-नाइ नियग-सयण संबंधि परियणं आमतेइ जाव सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पोट्टिलं हायं सव्वालंकारविभूसियं पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं दुरुहित्ता मित्त-नाइ नियग-सयण संबंधि परियणेणं सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्डी जाव दुंदुहिनिग्घोसनाइय-रवेणं तेयलिपुरं मज्झमज्झेणं जेणेव सुब्वयाणं उवरसए तेणेव उवागच्छद्र, उवागच्छित्ता सीमाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पोट्टिलं पुरओ कट्टु जेणेव सुव्वया अज्जा तेणेव उवागच्छछ, उवागच्छिता वंदइ नमसह वंदित्ता नमसत्ता एवं क्यासी एवं खलु देवाणुप्पिया! मम पोट्टिला भारिया इट्ठा कंता पिया मणुष्णा मणामा एस णं संसारभब्बिग्गा भीया जम्मण जर मरणाणं इच्छइ देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराज अणगारियं पव्वइत्तए पडिच्यांतु गं देवागुप्पिया! सिस्सिणिभिक्लं अहासुहं मा पडिबंधं करेहि ।।
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नायाधम्मकहाओ
पोहिला का प्रव्रज्या पद
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५०. एक बार कुटुम्ब जागरिका करते हुए पोट्टिला के मन में मध्यरात्रि के समय इस प्रकार का आन्तरिक चिन्तित, अभिलषित, मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ मैं रोतलीपुत्र को पहले इष्ट, कमनीय, प्रिय मनोज्ञ और मनोगत थी। अब अनिष्ट, अकमनीय, अप्रिय, अमनोज्ञ और अमनोगत हो गई हूँ। तेतलीपुत्र मेरा नाम गोत्र भी सुनना नहीं चाहता, दर्शन और परिभोग की तो बात ही कहां? अत: मेरे लिए उचित है मैं आर्या सुव्रता के पास प्रव्रजित बनूं। उसने ऐसी की। सप्रेक्षा कर उषा काल में पौ फटने पर यावत् सहस्ररश्मि दिनकर तेज से जाज्वल्यमान सूर्य के कुछ ऊपर आ जाने पर जहां तेलीपुत्र था, वहां आयी। वहां आकर सिर पर प्रदक्षिणा करती अञ्जलि को मस्तक पर टिकाकर इस प्रकार कहा- देवानुप्रिय! मैंने आर्या सुव्रता से धर्म सुना है और वही धर्म मुझे इष्ट, ग्राह्य और रुचिकर है । अते: मैं तुमसे अनुज्ञा प्राप्त कर प्रब्रजित होना चाहती हूँ।
५१. तेतलीपुत्र ने पोट्टिला से इस प्रकार कहा- देवानुप्रिये! तू मुण्ड और प्रव्रजित हो, मृत्यु के समय मृत्यु को प्राप्त कर किसी देवलोक में देवरूप से उत्पन्न होगी। अतः यदि देवानुप्रिये! तू उस देवलोक से आकर मुझे केवली प्रज्ञाप्त धर्म का संबोध दो तो मैं तुझे विसर्जित करूं। यदि तू मुझे संबोध नहीं देगी तो मैं तुझे विसर्जित नहीं करूंगा ।
५२. पोट्टिला ने तेलीपुत्र के इस अर्थ को स्वीकार कर लिया।
५३. तेतलीपुत्र ने विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार करवाया । तैयार करवाकर अपने मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिजनों को आमन्त्रित किया यावत् उनको सत्कृत और सम्मानित किया। सत्कृत-र - सम्मानित कर स्नान कर सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित पोट्टिला को हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिविका पर चढ़ाकर मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, संबंधी और परिजनों के साथ उन से परिवृत हो, सम्पूर्ण ऋऋद्धि यावत् दुन्दुभिनिर्घोष से निनादित स्वरों के साथ तेतलीपुर नगर के बीचोंबीच गुजरता हुआ, जहां आर्या सुव्रता का उपाश्रय था, वहां आया। वहां आकर शिविका से उतरा। उतरकर पोट्टिला को आगे कर जहां आर्या सुव्रता थी, वहां आया। वहां आकर आर्या सुव्रता को वन्दना की। नमस्कार किया । वन्दना - नमस्कार कर इस प्रकार कहा- देवानुप्रिये ! यह पोट्टिला भार्या मुझे इष्ट, कमनीय, प्रिय, मनोज्ञ और मनोगत है। यह संसार के भय से उद्विग्न है। जन्म, जरा और मृत्यु से भीत है । अत: यह देवानुप्रिया के पास मुण्ड हो अगार से अनगारता में प्रव्रजित होना चाहती है। देवानुप्रिये! यह शिष्या की भिक्षा स्वीकार करो जैसा सुख हो, प्रतिबन्ध मत करो।
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