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________________ चौदहवां अध्ययन सूत्र २७-३१ २७. तए गं सा अम्मधाई तहत्ति पठिसुणेइ, पडिसुणेत्ता अंतेउरस्स अवदारेण निग्गच्छ, निग्गच्छित्ता जेणेव तेयतिस्स गिहे जेणेव तेयलिपुत्तं तेणेव उवागच्छद्द, उनागच्छिता करयलपरिगहिव सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं क्यासी--एवं खलु देवाणुप्पिया! पउमावई देवी सहावे ।। २८. तए णं तेयतिपुत्ते अम्मधाईए अंतिए एयम सोच्चा हडतुडे हट्टतुट्ठे अम्माईए सद्धिं साओ गिहाओ निच्छ, निम्माच्छित्ता अनेउरस्स अवदारेणं रहस्सिययं चेव अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावतं मत्यए अंजलि कट्टु एवं क्यासी-संदितंतु णं देवाप्पिया! जं मए कायव्वं ।। २९. तए णं पउमावई देवी तेयलिपुत्तं एवं क्यासी एवं खलु कणगरहे राया जाव पुत्ते वियंगेइ । अहं च णं देवाणुप्पिया! दारगं पाया। तं तुमं णं देवाणुप्पिया! एवं दारणं येण्हाहि जाव तब मम य भिक्वाभाषणे भविस्सइ ति कट्टु तेयतिपुत्तस्स हत्थे दलयइ ॥ २८० -- ३०. तए णं तेयलिपुत्ते पउमावईए हत्याओ दारगं गेहइ, उत्तरिज्जेणं पिहेइ, अंतेउरस्स रहस्तिययं अवदारेणं नियच्छ, निग्गच्छित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव पोट्टिला भारिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोट्ठिलं एवं बयासी एवं खलु देवाणुपए कणगरहे राया जाव पुत्ते वियंगेइ । अयं च णं दारए कणगरहस्स पुत्ते पउमावईए अत्तए । तन्नं तुमं देवाणुप्पिया! इमं दारणं कणगरहस्स रहस्तिययं चैव अणुपुष्येणं सारक्लाहि व संगोवेहि य संबद्धेहि व तणं एस दारए उम्मुक्कबालभावे तव य मम य पउमावईए य आहारे भवित्सइ ति कट्टु पोट्टिताए पासे निक्खिवह, निक्लिवित्ता पोट्टलाए पासाओ तं विणिहायमावण्णियं दारियं गेहइ, गेण्हित्ता उत्तरिज्जेण पिहेड, पित्ता अतिउरल्स अवदारेणं अणुप्पविसइ, अणुष्यवित्तित्ता जेणेव पउमावई देवी तेणेव उपागच्छद् उवागच्छित्ता पउमावईए देवीए पासे ठावेह जाव पडिनिग्गए । -- Jain Education International दारियाए मयकिच्च पदं ३१. तए णं तीसे पउमावईए देवीए अंगपडियारियाओ पउमावई देविं विणिहायमावण्णियं च दारियं पयायं पासंति, पासित्ता जेणेव कणगरहे राया तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी--एवं खलु सामी ! पउमावई देवी मएल्लियं दारियं पयाया ।। नायाधम्मकहाओ २७. तब धायमाता ने ऐसा ही होगा' कहकर स्वीकार किया। स्वीकार कर अन्त: पुर के पार्श्वद्वार से निकली। निकलकर जहां तेतली का घर था, जहां तेलीपुत्र था, वहां आयी। वहां आकर सिर पर प्रदक्षिणा करती अञ्जलिको मस्तक पर टिकाकर इस प्रकार कहा -- देवानुप्रिय ! देवी पद्मावती बुला रही है। -- २८. धायमाता से यह अर्थ सुनकर हृष्ट-तुष्ट हुआ तेतलीपुत्र घायमाता के साथ अपने घर से निकला । निकलकर अन्त: पुर के पार्श्वद्वार से गुप्त रूप से भीतर आया। भीतर आकर जहां पद्मावती देवी थी वहां आया। वहां आकर सिर पर प्रदक्षिणा करती अञ्जलि को मस्तक पर टिकाकर इस प्रकार कहाकहें, देवानुत्रिये! जो मुझे करना है। २९. देवी पद्मावती ने तेलीपुत्र से इस प्रकार कहा- देवानुप्रिय ! इस प्रकार राजा कनकरथ यावत् पुत्रों को विकलांग बना देता है। देवानुप्रिय ! मैंने बालक को जन्म दिया है। अतः देवानुप्रिय ! तुम इस बालक को लो, यावत् यह तेरे और मेरे दोनों के लिए भिक्षापात्र होगा--यह कहकर उसने बालक को तेतलीपुत्र के हाथ में दिया । -- ३०. तेलीपुत्र ने पद्मावती के हाथ से बातक को लिया। उसे उत्तरीय वस्त्र से ढका। गुप्त रूप से अन्तःपुर के पार्श्वद्वार से निकला। निकलकर जहां उसका घर था, जहां पोट्टिला आर्या थी, वहां आया। वहां आकर पोट्टिला से इस प्रकार कहा- देवानुप्रिये! राजा कनकरथ यावत् पुत्रों को विकलांग बनाता है। यह बालक राजा कनकरथ का पुत्र और देवी पद्मावती का आत्मज है। अतः देवानुप्रिये! तूं राजा कनकरण से गुप्त रखकर ही इस बालक का क्रमशः संरक्षण, संगोपन करती हुई संवर्धन कर । यह बालक शैशव को लांघकर तेरा मेरा और पद्मावती देवी का आधार बनेगा- यह कहकर बालक को पोट्टिला के पास रखा। रखकर पोट्टिला के पास से उस मृत बालिका को लिया । लेकर उत्तरीय वस्त्र से ढंका। ढककर अन्त: पुर के पार्श्वद्वार से भीतर प्रवेश किया। प्रवेश कर जहां प्रद्मावती देवी थी, वहां आया। वहां आकर उस बालिका को देवी पद्मावती के पास रखा यावत् वापस चला गया। बालिका का मृतकार्य-पद ३१. जब देवी पद्मावती की अंग परिचारिकाओं ने देखा, देवी पद्मावती मृत बालिका को जन्म दिया है तो वे जहां राजा कनकरथ था, वहां आयीं। आकर सिर पर प्रदक्षिणा करती अञ्जलि को मस्तक पर टिकाकर इस प्रकार बोली- स्वामिन्! देवी पद्मावती ने मृत बालिका को जन्म दिया है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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