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________________ प्रथम अध्ययन : सूत्र १०-१६ ११. दावद्दवे १२. उदगणाए १३. मंडुक्के १४. तेयली वि य। १५. नंदीफले १६. अवरकंका १७. आइण्णे १८. सुसुमा इय ।।२।। १९. अवरे य पुंडरीए, नाए एगूणवीसमे।। नायाधम्मकहाओ १२. उदकज्ञात १३. मण्डूक १४. तेतली १५. नन्दीफल १६. अवरकंका १७. आकीर्ण १८. सुंसुमा और १९. उन्नीसवां ज्ञात--पुण्डरीक ज्ञात । मेहस्स नगरपरिवारादि-वण्णग-पदं ११. जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं नायाणं एगणवीसं अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा--उक्खित्तणाए जाव पुंडरीए त्ति य । पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अद्वे पण्णते? मेघ के नगर-परिवार आदि का वर्णन-पद ११. भन्ते! धर्म के आदिकर्ता यावत् सिद्धि गति संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने ज्ञात के उन्नीस अध्ययन प्रज्ञप्त किए हैं, जैसे-उत्क्षिप्त ज्ञात यावत् पुण्डरीक, तो भंते! उन्होंने प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है? १२. एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे ___ भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे रायगिहे नामं नयरे होत्था--वण्णओ। १२. जम्बू! उस काल और उस समय इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भारतवर्ष के दक्षिणार्ध भरत में राजगृह नामक एक नगर था--वर्णक। १३. गुणसिलए चेतिए--वण्णओ। १३. वहां गुणशिलक नाम का चैत्य था--वर्णक । १४.तत्थ णं रायगिहे नयरे सेणिए नामं राया होत्था-- महताहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णओ।। १४. उस राजगृह नगर में श्रेणिक नाम का राजा था। वह महान् हिमालय, महान् मलय, मेरु और महेन्द्र पर्वत के समान उन्नत था--वर्णक ।१९ महा " १५. तस्स णं सेणियस्स रण्णो नंदा नाम देवी होत्था--समालपाणिपाया वण्णओ॥ १५. उस श्रेणिक राजा के नन्दा नाम की देवी थी। उसके हाथ-पांव सुकुमार थे-वर्णक। १६. तस्स णं सेणियस्स पुत्ते नंदाए देवीए अत्तए अभए नामं कुमारे होत्था-अहीण पडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरे लक्खण-वंजण गुणोववेए माणुम्माण-प्पमाण-पडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगे ससिसोमाकारे कते पियदंसणे सुरूवे, साम-दंड-भेय-उवप्पयाणनीति-सुप्पउत्तनय-विहण्णू, ईहा-वूह-मग्गण-गवेसण-अत्थसत्थ-मइविसारए, उप्पत्तियाए वेणइयाए कम्मयाए पारिणामियाए--चउब्विहाए बुद्धीए उववेए, सेणियस्स रण्णो बहूसु कज्जेसु य (कारणेसु य?) कुडुबसु य मतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसुय आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, मेढी पमाणं आहारे आलंबणं चक्खू, मेढीभूए पमाणभूए आहारभूए आलंबणभूए चक्खुभूए, सव्वकज्जेसु सव्वभूमियासु लद्धपच्चए विइण्णवियारे रज्जधुरचिंतए यावि होत्था, सेणियस्स रण्णो रज्जंच रटुं च कोसं च कोट्ठागारं च बलं च वाहणंच पुरंच अंतेउरंच सयमेव समुपेक्खमाणे-समुपेक्खमाणे विहरइ॥ १६. श्रेणिक का पुत्र, नन्दादेवी का आत्मज, उसका नाम था अभयकुमार। उसका शरीर अहीन और प्रतिपूर्ण पांच इन्द्रियों वाला, लक्षण और व्यञ्जन की विशेषता से युक्त, मान-उन्मान और प्रमाण से प्रतिपूर्णरर, सुजात और सर्वांग सुन्दर, चन्द्रमा के समान सौम्य आकृति वाला, कमनीय, प्रियदर्शन और सुरूप था। वह साम, दण्ड, भेद और उपप्रदान:--इन चारों नीतियों तथा सुप्रयुक्त नय की विधाओं का वेत्ता था। ईहा, अपोह (वितर्क) मार्गण, गवेषण५ और अर्थशास्त्र में विशारद मतिवाला, औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी--इस चतुर्विध बुद्धि से युक्त था। राजा श्रेणिक के बहुत से कार्यों (कारणों) सामुदायिक कर्तव्यों", मंत्रणाओं, गोपनीय कार्यों, रहस्यों२८ और निश्चयों में उसका मत पूछा जाता था, पुन: पुन: पूछा जाता था। वह मेढी, प्रमाण, आधार, आलम्बन और चक्षु तथा मेढीभूत, प्रमाणभूत, आधारभूत, आलम्बनभूत और चक्षुभूत था। वह सब कार्यों और सब भूमिकाओं में विश्वसनीय, राजा को सम्यक् परामर्श देने वाला और राज्य-धुरा का चिन्तक था। वह राजा श्रेणिक के राज्य, राष्ट्र, कोष, कोष्ठागार, सेना, वाहन, पुर और अन्त:पुर की अपने आप देखभाल करता हुआ विहार कर रहा था। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003624
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages480
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size17 MB
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