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________________ २७९ नायाधम्मकहाओ चौदहवां अध्ययन : सूत्र २२-२६ पउमावईए अमच्चेण मंतणा-पदं पद्मावती का अमात्य के साथ मन्त्रणा-पद २२. तए णं तीसे पउमावईए देवीए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकाल- २२. किसी समय पद्मावती के मन में मध्यरात्रि के समय इस प्रकार का समयंसि अयमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे आन्तरिक, चिन्तित, अभिलषित, मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ--इस समुप्पज्जित्था--एवं खलु कणगरहे राया रज्जे य रट्टे य बले य प्रकार राजा कनकरथ राज्य, राष्ट्र, बल, वाहन, कोष, कोष्ठागार, वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य पुरे य अंतेउरे य मुच्छिए गढिए पुर और अन्त:पुर में मूछित, ग्रथित, गृद्ध और अध्युपपन्न हो रहा गिद्धे अज्झोववण्णे जाए, जाए पत्ते वियंगेइ--अप्पेगइयाणं है। वह अपने पुत्रों को पैदा होते ही विकलांग बना देता है। वह किन्हीं हत्थंगुलियाओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं हत्थंगुट्ठए छिंदइ, अप्पेगइयाणं के हाथों की अंगुलियां काट देता है। किन्हीं के हाथों के अंगूठे काट पायंगुलियाओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुट्ठए छिंदइ, अप्पेगइयाणं देता। किन्हीं के पांवों की अंगुलियां काट देता। किन्हीं के पावों के कण्णसक्कुलीओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं नासापुडाई फालेइ, अप्पेगइयाणं ___अंगूठे काट देता है। किन्हीं की कर्णपाली काट देता है, किन्हीं के अंगमंगाई वियत्तेइ । तं जइ णं अहं दारयं पयायामि, सेयं खलु नासापुट चीर देता है और किन्हीं के अंगोपांग विकृत कर देता है। मम तं दारगं कणगरहस्स रहस्सिययं चेव सारक्खमाणीए अत: यदि मैं बालक का प्रसव करूं तो मेरे लिए उचित है मैं मेरे संगोवेमाणीए विहरित्तए त्ति कटु एवं सपेहेइ, सपेहेत्ता तेयलिपुत्तं उस बालक को कनकरथ से गुप्त रखकर ही उसका संरक्षण, संगोपन अमच्चं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिया! करती हुई विहार करूं। उसने ऐसी संप्रेक्षा की। संप्रेक्षा कर अमात्य कणगरहे राया रज्जे य रट्टे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे तेतलीपुत्र को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा--देवानुप्रिय! इस य पुरे य अतेउरे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे जाए, जाए प्रकार राजा कनकरथ राज्य, राष्ट्र, बल, वाहन, कोष, कोष्ठागार, पुर पुत्ते वियंगेइ--अप्पेगइयाणं हत्थंगुलियाओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं और अन्तःपुर में मूर्च्छित, ग्रथित, गृद्ध और अध्युपपन्न हो रहा है। हत्थंगुट्ठए छिंदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुलियाओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं वह अपने पुत्रों को पैदा होते ही विकलांग बना देता है, वह किन्हीं के पायंगुट्ठए छिंदइ, अप्पेगइयाणं कण्णसक्कुलीओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं हाथों की अंगुलियां काट देता है। किन्हीं के हाथों के अंगूठे काट देता नासापुडाई फालेइ, अप्पेगइयाणं अंगोवंगाई वियत्तेइ । तं जइ णं है। किन्हीं के पावों की अंगुलियां काट देता है, किन्हीं के पावों के अंगूठे अहं देवाणुप्पिया! दारगं पयायामि, तए णं तुमं कणगरहस्स काट देता है। किन्हीं की कर्णपाली काट देता है। किन्हीं के नासापुट रहस्सिययं चेव अणुपुव्वेणं सारक्खमाणे संगोवेमाणे संवड्ढेहि। चीर देता है और किन्हीं के अंगोपांग विकृत कर देता है। तए णं से दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते ___ अत: देवानुप्रिय! यदि मैं बालक का प्रसव करूं तो, तुम राजा जोव्वणगमणुप्पत्ते 'तव मम य भिक्खाभायणे भविस्सइ ।। कनकरथ से गुप्त रख कर ही क्रमश: संरक्षण, संगोपन करते हुए उसका संवर्धन करना। वह बच्चा शैशव को लांघकर विज्ञ और कला पारगामी बन यौवन को प्राप्त कर तेरे और मेरे--दोनों के लिए भिक्षापात्र (के समान) होगा। २३. तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे पउमावईए देवीए एयमट्ठ पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता पडिगए। २३. अमात्य तेतलीपुत्र ने पद्मावती देवी के इस अर्थ को स्वीकार किया। स्वीकार कर वह चला गया। अवच्च-परिवत्तण-पदं २४. तए णं पउमावई देवी पोट्टिला य अमच्ची सममेव गभं गेण्हंति, सममेव परिवहति ।। अपत्य-परिवर्तन पद २४. देवी पद्मावती और अमात्य-पत्नी पोट्टिला दोनों ने एक साथ गर्भ धारण किया और एक साथ ही गर्भ का परिवहन करने लगी। २५. तए णं सा पउमावई देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव पियदंसणं सुरूवं दारगं पयाया। जं रयणिं च णं पउमावई देवी दारयं पयाया तं रयणिं च णं पोट्टिला वि अमच्ची नवण्हं मासाणं विणिहायमावन्नं दारियं पयाया।। २५. पूरे नौ मास पश्चात् यावत् पद्मावती देवी ने प्रियदर्शन और सुरूप बालक को जन्म दिया। जिस रात्रि में पद्मावती देवी ने पुत्र को जन्म दिया उसी रात्रि में अमात्य-पत्नी पोट्टिला ने नौ मास पूर्ण होने पर एक मृत बालिका को जन्म दिया। २६. तए णं सा पउमावई देवी अम्मधाइं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासी--गच्छह णं तुमं अम्मो! तेयलिपुतं रहस्सिययं चैव सद्दावेहि॥ २६. पद्मावती देवी ने धायमाता को बुलाया। उसे बुलाकर इस प्रकार कहा--अम्मा! तुम जाओ और गुप्त रूप से तेतलीपुत्र को बुलाओ। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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